एक ताजातरीन मुद्दा इन दिनों मीडिया पर छाया है । सरकारें फिर से एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रही है। बुद्धिजीवी बहस कर रहे है । मजदूरों के पलायन से सभी का थोड़ा ध्यान भटका है और यह मुद्दा है एक मादा हाथी और उसके अजन्मे बच्चे की मृत्यु या हत्या का । नि:संदेह संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है यह । जघन्य अपराध है किसी मुक को यूँ उत्पीड़न देना । यह दर्द बाकी सभी लोगो की तरह मेरे भीतर भी दौड़ गया था । जैसाकि हर बार होता है कोई भी दर्द या खुशी मैं भीतर जमा करके नहीं रख सकती , उसे बाहर निकलना ही होता है कभी शब्दों में तो कभी चित्रों में। बहुत से लोग इस तरह से अपना रोष, खुशी, दुख जाहिर करते है। मैंने भी चित्र बनाया पर पता नहीं क्यो एक टीस सी मन में बाकी रह गयी। हालांकि यह कृत्य क्षमायोग्य है ही नहीं लेकिन मेरा ध्यान इससे हटकर था। नहीं जानती कि अपने मन के भावों को समझा भी पाऊँगी कि नहीं । बचपन से ही कहानियों में पढ़ा था कि अक्सर राजा किसी मुजरिम को सजा देने के लिये उसे पागल हाथी के साथ छोड़ देते थे । या फिर कभी क...
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है