एक पेड़ जब रुबरू होता है पतझड़ से तो झर देता है अपनी सारी पत्तियों को अपने यौवन को अपनी ऊर्जा को लेकिन उम्मीद की एक किरण भीतर रखता है और इसी उम्मीद पर एक नया यौवन नये श्रृंगार.... बल्कि अद्भुत श्रृंगार के साथ पदार्पण करता है ऊर्जा की एक धधकती लौ फूटती है और तब आगमन होता है शोख चटख रंग के फूल पलाश का पेड़ अब भी पत्तियों को झर रहा है जितनी पत्तीयां झरती जाती है उतने ही फूल खिलते जाते है एक दिन ये पेड़ लाल फूलों से लदाफदा होता है तब हम सब जानते है कि ये फाग के दिन है बसंत के दिन है ये फूल उत्सव के प्रतीक है ये सिखाता है उदासी के दिन सदा न रहेंगे एक धधकती ज्वाला ऊर्जा की आयेगी उदासी को उत्सव में बदल देखी बस....उम्मीद की लौ कायम रखना
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है