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संदेश

जनवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अनुपस्थिति

मैं अब तोड़ना चाहती हूँ उस अनवरत संवाद को जो तुम्हारी अनुपस्थिति में हुआ है तुमसे लागातार क्योकि  अब ये मुझे तोड़ने लगा है बाहर आना है इस भ्रम से कि तुम हो बस, याद रखनी वही बातें जो रुबरू कभी हुई थी याद रखने है जीवन के वही पाठ जो तुमसे सीखे या तुम्हारे साहचार्य ने सिखाये  जब तुम नहीं हो तो स्वीकार करना और जब हो, तो टिमटिमाते उन तारों को देख मुस्कुराना साफ आसमान में  उस चाँद के दाग देखना और  मन ही मन बुदबुदाना स्पष्टता ही जीवन है  और ये स्पष्ट है कि तुम्हारा होना क्षणिक है, जबकि न होना शाश्वत शुक्रिया..... तुम्हारा न होना भी  मुझे कितना कुछ सिखाता है  बस, इस न होने के होने को हमेशा साथ पाऊँ 

आता और जाता समय

हल्की गुलाबी ठंड वाली शाम के बाद की रात थी उस दिन..... नहीं, रात नहीं... शायद शाम की बत्ती का समय था।                     पूजा किचन में गयी, क्या बनाऊँ ?  कुछ समझ न आया तो बाहर सोफे पर आकर पसर गयी। कभी कभी उस पर आलस बहुत हावी हो जाता है और उस दिन वो ऐसे ही मोड में थी।     अचानक फोन की घंटी बजी। उसने फोन हाथ में लिया और देखा तो एक नाम स्क्रीन पर आ रहा था। वो नाम यूँ तो सेव शायद हमेशा से ही था लेकिन कॉल लिस्ट में पहली बार उभर कर आया था ।      कभी कभी हमे पता ही नहीं होता कि कौन कौन हमारी कॉंटॅक्ट लिस्ट में है क्योकि कॉल लिस्ट सामान्यता चुनिंदा नामों से ही भरी रहती है और अक्सर उन्ही पर फिंगर प्रेस कर हम कॉल बैक कर लेते है। बहुत कम बार हमे कॉन्टेक्ट लिस्ट देखनी पड़ती है लेकिन जब अनायास ही ऐसे कॉल आते है और स्क्रीन पर नाम अपीयर होता है तो मन में शायद खुशी भी होती है कि हमने इन्हे सेव रखा हुआ है।              पूजा ने बहुत सहजता से फोन पिक किया और सहज आवाज में बात की। लगभग एक घंटा बात हुई। पूरी बातचीत में पूजा के चेहरे के भाव लगभग स्थिर रहे।          घंटे भर बाद जब उसने फोन रखा तो दिल में जैसे

प्रेम

निश्छल प्रेम जब दोनों तरफ से होता है तो उच्चतम पायदान पर जाकर अध्यात्म बन जाता है वही एकतरफा प्रेम  अपने आप में अध्यात्म होता है

विदा

मैं कुछ देर तक पुकारूँगी फिर चली जाऊँगी चाँद के पार या शामिल हो जाऊँगी  उन सितारों में कही जहाँ मेरे सुकून की छाँव है 

जिंद़गी; ऊँट की करवट

एक राह के बाद  हर दूसरी राह को पकड़ते हुए क्या कभी सोचा है तुमने ? देखा है पीछे मुड़कर  उस छूटी हुई राह को या लौट कर आये हो कभी उसी जानी पहचानी राह पर  या कोई अदृश्य हाथ हर बार ले गया तुम्हे आगे बढ़ती हर राह पर या  मंजिल तक पहूँच कर फिर दोराहे पर पहूँचे हो तुम कोल्हू के बैल की तरह घूम घूमकर वही अटके हो तुम या बाधादौड़ की तरह दौड़ते हुए हर बाधा को पार किया है तुमने अपने हौसलों को आसमां दिया है तुमने या  बैठ गये हो थक हार कर उसी राह पर जहाँ से चले थे या जूनून अभी भी बाकी है बाकी है तुम्हारे हिस्से की राहे उसके ऊपर का आसमान या देख रहे हो बाट किस्मत की हाथ पर हाथ धरे गर हो किसी चमत्कार की उम्मीद में तो सुनो तुम  ये जो ज़िंदगी है ना ऊँट की करवट है  इससे ना उम्मीद रखना ना ही मनमाफिक़ सपनों से तोलना जिस करवट बैठाये उसी करवट अपना कारवां बना लेना इसके थपेड़ों से डरना मत ये हर बार गले नहीं लगाती ये परखेगी तुम्हें मापेंगी तुम्हें तुम्हे खरा सोना बनायेगी इसके साथ के बहाव में हर बार बह जाना अपने तुफानों को  अपने ज्वालामुखी में समेट लेना अपना लावा मत बयां करना जो इस राह मिलेंगे उनसे मिलते हुए  तुम इस जिंदगी

