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जुलाई, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वो बच्ची

वो बच्ची.... दद्दू उसे बुलाती रही गलत उसकी नजरों को भांपती रही ताड़ती थी निगाहे उसे तार तार वो होती रही कातर नजरे गुहार लगाती रही शर्मसार इंसानियत रपटे लिखाती रही धृतराष्ट्र राज करते रहे हवालातों में पिता मरते रहे बाहर औलादें सिसकती रही न जाने किस भरोसे वो तुफानों से टकराती रही खेलने खाने के मनमौजी दिनों में वो जीवन के तीखे तेवरों को अपनी कम उम्र में पिरोती रही रग रग, रोम रोम में साहस को सजाकर अदना सी होकर खासमखास से पंगा लेती रही लेकिन..... रसुखदारों के आगे वो टिक न सकी उसकी लाखों की इज्जत दो टके की बनी रही न जाने कितने शकुनी षड्यंत्रों की चाल में फंसती रही हिम्मत न हारकर भी वो अपनों को खोती रही,पर हर हाल में जुझती रही न जाने कौन जीता, कौन हारा खेल बिगड़ा, पासा पलटा अब अपनी ही सांसों से वो जुझ रही

हिमा

तुम उड़ान भरो पंखों में अपनी जमीनी खुशबू लेकर उड़ो सातवें आसमान के भी पार उड़ो तुम उड़ो पाँवों में बाँध कर घूंघरूँ अपनी कामयाबियों के और उड़ती रहो.....लागातर...बिना थके...अनवरत तुम भारत पुत्री हिमा हो तुम नन्ही सी हो जो जीतने पर खुश होकर दौड़ पड़ती है तिरंगा अपने कांधे पर उठाकर और सार्थक कर देती है 'विश्व विजयी तिरंगा प्यारा' की धारणा को तुम मान हो देश का गौरव हो, सम्मान हो तुम बटोर लाई हो खुशियाँ तुम समेट रही हो कुछ कालजयी लम्हें तुम मुसकान हो देश की माना कि.... ये देश ढ़िंढ़ोरा नहीं पीट रहा तुम्हारी सफलता का शर्मिंदा है हम... लेकिन यकिन मानो हिमा मुक खड़ा यह देश भी छलका रहा है अपनी आँखे बिल्कुल वैसे.... जैसे तुम्हारी छलकी थी राष्ट्रगान को सुनकर जब पराये देश में फिरंगियों के बीच ऊँचा उठता है तिरंगा .....और गुंज उठता है जन गन मन तो हम सब नतमस्तक हो जाते है तुम्हारे आगे तब तुम अकेली.... एक पुरा देश होती हो हिमा तुम समुचे भारत को खुद में समेट लेती हो तुम्हे प्यार बहुत सारा हिमा 😍

स्नेह की आँच

लगभग दो ढ़ाई महिने पहले मिल कर आई थी माँ (दादी) से। बहुत कमजोर लग रही थी और इस बार जैसे हिम्मत भी हार गई हो....बिल्कुल टुटी हुई। मेरी आँखे तब भी भर आई थी और अपने घर आने के बाद भी, उन्हे याद कर अक्सर भर आती थी। अभी दो दिन पहले फोन पर बात हुई तो माँ की आवाज मुझे कुछ अलग सी लगी । भाभी और पापा से बात हुई तो पता चला कि माँ पहले से भी कमजोर हो गई है, खाना ना के बराबर कर दिया है....बस, तब से मन अटक रखा है....यंत्रवत काम करते हुए भी मन उनके इर्द गिर्द ही भटक रहा है। मेरा उनके पास राखी पर जाना तय था, लेकिन मन नहीं मान रहा था और मैंने कल की ही टिकिट बना कर पापा को फोन कर दिया कि मैं आ रही हूँ। मैं अचानक पहूँच कर माँ को सरप्राइज देना चाहती थी, उनकी झूर्रियों को हँसते देखना चाहती थी । मम्मी के जाने के बाद माँ मे ही अपना सब देखती हूँ मैं। वो दुनियां की सबसे प्यारी और सबसे खुबसूरत दादी है।           लेकिन......अभी अभी पापा का फोन आया बोले कि बेवजह आकर परेशान मत हो , माँ ठीक है एकदम ।  माँ से बात करवाई और बेचारी मेरी दादी.....मेरे दादाजी और पापा के प्रेशर में आकर बोलती है कि मैं ठीक हूँ , तु क्या करे

आर्टिकल 15

कल आर्टिकल 15 देखी....मनोरंजक फिल्मों से बहुत अलहदा, यथार्थवादी फिल्म। पूरी फिल्म झंझोड़ कर रख देती है...फिल्म के संवाद तमाचे से मारते है....कितने ही दृश्यों में मुझे अपनी आँखों में कुछ पिघलता सा लगा। हालांकि यह पोस्ट कोई फिल्म समीक्षा नहीं है लेकिन फिर भी बौद्धिकता और तार्किकता रखने वाले हर दर्शक को यह फिल्म देखनी चाहिये। हम जैसे मेट्रो सिटी में रहने वाले लोगो के लिये बहुत आसान होता है अपने ड्रॉइंग रुम में बैठकर 26 जनवरी और 15 अगस्त के दिन देशभक्ति के स्टेटस अपडेट करना....हमे अपने देश पर गर्व होता है क्योकि हमने प्रतिकूल परिस्थितिया देखी ही नहीं होती है....हमे जातिगत भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा.....हमारे लिये दुनिया अच्छी है, देश अच्छा है....मैं भी हर बार हैशटैग करती हूँ "लाइफ इज ब्युटीफुल"। हमारी जिंदगी खुबसूरत होती है हर बार। जब हम अखबार में किसी देहात की किसी बच्ची के गैंग रेप की घटना पढ़ते है तो हम परेशान होते है क्योकि हमारी संवेदनशीलता अभी मरी नहीं है .....लेकिन हफ्ते भर में वो घटना किसी दुसरी ऐसी ही घटना को अपनी जगह दे देती है.....गाँव बदल जाता है, बच्ची बदल जाती ह