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हलाहल

उसका घाव नासूर है
जो भरेगा नहीं कभी
उसके गले में हलाहल है
जो नीचे उतरेगा नहीं कभी
उसके ह्रदय में सिर्फ प्रेम है
जो बाहर निकलेगा नहीं कभी 

#क्षणिका

टिप्पणियाँ

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार(२१-०७-२०२१) को
    'सावन'(चर्चा अंक- ४१३२)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर रचना - - नीलकंठ होना आसान नहीं।

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रेम भी हलाहल से कोई कम तो नहीं। धारण कर सको तो शिव हो जाओ, ना सँभाल पाओ तो शव हो जाओ।

    जवाब देंहटाएं

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उम्मीद

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