कितना मुश्किल होता है किसी की सिमटी तहों को खोलना सिलवटे निकालना और फिर से तह कर सौंप देना प्याज की परतों सी होती है ये, पर प्याज की तरह नहीं खोला जाता इन्हे एक एक परत को सहेज...
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है