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अप्रैल, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

उभरी आँखों वाला वो

इरफान.....      न जाने क्यो , तुम्हारा चेहरा हटाये हट नहीं रहा। ऐसा भी नहीं है कि मैंने तुम्हारी हर एक फिल्म देखी हो या देखने की तमन्ना रही हो लेकिन हाँ जो भी देखी .....देखने के बाद दो दिन तक तुम मेरे जेहन में हमेशा रहा ।            आज जब तुम्हारे जाने का पता लगा तो एक बारगी दिल धक्क से रह गया और लगा जैसे कोई करीबी हाथ छोड़कर चला गया। तुम्हारे यूँ जाने और इतने शिद्दत से रह जाने से इतना तो यकीन हुआ कि दिलों में जगह तुम जैसे लोग बना सकते है। आज मेरे कॉंटेक्ट के लगभग सभी लोगो के स्टेटस में तुम हो। देखो, कितने करीब थे तुम सभी के।  मन रोने जैसा है लेकिन सामान्यतया मैं रो नहीं पाती इसलिये मैंने दर्द निकाला तुम्हारा स्कैच बनाकर। जब मैं तुम्हारी आँखें बना रही थी तो जैसे मेरे हाथ काँप गये। उन उभरी हुई आँखों में न जाने कितने मौन संवाद तैर रहे थे। तुम्हारी आँखे न जाने किस नशे में रहती थी ....हर बार...हर फिल्म, जो मैंने देखी....हर संवाद...और संवाद क्यो, तुम्हारी आँखों को तो कभी संवाद की जरुरत ही न पड़ी। आज तुम्हे उकेरते हुए मैंने तुम्हारी आँखों के दर्द, बेबसी, क्रोध की अदायगी को एक साथ द

विदा

वो जो चला गया अब लौटेगा नहीं अलविदा हमेशा तकलीफ़देह होता है नहीं आसान होता किसी को जाने देना विदा का कोई सहज नियम क्यूं नहीं होता? क्यो विदा हमेशा भारी होती है ? क्यो नहीं प्रस्थान आसान होता ? क्यो पंचतत्व का विलय इतना कठिन होता है? विदा के आगे पूरा जीवन पूरा शब्दकोश पूरी उपमाएं पूरी सृष्टी हल्की लगने लगती है

मास्क

सुनो मुस्कुरा न सको तो चलेगा पर मास्क पहन कर रखना उसके पीछे  तुम हँसे, न हँसे किसे फर्क पड़ता लेकिन हाँ आँखों में एक चमक कायम रखना अब तुम आँखों से मुस्कुराना क्योकि एक लंबे वक्त के लिये  तुम्हारी हँसी बोझिल होने वाली है  इस मास्क के तले आँखों के चराग़ जरुरी है मास्क पहनना भी जरुरी है 

एक चिठ्ठी

कैसी हो जाने जानां,? अच्छी ही होगी मैं भी यहाँ ठीक हूँ ।।आजकल तो आप तरस गयी होंगी,नयी नयी साड़ी पहनने को। सही है यार मुझे जलना नहीं पड़ेगा। मुझे बड़ा मजा आ रहा है ये सोचकर कि मैं फोन करूँगी तो यह नहीं सुनना पड़ेगा" चल तेरको आके फोन लगाती मूवी देखनै जा रही ठीक है 'चल बाय"  कितना बंद बंद है ना सबकुछ।  पर यहाँ ऐसा कुछ नहीं है। तुम्हारे वहाँ मुम्बई में तो कोरोना के बहुत केस मिल रहे हैं। अपना ध्यान रखना । अपने यहाँ तो लोग बाग खूब घूम रहे हैं। ये मुम्बई थोड़े ना है, छोटा सा शहर है , और फिर गेहूँ बाड़ी के दिन हैं उन्हीं का काम चल रहा है तो लोगों को कोरोना डे मनाने का वक्त ही नहीं मिल रहा। माँ के पास गई थी। तुम भी होती तो दोनूं जन लिफाफा ले के खेत में चलते। अरे बहुत शहतूत लगे थे, तुम्हारी तो हाइट की दिक्कत बी नहीं। तुम डाल पकड़ नीचे खींचती, मैं तोड़ लेती। फिर वहीं पेड़ के नीचे बैठकर खाते। इन दिन बाग भी उजड़ गए। तुम क्या जानो बाग उजड़ना बागों को खुला छोड़ देते हैं आखिरी फलों के वक्त , कोई आओ कोई खाओ। हम दोनों साथ होती तो खूब सूखी दाख इकट्ठा कहती।।  नाली पर पुदीना हरा हो चुका  ।  त

