साल खत्म हो रहा है नाह....खत्म नहीं साल बदल रहा है जैसे बदलते है मौसम बदलते है रिश्तें बदलती है प्राथमिकताएं बदलाव तो प्रकृति है बदलाव स्वीकार्य है बस.... कुछ भी खत्म न हो बचा रहे हर रिश्ता परिवर्तित रुप में ही सही बची रहे पत्तियों की सरसराहट हर बदलते मौसम की आहट पर बची रहे जिम्मेदारियों की अनुभूति बदलती प्राथमिकताओं के साथ आओ....नववर्ष, एक नवजात की तरह तुम्हारा स्वागत है #आत्ममुग्धा
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है