'सहज' एक संस्कृत शब्द है,जिसका मतलब होता है 'प्राकृतिक' या फिर जो बिना प्रयास के किया जाये......तात्पर्य है कि जो अपने आप व्यक्त हो जाये वह सहजता है। इसे हम स्वाभाविकता भी कह सकते है....... स्व के भाव के अनुकूल जो, वो स्वाभाविक अर्थात सहज। सहजता एक नैसर्गिक गुण है जिसे हम मन के किसी कोने में दबा देते है........ कभी अधिक परिपक्व दिखने की चाह में तो कभी कुछ समझ ना पाने की वजह से........ और तब सब नाटकीय हो जाता है और बस, वही से जद्दोजहद शुरू हो जाती है खुद से खुद की।समझदार दिखने का लोभ हमे असहज बना देता है और चालाकियाँ स्वत: ही दस्तक देने लगती है। कभी देखा है किसी फुल को खिलने के लिये प्रयास करते हुए,वो सहज ही खिल जाता है,बिल्कुल इसी तरह नदी सहज ही बहती रहती है बिना किसी प्रयास,सुरज हर रोज सहज ही उदय अस्त होता रहता है,औ...
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है