आकाशगंगा

मेरे मन की आकाशगंगा में ऐसे हजारों तारें टिमटिमाते है जिनका पता किसी को नहीं मैं पहचानती हूँ एक एक तारें को मुझे बस उन्ही का ज्ञान है उन्ही की समझ है बाकी बातों में मैं अज्ञानी हूँ समझदारी की भी कमी है पर परवाह नहीं गूगल मुझे सब बता देता है सब समझा देता है उसकी सूचनाएं सटीक होती है उसकी पहुँच दुनिया की  सूक्ष्म से सूक्ष्मतम तरंग तक है सिवाय उन तारों के जो मेरे मन की आकाशगंगा में है 

बहादूर बच्चे

कितना मुश्किल होता है एक पराये शहर में खूद को समेटना अपनों को याद करना और  सब ठीक होने की उम्मीद करना भविष्य का सोच चिंतित होना घर आने के ख्वाब बुनना मन को समझाना राशन पानी की गिनती करना अजनबी से बादलों को ताकना माँ के भेजे सूरज से खूद को गरम रखना बरतन माँजना, खाना बनाना और  उस खाने को दो दिन तक खाना सुबह शाम विडियो कॉलिंग करना नाश्ते की प्लेट में रात का खाना सजा कर दिखाना सुनो मेरे बच्चों..... तुम सब बहादुर हो डरना मत, हौसले बनाये रखना अपने सपनों को जवान बनाये रखना यहाँ कुछ भी शाश्वत नहीं है ये वक्त ये दौर भी क्षणभंगुर है बस, ये क्षण  द्रोपदी के चीर सा खिंच गया है पर यकीन मानो इसका भी अंत होगा जीवन की एक नयी परिभाषा के साथ हम सब फिर से शुरुआत करेंगे तब तक तुम डटे रहो  गिरती अर्थव्यवस्था की चिंता भी मत करो तुम्हारी माँओं की दुआएं ऊँची से ऊँची अर्थव्यवस्था पर भारी है तुम घर लौटोगे मुस्कुराते हुए तब तक इंतजार हम सबकी नियती है स्थिर रहकर ईश्वर पर  विश्वास बनाये रखो

काबिले तारीफ- ओडिशा

किचन में काम करते हुए हमेशा बुद्धूबक्से की आवाजे मेरे कान में जाती रहती है। इन दिनों हालांकि मैं ज्यादा ध्यान देती नहीं क्योकि खबरों को अक्सर बढ़ा चढ़ा कर बताया जाता है और विकृत राजनीति परोसी जाती है,लेकिन कल एक छोटी सी डॉक्यूमेंट्री मुझे सुखद कर गयी।        सच्चाई जानने के लिये मैंने गुगल भी किया और पाया कि बात में दम था। खैर .....खबर थी सुदूर प्रांत ओडिशा की । ओडिशा में कोरोना को लेकर जो कदम उठाये गये या उठाये जा रहे है , वो वाकई काबिलेतारीफ है।  1. ओडिशा पहला ऐसा राज्य है देश का जिसने देशव्यापी लॉकडाउन के दो दिन पहले से लॉकडाउन लगा दिया । 2. ओडिशा पहला ऐसा राज्य है जहाँ दो सप्ताह में 500 बैड के दो अस्पतालों का निर्माण कोविड 19 वायरस के इफेक्टेड लोगों के लिये बनाया गया जबकि वहाँ उस वक्त इस वायरस ने पाँव भी न पसारे थे। एक महीने के कम अंतराल में ओडिशा सरकार ने अलग अलग जिलों में 29 कोविड अस्पताल बना लिये है और निश्चित ही यह एक बड़ी कामयाबी है उनकी। 3. ओडिशा पहला ऐसा राज्य है जिसने लॉकडाउन 2 की घोषणा के पहले ही अपना लॉकडाउन पूरे अप्रेल माह तक बढ़ा दिया था । 4. ओडिशा सरकार ने डॉक्टर्स् और इस

