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नवंबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तुम शिव बनना

आज पुरुष दिवस है लगभग सभी पुरुष बेखबर है  इस दिन से उनके लिये रोज की तरह सामान्य सा दिन है यह भी क्योकि उनके जीवन की जद्दोजहद कहाँ मौके देती है उन्हे जश्न मनाने के वे तो अपना जन्मदिन तक नहीं मना पाते हर घर में ऐसे बहुत से पुरुष होते है जो अपनों की राह में  खुशियों की तरह बिछ जाते है हिम्मत बनकर खड़े रहते है वो रीढ़ होते है घर परिवार की उनकी आँखों के हिस्से आँसू नहीं है उनके गालों की जमीं  रुखी है खुरदुरी है पर खारी नहीं है उनका दिल नरम नाजुक है पर दिखता सबको वो सख्त है अपनों की मृत्यु पर वो  तमाम जिम्मेदारियों को कांधे पर ले लेते है और भीगे मन से घर का एक खाली कोना तलाशते रहते है चुपचाप दो बूंद झलकाने को अपनी दाढ़ी मूछों के पीछे अपने भावों को छुपाये रहते है सुनो तुम.... आधी आबादी हो तुम हर स्त्री ह्रदय का पुरुष तत्व हो तुम अपनी आँखों को इजाजत दो बहने की अपने दिल को इजहार की अपने मन को खुशी में झूमने की तुम्हारे होने से सब कुछ है अपने पुरुष होने पर गर्व करना, दंभ नहीं तुम आधार हो एक ऐसी संस्था के (पितृसत्तात्मक) जहां तुम्हारा वर्चस्व है बस, इस अंहकार से परे रहकर  अपने भीतर के स्त्रीत्व को

झरना

वो झरना है खुशियों का दिल के हर कोने से फूटते जल प्रतापों का  संग्रह है वो हर किसी के लिये कलेजा निकाल कर  रख देना उसकी फितरत है छल कपट जिससे कोसो दूर है खरे सोने सा जिसका दिल है वो एक ऐसा शख्स है जो सिर्फ देना जानता है हाँ...... उसकी हँसी थोड़ी चौड़ी हो जाती है बशर्ते आप उसकी झोली में थोडा़ सा प्यार उंडेल दे उस थोड़े से प्यार का बोनस आप जिंदगी भर पाते रहेंगे वो विशुद्ध भावों का पुलिंदा है वो ईश्वर की नायाब कृति है क्योकि ऐसा इंसान  अब लुप्त प्रायः है मै मिली हूँ ऐसे ही एक इंसान से गर मिलो कभी तुम भी तो ख्याल रखना भावों पर कभी संदेह न करना कलेजे को नजरअंदाज न करना थाम लेना उसकी हँसी आँखों के पानी को पहचान लेना गर मिलो तो बस....इतना ख्याल रखना मैं मिली हूँ ऐसे ही इंसान से

सीमित रहना

तुम खुद को सीमित कर लो वरना तुम्हारा फैलाव  तुम्हे बहा देगा खुद से दूर समंदर मत बनना चाहो नदी झरना भी मत बनो तुम्हारे गालों पर एक खारापन है बस वही तुम्हारे हिस्से का सागर है आँखों में झरती एक नदी है इतनी ही छोटी रखो अपनी दुनिया छूटती चीजों को  थामने की कोशिश मत करो दूर तक जाते हुए धुंधले होते लम्हों को मत पकड़ो जो है तुम्हारे भीतर  बस, उसी तक सीमित रहो जो नहीं है तुम्हारा वहाँ तक विस्तृत होने की  कोशिश मत करो अपने किनारों को किसी ओर किनारों से मत सटाओ कुछ नहीं मिलेगा सिवाय खुरदुरेपन के