परीक्षा भवन में आज गहरा सन्नाटा था रह रह कर मेरा दिल घबरा रहा था सुबह की घटनाओ को याद कर ना जाने क्यों आँखे भी फटी सी रह गई , जहा थी वही अचल सी मैं रह गई धडकनों की आवाज़ लगने लगी ऐसे नगाड़ो पर पड़ रहे हो हथोड़े जैसे एक सौ साठ प्रति मिनिट हो रही थी ह्रदय गति कुछ उपाय समझ ना आया , घूम गई मेरी मति कांप गई मैं पूरी की पूरी , हाथ पावँ थरथराने लगे सुबह के दृश्य चलचित्र की भांति मेरे सामने आने लगे सुबह सुबह गधा भी आज बांयें से गुजरा था निगोड़ी काली बिल्ली ने भी रास्ता मेरे काटा था राशिफल भी कुछ अच्छा ना था , अनिष्ट के घटित होने का उसमे पक्का वादा था लेकिन फिर भी मै बड़ी बहादुरी से चली आई थी परीक्षा देने लेकिन अब ; परीक्षा भवन के सन्नाटे से मेरा दिल घबरा रहा था अनिष्ट के घटित होने का ख्याल दिल में बार बार आ रहा था परचा मिलने में समय था अभी बाकी कि तभी मुझे याद आया , अरे ! आज सुबह तो आँख भी मेरी फड़की थी कोसने लगी मैं खुद को , किस बुरी घडी में ...
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है