किताबें

मैंने बहुत अधिक किताबें नहीं पढ़ी पर मैंने थोड़ी थोड़ी  बहुत सी किताबें पढ़ी है मैं दोहराकर पढ़ती हूँ आगे जाती हूँ फिर पीछे आती हूँ एक एक पंक्ति को कई कई बार पढ़ती हूँ शब्दों पर अटकती बहुत हूँ क्लिष्ट भाषा मुझे समझ नहीं आती लेकिन फिर भी  मुझे हर किताब प्रिय है मुझे अपनी पाठ्य पुस्तकों से भी प्यार था किताबें आपकी दौलत होती है जिन पर धूल जमती रहती है आप झाड़ते रहते है  उन्हे महफूज रखते है  उस वक्त के लिये जब आपके तन्हा लम्हें  लंबे हो जायेगे तब ये किताबे मुस्कुरायेगी सहेजा धन विकट समय बड़ा काम आता है किताबों को सहेजिये  इन्हे धरोहर बनाईये 

पृथ्वी

आहिस्ता आहिस्ता  मैं सिसकती रही तुम्हारे अहंकार के बोझ को ढ़ोती रही तुम्हारी मनमर्जियों तले  घुटती रही अपना सब तुम पर लुटाती रही तुम्हारा पेट पालती रही तुम्हे हर कदम संभालती रही पर तुम न जाने किस मद में रहे किस उन्माद में रहे शुक्रगुजार होना तो दूर तुम तो अपनी आँखे तरेरते रहे लेकिन अब वक्त आ गया बहुत पोषित किया तुम्हे अब खूद को बचाना है  हम दोनो अब ऋणी नहीं तुम खूद को बचाओ मैं खूद को बचाती हूँ मैं पृथ्वी हूँ तुम्हारी संवेदनाओं असंवेदनाओ से आहत अब मैं अपनी धूरी पर  खूद में केंद्रित हूँ हाँ.....अब मैं ध्यान में हूँ  जो बिगाड़ा तुमने उसके परिष्कार में हूँ 

उदास शाम

आज फूल कुछ उदास से है पतझड़ नहीं है, फिर भी पीले पत्ते मुझ पर गिर रहे है फूल खुशबू बिखेर रहे है पर अनमने से है नहीं.... नहीं फूल उदास नहीं है ये तो उदास मन की व्यथा है जो हर जगह उदासी को देखता है लेकिन जानता है मन इन उदासियों में सच में फूल खिलेंगे बस, कुछ दिनों की बात है तब तक उदास शामों को रोशन रखते है 

पापी पेट

उसे डर नहीं उस  सुक्ष्मजीवी का जिससे डरकर पूरी दुनिया चार दीवारी में कैद है उसे नहीं पता कि संक्रमण कैसे होता है उसकी आँखें चिंताग्रस्त है होठ सूख गये है चेहरा जैसे सुखाग्रस्त क्षेत्र हो उसके मासूम बच्चे  अब भी खिलखिलाते है लेकिन उसके कान जैसे बहरे हो गये हो वो बेबस इतना है कि बगावत नहीं कर सकता वो समाज का वो तबका है जो इन दिनों  अपने आधार को लेकर असमंजस में है वो मजदूर वर्ग है जो मातम में है उसे फिक्र है अपनी नवविवाहिता की  जिसे कितने सपने दिखाकर  वो अपने साथ लाया था उसे फिक्र है  अपने बच्चे की , जिसका मुडंन होना अभी बाकी है उसे फिक्र है अपनी माँ की जो घर में उसकी चिंता में बीमार है उसे फिक्र है अपने पिता की जिन्हे वो जिम्मेदारी से मुक्त कर आया था उसे फिक्र है पापी पेट की जो तीनों वक्त खाना मांगता है उसे वक्त नहीं है  उस सुक्ष्मजीवी के बारे में सोचने का उसे वक्त नहीं है राजनीति करने का उसे वक्त नहीं है  बेघर रहकर इंतजार करने का ना उसे भूत का ख्याल है ना भविष्य से कोई आशा उसे इतना पता है  कुछ बड़ी अनहोनी हो सकती है उसके पहले वो अपनों के पास जाना चाहता है वो बताना चाहता है  सभी घरों में

