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जून, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

देवीस्वरूपा

एक ताजातरीन मुद्दा इन दिनों मीडिया पर छाया है । सरकारें फिर से एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रही है। बुद्धिजीवी बहस कर रहे है । मजदूरों के पलायन से सभी का थोड़ा ध्यान भटका है और यह  मुद्दा है एक मादा हाथी और उसके अजन्मे बच्चे की मृत्यु या हत्या का । नि:संदेह संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है यह । जघन्य अपराध है किसी मुक को यूँ उत्पीड़न देना । यह दर्द बाकी सभी लोगो की तरह मेरे भीतर भी दौड़ गया था । जैसाकि हर बार होता है कोई भी दर्द या खुशी मैं भीतर जमा करके नहीं रख सकती , उसे बाहर निकलना ही होता है कभी शब्दों में तो कभी चित्रों में। बहुत से लोग इस तरह से अपना रोष, खुशी, दुख जाहिर करते है। मैंने भी चित्र बनाया पर पता नहीं क्यो एक टीस सी मन में बाकी रह गयी।          हालांकि यह कृत्य क्षमायोग्य है ही नहीं लेकिन मेरा ध्यान इससे हटकर था। नहीं जानती कि अपने मन के भावों को समझा भी पाऊँगी कि नहीं ।            बचपन से ही कहानियों में पढ़ा था कि अक्सर  राजा किसी  मुजरिम को सजा देने के लिये उसे पागल हाथी के साथ छोड़ देते थे । या फिर कभी कभी हाथी क्रोध में आपा खो देते थे और अपनी ही देखभाल करने वाले महावत को

मन:स्थिति

कठपुतली है वो लोग जो गुलाम है क्षण प्रतिक्षण बदलती  अपनी ही मन:स्थिति के तुम प्रयास करना  एक स्थिर मन:स्थिति का उन्माद, क्रोध, संवेग और भय में ये तुम पर हावी हो जाती है तुम अडिग रहना गर डगमगा भी जाओ तो थाम लेना उसे जिससे तुम बने है तुम्हारी अपनी प्रकृति तुम्हारा अपना वजूद जो खो सकता है खुद को इन क्षणिक आवेगों के तहत तुम्हे पता है ज्ञानयोग में स्वामीजी कहते है कि हमारी आत्मा की भी  एक अन्तरात्मा होती है वही सत्य होती है तुम उसका आवरण  कभी किसी के सामने मत खोलना तुम्हारे अलावा  कोई नहीं जान पायेगा उसे लेकिन  मुद्दा ये है  कि तुम उसे कितना जानते हो ?  अगर तुम जान गये  तो फिर तुम मन:स्थिति के नहीं बल्कि मन:स्थिति तुम्हारी गुलाम होगी