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नवंबर, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

धागों की गुड़िया

एक दिन एक आर्ट पेज मेरे आगे आया और मुझे बहुत पसंद आया । मैंने डीएम में शुभकामनाएं प्रेषित की और उसके बाद थोड़ा बहुत कला का आदान प्रदान होता रहा। वो मुझसे कुछ सजेशन लेती रही और जितना मुझे आता था, मैं बताती रही। यूँ ही एक दिन बातों बातों में उसने पूछा कि आपके बच्चे कितने बड़े है और जब मैंने उसे बच्चों की उम्र बतायी तो वो बोली....अरे, दोनों ही मुझसे बड़े है । तब मैंने हँसते हुए कहा कि तब तो तुम मुझे आंटी बोल सकती हो और उसने कहा कि नहीं दीदी बुलाना ज्यादा अच्छा है और तब से वो प्यारी सी बच्ची मुझे दीदी बुलाने लगी। अब आती है बात दो महीने पहले की....जब मैंने क्रोशिए की डॉल में शगुन का मिनिएचर बनाने की कोशिश की थी और काफी हद तक सफल भी हुई थी। उस डॉल के बाद मेरे पास ढेरों क्वेरीज् आयी। उन सब क्वेरीज् में से एक क्वेरी ऐसी थी कि मैं उसका ऑर्डर लेने से मना नहीं कर सकी । यह निशिका की क्वेरी थी, उसने कहा कि मुझे आप ऐसी डॉल बनाकर दीजिए । मैंने उससे कहा कि ये मैंने पहली बार बनाया है और पता नहीं कि मैं तुम्हारा बना भी पाऊँगी कि नहीं लेकिन निशिका पूरे कॉंफिडेंस से बोली कि नहीं,

नन्हे जूते

ये नन्हे से जूते मैंने बनाये है , एक बहुत प्यारी क्रोशिए की डॉल के लिये । डॉल का फोटो भी जल्दी ही शेयर करूँगी, बस उसे अपनी मंजिल तक पहूँच जाने दीजिए । अब आते है मुद्दे की बात पर....जब मैं यह नन्हे सैंडल बना रही थी तो जूतों से जुड़ी कितनी ही कहावते मेरे दिमाग में आ रही थी जिनमे से एक यह थी कि कभी फलां के जूतें में पावं रखकर देखना तब तुम्हे उन जूतों की राह पता चलेगी।      मैं इस बात से एकदम सरोकार रखती हूँ कि किसी भी सफल/असफल इंसान की डगर उसके अपने संघर्षों से बनी होती है। किसी के जूते आवाज करते है तो कोई चुपचाप राह माप जाते है।       लेकिन यहां बात है नन्हें कदमों की , जो लड़खड़ाते हुए अभी चलना ही सीख रहे है। खासतौर से अभिभावकों के लिये मेरा ये मैसेज है कि ये नन्हे पावं एक दिन आपके जूतों में फिट होंगे, इनकी भी अपनी डगर होगी, इनके भी अपने संघर्ष होगे । इन्हे आप कोई बनीबनायी राह मत दिखाईये बल्कि जिस राह ये चलना चाहे आप उस राह को उन्हे बनाना सिखाईये। आप अभिभावक है , अपने अनुभवों से उन्हे सिखाईये कि पहले अपने जूतों के कंकर निकाले ,फिर मजबूती से पावं जमाते हुए रास्ते पर बढ़े ।           नि