सहेजे लोग

पता है छूटे लोग छूटा वक्त छूटी चीजें कभी छूटती ही नहीं है हम बस भ्रम में रहते है हर छूटाव पोषित होता रहता है कभी दिल के किसी कोने में तो कभी दिमाग की किसी नस में  और वो सहेजे रहते है आखरी साँस तक

गर्भगृह

मुझे अंधेरों से डर नहीं लगता मुझे सन्नाटों का भी खौफ़ नहीं उष्णता मुझे तरबतर नहीं करती आपदाओं से मैं घबराती नहीं काल कोठरी सी एक छोटी जगह जहाँ रोशनी की महीन किरण तक नहीं मुझे पर्याप्त है क्योकि मैं उसे समझ लेती हूँ माँ का गर्भगृह जहाँ कुछ समय मुझे रहना है जीवन पाकर बाहर आना है ईश्वर अभी भी रच रहा है मुझे उसकी रचना पर सवाल नहीं संदेह नहीं

माँ

मैंने तुम्हारा दाह संस्कार नहीं देखा अंतिम यात्रा भी नहीं देखी लेकिन मैंने देखा था तुम्हे अंतिम बार चिर निद्रा में लीन थी तुम शांत थी, निश्छल थी नये कपड़ों से तुम्हारा मोह कभी नहीं रहा पर उस दिन तुम्हे नयी चटख लाल चुनरी में सहेजा गया  सिंदूर ,बिंदी भी कहाँ भाते थे तुम्हे पर उस दिन  सिंदूर दमक रहा था मांग में एक सुरज सुशोभित था तुम्हारे ललाट पर और तुम मुस्कुरा भी तो रही थी न जाने क्यो ? माँ कभी हँसती है .... अपने बच्चों को रोता देखकर ? पर तुम तटस्थ बनी रही एक चुड़ी पहनने वाली तुम उस दिन कलाई भरकर चुड़िया तुम्हे पहनायी गयी जीवन भर तुम्हे जिन सब का मोह नहीं था तुम्हे विदा किया गया  उन्ही सब के साथ सब घटित हो रहा था  शायद तिथि पुण्यतिथि में तब्दील हो रही थी  तुम चली गयी मेरा एक हिस्सा साथ ले गयी अपने मन के भिक्षु का एक हिस्सा मुझे दे गयी बस.....पिछले छ: सालों से हम यूँ ही साथ है 

साँसें

ध्यान से सुनो एकदम ध्यान से चित्त स्थिर करके सुनो कुछ साँसों की आवाजें है भीतर जाती हुई बाहर आती हुई पिछले कई दिनों से  मेरे साथ है ये आवाज लेकिन ये मेरी साँसें तो नहीं है ये तो लम्बी सी जीवन भरती साँसें है ये सुकून वाली साँसें है ये खुशी वाली साँसें है जब कही किसी पेड़ पर कोई पत्ता हिलता है तो ये साँस अंदर जाती है जब कही कोई चिड़िया  चहचहाती है तो ये साँस बाहर आती है इस साँस की आवाजाही से आसमान नीला हो जाता है पेड़ और लंबे हो जाते है पत्ता पत्ता सुर्ख हो जाता है मोर खुश होकर नाचने लगता है मछलियां उचक कर  पानी से बाहर झांक जाती है ये कमाल है इन साँसों का सुनो तुम..... हमारी पृथ्वी साँस ले रही है 

तुम जीना

मेरे मन की रौनकें तुमसे है पल में खिलती, पल में मूरझाती है अडिग रखना विश्वास ईश्वर की तरह न टूटना कभी न टूटने देना ये आते जाते समय की मार है जो निखारेगी तुम्हे, तपायेगी तुम्हे इनसे पार जाना है...स्थिर रह डटे रहना मेरी उर्जा से नहीं,  खूद की उर्जा से जीना तुम महसूस करोगे तो सामीप्य पाओगे तुम अकेले नहीं हो,हम साथ है हमेशा मेरा हाथ तुम्हारे हाथ में नहीं है इन सबके बीच तुम्हे थमना नहीं है एक लंबी दूरी तुम्हे तय करनी है जीवन संभावनाओं का नाम है, बच्चे  आस्थाओं और भावों के बहाव में  तुम शिखर पर रहना संवेदनाओं को मुखर रखना असंवेदनशीलता मृत्यु समान है विकट समय इसका परीक्षा काल है उर्तीण होना तुम और जीना मुस्कुरा कर जीना