लौ बाकी रखना

जब बच्चें आँगन छोड़ सात समंदर पार चले जाते है....... बस, ऐसे ही समय के जज्ब़ात है ...जिन्हे शब्दों में पिरोया है अपनी मिट्टी छोड़कर....तुम किसी और जमीं की महक लेने जा रहे हो  जाओ..... उस जमीं के साथ एक खुला, नया सा आसमां तुम्हारी उड़ान देखने तत्पर है हर नयी चीज तुम्हारी राह में है नयी सुबह, नयी शाम एक नया सा सूरज कुछ चमकते सितारें तुम्हारे इंतजार में है कुछ मिलते जुलते हाथ साथ चलते कांधे नयी दुनिया की कुछ नयी सी बाते इन सब से तुम गर्मजोशी से मिलना हाथ न बढ़े गर  तो हाथ तुम बढ़ाना हर चीज जानना, समझना, सीखना उस शहर के लिये तुम नवजात हो नवजात की तरह ही  धीरे धीरे चलना सीखना दौड़ने की जल्दी मत करना दौड़ने के पहले चलना पड़ता है और चलने के पहले एक एक कदम साधना पड़ता है लड़खड़ाने से कभी मत डरना डगमगा कर ही सही , पर आगे बढ़ना अपने नन्हे कदमों से  एक नया आकाश मापना लेकिन याद रखना आसमा को छूने के लिये अपनी जमीं  अपनी जड़े मत खोना अपनी विरासत अपने नैतिक मूल्यों को सहेजे रखना अपने नथुनों में  अपनी मिट्टी की खुशबू बाकी रखना अपनी जड़ों की पकड़ मजबूत रखना बरगद की तरह फैलना खूल कर जीना लंबी उड़ान भरना अपने सपनों को स

जिजिविषा

पिछला महीना बहुत व्यस्तता वाला रहा और हाल इस नवजात महीने में भी वही है। सुकून के कुछ पल तलाश रही हूँ लेकिन वो मिल नहीं पा रहे इसलिये थोड़ा धीर धर कर बैठी हूँ।        यूँ तो व्यस्त रहना बहुत अच्छा है, इसके चलते हमे तनाव नहीं घेरते। इस महीने की शुरुआत में मैं लगभग दस दिनों तक घर के बाहर थी...घर बंद था । जब भी मैं यूँ घर बंद करके जाती हूँ, सबसे अधिक मुआवजा मेरे नन्हे पौधों को देना पड़ता है , लेकिन इस बार मैं उन्हे नीचे वॉचमेन की निगरानी में छोड़ गयी थी । दस दिन बाद जब लौटी तो सारे पौधें खिले खिले थे....नीचे पेड़ों के सामीप्य में वो भी फैलाव की कोशिश करने लगे लेकिन थे तो गमलों में ही ना ....बस, थोड़ा सा फैल कर रह गये ।       एक दो दिन बाद मैं सभी पौधों को ऊपर लेकर आयी और थोड़ी काट छाट कर उन्हे फिर से खिड़की में सजाया। यूँ तो मुझे अपने सभी पौधें प्यारे है। पौधें ही नहीं बल्कि मुझे अपने सभी गमले भी प्यारे है क्योकि एक एक गमले को मैंने अपने हाथ से रंगा है । ऐसे ही अपने सबसे फेवरेट गमले में एक फूलों वाला पौधा भी था लेकिन न जाने क्यो वो थोड़ा सुस्त सा लगा। मैंने ज्या