ऐ चाँद,आज तु भी जरा इठलाना पूरो शबाब से आसमां में उतरना खुशियों के छलकाना जा़म क्योकि आज की ये खुबसुरत शाम तेरे और मेरे प्रिय के नाम ऐ चाँद, देख जरा नीचे सज धज के खड़ी सुहागिनें कर रही तेरा इंतजार,करके सोलह श्रृंगार बादलों की ओट से तु झांकना लगी है टकटकी,जो झलक तेरी दिखी खिल जायेगे सबके चेहरे,चलेगा तेरा जादु क्या प्रोढ़ा,क्या यौवना और क्या नववधु ऐ चाँद,तु साक्षी बनेगा प्यार का देखेगा आस्था की रात में घुलता ऐतबार आज तो यार से भी पहले होगा तेरा दीदार लेकिन सुन जरा, भले ही धरती पे ना उतर लेकिन आसमां में जल्दी तु आना मैं भी हुँ प्यासी तेरे दीदार की जल्दी तु आना होगा प्यार का समर्पण करके तुझको जल अर्पण करवां चौथ की हार्दिक बधाईयाँ
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है