हम साल के अंतिम दो दिनों में है......ये साल इतनी उहापोह लेकर आया कि हम कब से इसे अलविदा कहना चाह रहे थे , लेकिन हमारे चाहने से कहाँ कुछ होता है। सब कुछ नियत समय पर ही होना तय रहता है तो यह इस साल की सबसे बेहतरीन सीख रही कि वक्त की मार के आगे सब प्लानिंग फेल है। घुमक्कड़ी वाले दिन जैसे रफादफा हो गये , सब अपने ही घरों में सिमट गये हालांकि अब खौफ इतना नहीं रहा लेकिन बेवजह का घुमना अब गायब है और हमारी हँसी ये मुआ मास्क खा गया । हर साल की तरह ये जाने वाला साल भी यही बता कर जा रहा है कि हर वो चीज जो पा गये...क्षणिक रही, उसे पाने की खुशी क्षणिक रही....और जो न मिला वो हमेशा प्रिय रहा, स्थिर रहा, अलौकिक रहा,निरंतर रहा। गैरजरूरी चीजों को जरुरी समझने वाले हम सब उलझे रहे गैरजरूरी फंदों में और उधेड़ते रहे जिंदगी के लम्हों को....इस साल ने अहसास कराया कि वास्तव में जरुरी क्या है....इसने सीखाया लचीलापन,इसने सीखाया प्राप्य की अहमियत, इसने सीखाया कि बेसिक नीड आज भी हमारी रोटी कपड़ा और मकान ही है लेकिन हम और अधिक के पीछे भागते रहे । अधिक की चाह हर किसी को होती है लेकिन जो पास है
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है