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मई, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

HT NO TV DAY

आजकल कुछ खास दिनों को मनाने का प्रचलन बहुत जोरो पर हैं, जैसे hug day,rose day,kiss day,chocolate day,mothers day,fathers day,daughters day,smile day और भी ना जाने क्या क्या ।लेकिन इन सब के बीच "हिन्दुस्तान टाइम्स" एक नई पहल लेकर आया है और पिछले दो सालों से इस मुहिम को सफल भी बना रहा है । HT NO TV DAY एक सार्थक प्रयास ।           पिछले दो सालों में HT ने ना केवल यह शुभ कार्य प्रारम्भ किया बल्कि इसे सफल बनाने के लिए भी भरसक प्रयत्न किये और निसन्देह: वह इसके लिये बधाई के पात्र है ।            इस "बुद्धु बक्से" ने हमारी भावी पीढ़ी को पूरी तरह से अपने चक्रव्यूह में फंसा लिया है ।गृहिणीयों की रचनात्मकता और कुशलता भी इसको भेंट चढ़ गई । जो समय परिवार के नाम होता है,वो समय भी ये डकार गया । हमे सब पता है फिर भी........... ।             मैं यहाँ TV के गुण और दोष नहीं गिनाने वाली हुँ ,वो तो हम सब को पता है ।मेरी इस post का पूरा श्रेय है HT की टीम को , जिनके जज्बे ने हम सबको प्रेरित किया tv बंद करने को ।मैं प...

पश्चिम बंगाल और सिक्कीम की मेरी यात्रा

.......बस के हिचकोलों के साथ अपनी सांसों के उतार-चढ़ाव को संयत करते हुए हम आखिरकार अपने होटल जगजीत तक पंहुच ही गये । ठंड हमे कपकपां रही थी,हम जल्दी से अपने अपने कमरों में जाना चाहते थे । बच्चों का कमरा हमारे कमरे से लगकर ही था । बच्चों को मौसम का विकराल  रूप बिल्कूल अच्छा नहीं लग रहा था ।            थोड़ी ही देर में हम सब रात के खाने के लिए dining hall में गये जो कि ऊपर की मंजिल पर था,वहाँ हम सभी साथी यात्रियों का आपस में परिचय हुआ । मुझे पता चला कि साथ वाली दोनो आंटी आपस में समधन हैं और बड़ी वाली आंटी जो कि ७५ वर्ष की है ,रिटायर्ड डाॅक्टर हैं,दुसरी आंटी म्युजिक टीचर है । मेरे बच्चों को दोनो आंटीज् बड़ी मस्त (उनकी भाषा में) लगी ।खाना बहुत लजीज़ था।हमे दुसरे दिन के कार्यक्रम के बारे में बताया गया । २२अप्रेल -                    सुबह का नाश्ता करने के बाद हम लोग माॅनेस्टरी देखने गये,जो कुछ ही कदमों की दूरी पर थी ।हमारे होटल से माॅनेस्टरी पास ही दिख रही थी ।हम आठ के समुह में थे और चढा़ई वाले रास्ते...

पश्चिम बंगाल और सिक्कीम की मेरी यात्रा

मैं बहुत उत्साहित थी,अपनी इस यात्रा को लेकर । पूरे दो सालों के बाद , फुर्सत के कुछ पल जूटा पाई थी मैं । हालांकि लेह की यादें अभी भी मेरे जेहन में ताजा थी,लेकिन एक नया पड़ाव मुझे अपनी ओर खींच रहा था ।        २१अप्रेल की हमारी "बुकिंग" लगभग तीन महीनों पहले हो चुकी थी। हमारी तैयारियाँ भी काफी समय पहले शुरु हो चुकी थी.....और फिर मुम्बई की चिपचिपाहट वाली गरमी भी जैसे हमे किसी पर्वतीय स्थल पर धकेल रही थी......। २१अप्रेल :- हमारा "ट्यूर" बागडोगरा से प्रारम्भ हुआ। मुम्बई से बागडोगरा की हमारी यात्रा दो चरणों में पूरी हुई.....। सुबह करीब साढ़े तीन बजे हम घर से निकले.... हवाईअड्डे की औपचारिकताओं को निपटा कर छः बजे हमने उड़ान भरी,आठ बजे तक हम दिल्ली पहुंचे और दुसरी हवाईयात्रा का इंतजार करने लगे,जो कि ११ बजे की थी । दिल्ली हवाईअड्डे की खुबसूरती निहारने में कब ११ बज गये पता ही नहीं चला ।अब हम हमारे गंत्व्य स्थल की यात्रा की ओर अग्रसर थे.....और १२:३० पर हम बागडोगरा हवाईअड्डे पर खड़े थे ।        हमारा "ट्यूर मैनेजर" हमारे स्वागत के लिए पहले से ही वहा...