ये नन्हे से जूते मैंने बनाये है , एक बहुत प्यारी क्रोशिए की डॉल के लिये । डॉल का फोटो भी जल्दी ही शेयर करूँगी, बस उसे अपनी मंजिल तक पहूँच जाने दीजिए । अब आते है मुद्दे की बात पर....जब मैं यह नन्हे सैंडल बना रही थी तो जूतों से जुड़ी कितनी ही कहावते मेरे दिमाग में आ रही थी जिनमे से एक यह थी कि कभी फलां के जूतें में पावं रखकर देखना तब तुम्हे उन जूतों की राह पता चलेगी। मैं इस बात से एकदम सरोकार रखती हूँ कि किसी भी सफल/असफल इंसान की डगर उसके अपने संघर्षों से बनी होती है। किसी के जूते आवाज करते है तो कोई चुपचाप राह माप जाते है। लेकिन यहां बात है नन्हें कदमों की , जो लड़खड़ाते हुए अभी चलना ही सीख रहे है। खासतौर से अभिभावकों के लिये मेरा ये मैसेज है कि ये नन्हे पावं एक दिन आपके जूतों में फिट होंगे, इनकी भी अपनी डगर होगी, इनके भी अपने संघर्ष होगे । इन्हे आप कोई बनीबनायी राह मत दिखाईये बल्कि जिस राह ये चलना चाहे आप उस राह को उन्हे बनाना सिखाईये। आप अभिभावक है , अपने अनुभवों से उन्हे सिखाईये कि पहले अपने जूतों के कंकर निकाले ,फिर मजबूती से पावं जमाते हुए रास्ते पर बढ़े । नि
मेरे मन का एक कोना
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है