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मौन

वो मूक रही
बहुत बार
बहुत जगह
कभी प्रश्न का औचित्य नहीं समझ पायी
इसलिए निरुत्तर रही
कभी कुछ कड़िया नहीं जोड़ पायी
उस वार्ता की, जो हो नहीं पायी
जबकि वो करना चाहती थी
कभी शब्द गले में अटक कर रह गये
उसके लाख चाहने के बावजूद
वो पलायन कर गये 
अक्षर अक्षर जोड़कर
उसने एक वाक्य बनाया
जिसे कोई पढ़ नहीं पाया
फिर उसने कई वाक्य बनाये
और कविताएं रच डाली
उसके मन में डोलती रहती है ऐसी
हजारों कविताएं
जिन तक कोई पहूँच नहीं पाता
इसलिए उसने
मौन चुना
एक ऐसा संवाद 
जो हजार वार्ताओं पर भारी पड़ा 
 

टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29-07-2021को चर्चा – 4,140 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह !! बहुत बहुत बधाई 👏🏽👏🏽👏🏽

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 29 जुलाई 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    जवाब देंहटाएं
  4. मौन बहे शब्दों के पार...। सुन्दर रचना।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर! गहन भाव ,मौन रचता ही रहता है अथक काव्य।
    सुंदर।

    जवाब देंहटाएं

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