सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

चिड़िया

बचपन में 
मेरे आँगन में बहुत आती थी
याद है मुझे
ट्युब लाइट पर
रोशनदान पर 
तिनका तिनका लाकर घोसला बनाती थी
अपने बच्चों को
अपनी नन्ही चोंच से खाना खिलाती थी
बच्चों के पर निकलते ही
वे फुदकने लगते थे
कभी कभार नीचे गिर जाते थे
तब उन बच्चों को 
हम बच्चे 
आटा घोलकर खिलाया करते थे
उनकी माँ चिड़िया को बड़ा गुस्सा आता था
बच्चें बड़े हो उड़़ जाते थे
घोसलें खाली हो जाते थे
लेकिन आँगन में चिड़िया रोज आती थी
हम कविताएं भी चिड़ियों की गाते थे
खेल में भी चिड़िया होती थी
तोता उड़़, चिड़िया उड़ 
खेलकर अपना बचपन जीते थे
गुलजार था बचपन इन चिड़ियों से
लेकिन अब
न घोसले है, न आँगन है और ना ही चिड़िया
अब बचपन भी कहाँ गुलज़ार है

टिप्पणियाँ

कविता रावत ने कहा…
बचपन की यादें ताज़ी कर दी आपने
बहुत सुन्दर
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (21-03-2021) को    "फागुन की सौगात"    (चर्चा अंक- 4012)    पर भी होगी। 
-- 
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
--  
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-    
--
सादर...! 
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
--
Kamini Sinha ने कहा…
लेकिन अब
न घोसले है, न आँगन है और ना ही चिड़िया
अब बचपन भी कहाँ गुलज़ार है

बिलकुल सही कहा आपने ....ना गौरेया ना बचपन बस..... बीते दिनों की याद... सुंदर सृजन ,सादर नमन आपको
मन की वीणा ने कहा…
बहुत सार्थक, मन को कहीं पिछे खींच लिए जाता सृजन।
आत्ममुग्धा ने कहा…
बहुत शुक्रिया
आत्ममुग्धा ने कहा…
शुक्रिया दोस्त
आत्ममुग्धा ने कहा…
दिल से शुक्रिया

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उम्मीद

लाख उजड़ा हो चमन एक कली को तुम्हारा इंतजार होगा खो जायेगी जब सब राहे उम्मीद की किरण से सजा एक रास्ता तुम्हे तकेगा तुम्हे पता भी न होगा  अंधेरों के बीच  कब कैसे  एक नया चिराग रोशन होगा सूख जाये चाहे कितना मन का उपवन एक कोना हमेशा बसंत होगा 

मन का पौधा

मन एक छोटे से पौधें की तरह होता है वो उंमुक्तता से झुमता है बशर्ते कि उसे संयमित अनुपात में वो सब मिले जो जरुरी है  उसके विकास के लिये जड़े फैलाने से कही ज्यादा जरुरी है उसका हर पल खिलना, मुस्कुराना मेरे घर में ऐसा ही एक पौधा है जो बिल्कुल मन जैसा है मुट्ठी भर मिट्टी में भी खुद को सशक्त रखता है उसकी जड़े फैली नहीं है नाजुक होते हुए भी मजबूत है उसके आस पास खुशियों के दो चार अंकुरण और भी है ये मन का पौधा है इसके फैलाव  इसकी जड़ों से इसे मत आंको क्योकि मैंने देखा है बरगदों को धराशायी होते हुए  जड़ों से उखड़ते हुए 

सीख जीवन की

ये एक बड़ा सा पौधा था जो Airbnb के हमारे घर के कई और पौधों में से एक था। हालांकि हमे इन पौधों की देखभाल के लिये कोई हिदायत नहीं दी गयी थी लेकिन हम सबको पता था कि उन्हे देखभाल की जरुरत है । इसी के चलते मैंने सभी पौधों में थोड़ा थोड़ा पानी डाला क्योकि इनडोर प्लांटस् को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती और एक बार डाला पानी पंद्रह दिन तक चल जाता है। मैं पौधों को पानी देकर बेफिक्र हो गयी। दूसरी तरफ यही बात घर के अन्य दो सदस्यों ने भी सोची और देखभाल के चलते सभी पौधों में अलग अलग समय पर पानी दे दिया। इनडोर प्लांटस् को तीन बार पानी मिल गया जो उनकी जरुरत से कही अधिक था लेकिन यह बात हमे तुरंत पता न लगी, हम तीन लोग तो खुश थे पौधों को पानी देकर।      दो तीन दिन बाद हमने नोटिस किया कि बड़े वाले पौधे के सभी पत्ते नीचे की ओर लटक गये, हम सभी उदास हो गये और तब पता लगा कि हम तीन लोगों ने बिना एक दूसरे को बताये पौधों में पानी दे दिया।       हमे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे, बस सख्त हिदायत दी कि अब पानी बिल्कुल नहीं देना है।      खिलखिलाते...