क्या आसान है प्रेम को समझ पाना शायद नहीं.... पर मुश्किल भी नहीं, लेकिन इसकी परिभाषा इतनी गहन बना दी गई है कि साधारण इंसान समझ ही न पाये असल में प्रेम परिभाषाओं के परे है बस महसूस कर पाने की अवस्था है अगर एक बार आपने चख लिया इसका स्वाद तो आप जीवन भर के लिये प्रेम को पा लेते है बस, अनुभूत करने की आपकी क्षमता ऐसी हो जो आपकी कल्पनाओं से भी बाहर हो कोई भी युगल पति-पत्नी हो या प्रेमी-प्रेमिका धीमे धीमे वक्त के पहियों पर चलते हुए प्रेम मे रहते हुए एक न एक दिन माँ बेटे सा ताना बाना बुन ही लेते है वे सुलझा लेते है प्रेम की गूढ़ गुत्थियां और पहूँच जाते है आध्यात्मिकता के सर्वोच्च पायदान पर बस इतना ही तो है प्रेम पर बिना चखे कैसे मानोगे बिना जीये कैसे जानोगे प्रेम में खोकर ही तो प्रेम पाओगे ये वो पक्का रंग है जो छूटता नहीं है वो रमता है बस धूनी की तरह
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है