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मित्रता

रावण मुस्कुराते हुए बोला,    
                                   "राम, मैं सिर्फ महादेव के प्रति ही मित्रता के भाव से भरा हुआ हूँ । महादेव के अलावा किसी भी अन्य का मेरे मित्रभाव में प्रवेश निषिद्ध है, फिर वह भले ही महादेव को ही क्यो न प्रिय हो इसलिये तुम्हे कभी भी रावण की मित्रता नहीं मिलती। मेरे निदान के लिये महादेव ने
तुम्हारा चयन किया है राम,क्योंकि महादेव अपने इस अतिप्रिय शिष्य को मृत्यु नहीं, मुक्ति प्रदान करना चाहते हैं।"

ये पंक्तियां आशुतोष राणा सर की लिखित किताब "रामराज्य" से है। 
पिछले हफ्ते ही मैंने इस किताब को मंगाया है। सोचा था कि पूरी किताब पढ़ने के बाद कुछ लिखूँगी लेकिन पहला पृष्ठ पलटते ही उपरोक्त पंक्तियां पढ़ने मिली। रावण द्वारा कहे इन सुंदर शब्दों से मन विभोर हो गया। मित्रता की जो गहन गूढ़ बात यहां कही गयी है मैं उससे पूरी तरह सरोकार रखती हूँ। रावण कहते है कि उनके इष्ट महादेव के प्रति वे मित्रभाव रखते है और दूसरा कोई उसके समकक्ष आ भी नहीं सकता। 
      कितने अटल विश्वास से वह यह बात कह देते है और सच मानिये आपका सखा भाव सार्थक भी इसी तथ्य से होता है। मित्रता एक ऐसा संबंध होता है जिसका चयन आप स्वयं करते है । आपके बहुत से मित्र होते है ....कुछ करीबी होते है, कुछ जरुरत के होते है लेकिन ये सब मित्र वैसे नहीं हो सकते जिसका जिक्र ऊपर हुआ है । ये आप पर निर्भर करता है कि आप किसको कितना दर्जा देते है । अगर आप पारखी है, मित्रता के गहन मायनों को समझते है तो वो सिर्फ एक ही हो सकता है और फिर वहाँ किसी दूसरे का प्रवेश वाकई निषेध हो जाता है । ये मित्र आपके इष्ट भी हो सकते है, आपके प्रियजन में से कोई एक हो सकते है। यह मित्रता सार्थक भी तभी हो सकती है जब आपमे भी यह कहने का अटल विश्वास और साहस हो कि अब मेरे मित्र के अलावा यहां किसी और का प्रवेश निषिद्ध है चाहे वह मित्र का अतिप्रिय ही क्यो न हो।
      सोच कर देखिये......सर्वोत्तम पायदान है यह मित्रता का और जिसने ऐसा मित्र पा लिया या जो ऐसा मित्र बन गया, भौतिक संसार तुच्छ है उसके सामने।

टिप्पणियाँ

  1. जितनी बार आपको पढ़ा है, उतना ही सुकून मिलता हैं

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  2. अटूट विश्वास का नाम ही मित्रता है.
    गजब की अभिव्यक्ति

    नई पोस्ट 👉🏼 पुलिस के सिपाही से by पाश
    ब्लॉग अच्छा लगे तो फॉलो जरुर करना ताकि आपको नई पोस्ट की जानकारी मिलती रहे.

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह! अद्भुत
    अपनी लिखी कुछ पंक्तियाँ आपके इस आत्ममुग्ध करते व्यकत्व पर।
    दोस्ती शब्द नही होती
    शब्द तो टूटतें हैं
    बिखर जाते हैं
    शब्दों सी दोस्ती
    न करना कभी
    दोस्ती करो अक्षर जैसी
    जो कभी क्षर नही होते
    साश्वत होते है, अमिट
    एक बार अंकित
    हो जाय तो, अक्षूण
    पुरे ब्रह्माण्ड में व्याप्त।

    कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 01-07-2021को चर्चा – 4,112 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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  5. "जिसने ऐसा मित्र पा लिया या जो ऐसा मित्र बन गया, भौतिक संसार तुच्छ है उसके सामने।"
    बिल्कुल सत्य है ,जिसने ऐसी मित्रता पा ली या बना ली उसके लिए कुछ भी पाना शेष नहीं बचा,अब तो मेरा भी मन कर रहा है कि- इस पुस्तक का आनंद उठाऊँ .सादर नमन आपको

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  6. पावन होली कीशुभकामनाएं......
    आप की लिखी.....
    इस खूबसूरत पोस्ट को......
    दिनांक 20/03/2022 को
    पांच लिंको का आनंद पर लिंक किया गया है। आप भी सादर आमंत्रित है।
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  7. आस-पास मित्रता दिखलाई नहीं पड़ी.. इतिहास-साहित्य में दर्ज मित्रता की कहानी के आधार पर ढूँढना शायद सही नहीं

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