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दिसंबर, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

इतवार

साल काअंतिम महीना, अंतिम इतवार सोमवार, फिर नयी शुरूआत मेरे इन इतवारों पर बोझ बड़ा है मैं हर काम इतवार पर जो डाल देती हूँ कोई भी काम आज न हुआ चलो, इतवार को करेंगे और मेरा इतवार सारी जिम्मेदारी अपने सिर लेता है आखिर हर आठवें दिन फिर आ जाता है पेंडिग कामों की लिस्ट साथ लिये चलता है शायद साल के पहले इतवार चर्चा की थी मैंने एक साड़ी पेंट करनी थी एक बड़ा सा कैनवास भी इंतजार में था डिक्लटरिंग का वादा भी खुद से था खुद का ख्याल मेरी लिस्ट में सबसे पहले था रेगुलर चेकअपस् की जिम्मेदारी थी परिवार की भागादौड़ी भी साथ थी खाने से जंक हटाना था सुबह सुबह समय से आगे दौड़ना था कुछ रिश्तों की बिगड़ती लय को भी साधना था अब यही लिस्ट लिये खड़ा है इतवार मेरे आगे मैंने भी नजरे मिलाकर कहा गये सारे इतवार मेरे अपने रहे भले कुछ काम पेंडिंग रहे लेकिन जो काम पूरे हुए उन पर गुरूर हुआ छूटे पर भला कैसा मलाल हुआ जंक हटा नहीं पर कम हुआ खाने की प्लेट में सलाद बढ़ा साड़ी न सही पर ब्लाऊज जरूर पेंट हुआ कैनवास बड़ा हो या छोटा चित्र जरूर उभरा यात्राएं बेहद हुई , छूटते रहे नियमित काम फिर भी सु

पहाड़

स्पीति यात्रा के दौरान वहाँ के पहाड़ों ने मुझे अपने मोहपाश में बांधे रखा । उनकी बनावट, टैक्चर बहुत अद्भूत था। वे बहुत लंबे, विशालकाय, अडिग थे। मनाली से काजा का दुर्गम रास्ता पार करते हुए इनसे मौन संवाद होता रहा। मैं इनकी ऊँचाई और आस पास की नीरवता से लगभग स्तब्ध थी। ये एकदम सीधे खड़े से पहाड़ थे जैसे कोई खड़ा रहता है सीना ताने। कालक्रम की श्लांघाओं से दूर ये साक्षी रहे साल दर साल होने वाले परिवर्तनों के।             उन दुर्गम रास्तों से गुजरते हुए, ग्लेशियरों को पार करते हुए बहुत बार मन ने सोचा कि क्या ये हमेशा से ऐसे ही खड़े है। क्या इनका स्वरूप यही था ? इन पहाड़ो में इतना आकर्षण क्यो है हालांकि ये अलग बात है कि इस नीरव पथ पर दिल की धड़कने तीव्र गति से चलती रही, सड़क की स्थिती ने चेहरे पर बारह बजा रखे थे , इस रास्ते पर यात्रा करना एक साहसिक काम है और इस साहस में ये पहाड़ हर मोड़ पर साथ निभाते रहे और यह यात्रा मेरे जीवन की अविस्मरणीय यात्रा बन गयी।      मैंने इन पहाड़ो के अलग अलग विडियों बनाये, इनकी ऊँचाई,इनकी बनावट मुझमे जैसे रचबस गयी। आज जब अटलजी की ये कविता सुनी तो लगा जैसे ये पहाड़

इमरोज

अमृता की कहानी का मुख्य अध्याय , मुख्य पात्र इमरोज, जिसने आज इस दुनिया को अलविदा कह दिया। प्रेम, इश्क, मोहब्बत इन दिनों बहुत सामान्य सी बात है और बहुत आसानी से उपलब्ध भी है। इसके बड़े बड़े किस्से हमे अक्सर देखने सुनने मिल जाते है, नहीं मिलता तो सिर्फ "इमरोज" क्योकि इमरोज होना आसान नहीं है।        एक बहुत लंबा जीवन जीने वाले इमरोज ने अपना पूरा जीवन अमृता को समर्पित कर दिया और समर्पण भी ऐसा कि कोई मिसाल नहीं सिवाय स्वय इमरोज के। अमृता को जानने वाले जानते है कि इमरोज क्या थे । अमृता से परे  हटकर देखते है तो इमरोज एक कवि और चित्रकार थे लेकिन अमृता से मिलने के बाद उनके चित्र , उनकी कविताएं सिर्फ अमृता के ही इर्द गिर्द रही । उनका कतरा कतरा अमृता के लिये प्यार से लबरेज़ रहा।            अक्सर सोचती हूँ कि पीठ पर साहिर नाम उकेरती अमृता की अंगुलियां इमरोज को कैसी लगी होंगी ? इससे उन्हें पता चला कि वो साहिर को कितना चाहती थीं। लेकिन इमरोज के अनुसार इससे फ़र्क क्या पड़ता है। वो उन्हें चाहती हैं तो चाहती हैं। मैं भी उन्हें चाहता हूँ। समर्पित प्रेमी के लिये शायद इन बातों के कोई मायने नह

साड़ी

आज इंटरनेशनल साड़ी डे है । एक वक्त था जब मैं हर रोज साड़ी पहनती थी, साड़ी पहनना आदतन था। अब भले ये आदत थोड़ी पीछे छूट गयी है पर साड़ी से मोह हर रोज बढ़ता जा रहा। साड़ी की मेरी समझ अब पहले से कही अधिक है।             जैसा कि सब कहते है कि साड़ी महज एक कपड़ा नहीं है वो इमोशन है , मैं इस बात से पूरा सरोकार रखती हूँ । साड़ी सच में आपके भाव है, आपकी अभिव्यक्ति है , आपके व्यक्तित्व का आइना है।    हम सबकी अपनी अपनी पसंद होती है और कुछ चुनिंदा रंगों की साड़िया स्वत: ही हमारी आलमारी में जगह बना लेती है।कुछ साड़ियों दिल के बेहद करीब होती है , कुछ में कहानियां बुनी होती है, कुछ के किस्से गहरे होते है, कुछ हथियायी हुई रहती है, कुछ उपहारों की पन्नी में लिपटी होती है, कुछ कई महीनों की प्लानिंग के बाद आलमारी में उपस्थित होती है तो कुछ दो मिनिट में दिल जीत लेती है ....मेरी हर साड़ी कुछ इन्ही बातों को बयां करती है लेकिन एक काॅमन बात है हर साड़ी में, कोई भी साड़ी कटू याद नहीं देती और यही बात साड़ी को खास बनाती है। आप अपनी आलमारी खोलकर देखिये , साड़ियां मीठी बातों से ही बुनी होती है।     साड़ियां माँ