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मार्च, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्रेम

क्या आसान है प्रेम को समझ पाना शायद नहीं.... पर मुश्किल भी नहीं, लेकिन इसकी परिभाषा इतनी गहन बना दी गई है कि साधारण इंसान समझ ही न पाये असल में प्रेम परिभाषाओं के परे है बस महसूस कर पाने की अवस्था है अगर एक बार आपने चख लिया इसका स्वाद तो आप जीवन भर के लिये प्रेम को पा लेते है बस, अनुभूत करने की आपकी क्षमता ऐसी हो जो आपकी कल्पनाओं से भी बाहर हो कोई भी युगल पति-पत्नी हो या प्रेमी-प्रेमिका धीमे धीमे वक्त के पहियों पर चलते हुए प्रेम मे रहते हुए एक न एक दिन माँ बेटे सा ताना बाना बुन ही लेते है वे सुलझा लेते है प्रेम की गूढ़ गुत्थियां और पहूँच जाते है आध्यात्मिकता के सर्वोच्च पायदान पर बस इतना ही तो है प्रेम पर बिना चखे कैसे मानोगे बिना जीये कैसे जानोगे प्रेम में खोकर ही तो प्रेम पाओगे ये वो पक्का रंग है जो छूटता नहीं है वो रमता है बस धूनी की तरह

क्या है प्यार

क्या है प्यार ? सोशियल मीडिया पर फैला मायाजाल या नर्म मखमली शब्दों का जामा.... चंद मुलाकातों की मोहब्बत या एक जुनून अंधा.... हवा में उड़ती ऊँची पतंग या कच्चे धागे सी उलझती बहस..... चमकीली पन्नी में सिमटे उपहार या उन उपहारों की कीमत..... एक प्यारी सी दोस्ती या बेनाम रिश्ता जज्बातों से भरा.... कशमकश इसे बनाये रखने की या मुक्त कर हवा में उड़ा देने की.... क्या है प्यार ? अवस्था अधर में झूलते रहने की या खिंच कर तार अपने एक जगह अटक जाने की... हर बार बताते रहना,दिखाते रहना या चुपचाप मौन होकर जी जाना.... देह से जोड़कर रखना या देह से परे होकर महसूसना.... टुटना...बिखरना...और गिडगिडाना या जुड़ना...निखरना और रंगों को भरना न जाने क्या है प्यार लेकिन जो सहज सरल हो वही है प्यार जो शर्तों से परे हो जो बाध्य न हो जो पल दो पल का आकर्षण न हो जो रंग रुप में न हो जो साँवली रंगत में झलकता हो जो ऊँचा तो हो...पर कद की ऊँचाई न देखता हो जो बंधन में न होकर भी प्रेम से बंधा हो जो आजाद तो हो पर आजाद होना न चाहे जो प्रेम के बंधन को जी जाये जो स्वतंत्र होकर छटपटाये जो बंधन मे

युद्ध विकल्प नहीं हो सकता

नहीं, युद्ध कभी विकल्प नहीं हो सकता कभी सोच कर देखो उस घर की चौखट को जिसे लाँघकर जाने वाला अब लौटकर नहीं आयेगा,लेकिन उधड़ती रंग की पपड़ियों में से एक शहीद के घर होने का गर्व झाँकेगा झांक कर देखो उस पिता की आँखों में जो पथरा गई है, लेकिन गर्वित है कलेजा टटोल कर देखो उस माँ का जो मीडिया के सामने कहती है कि गर्व है मुझे अपने बेटे पर महसूस करके देखो उस नवविवाहिता के चुड़ियों भरे हाथ बात करके देखो पति के साथ दो दशक जी चुकी उस महिला से जो अब एक शहीद की गर्वित विधवा है सुनना उनके बच्चों की किलकारियां देखना उनकी आँखों की चमक जो अनजान है इस गर्व से, कि उनके पिता शहीद है शहीदों के साथ जुड़ा ये शब्द 'गर्व' आखिर है क्या हाँ.....हम सब है गर्वित हमारी सेना पर, हमारे जवानों पर लेकिन असमंजस में हूँ  ,कि क्या पथरा गई वो दो जोड़ी बूढ़ी आँखे वाकई गर्व में है ? क्या शान से खड़ा रह पायेगा वो घर जिसे सहेजने वाले हाथों का ही पता नहीं ? क्या उन नन्हों की किलकारियां खुशी से गूँजती रहेगी सदैव? क्या वो चुड़ियां बिना खनके रह पायेंगी ? क्या महीने की तीस तारीख अब भी उस पत्नी के लि