मैं पुकारती हूँ तुम्हे पर वो पुकारना शुन्य में विलिन हो जाता है जब भी दर्द में होती हूँ किसी को न दिखने वाले मेरे आँसू छलकना चाहते है तेरे आगोश में पर वो जज्ब नहीं हो पाते ते...
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है