दिसम्बर 2019 की एक सुबह.....उस सुबह किसने सोचा था कि आज से पूरे तीन महीने बाद एक कहर बरपने वाला है, सब तो बिंदास बेपरवाह घूम रहे थे । मैं भी घुमक्कड़ी पर ही थी। सुबह सुबह शिलोंग से निकले और गुवाहाटी पहूँचे। दो दिन का स्टे था वहां पर । पहले दिन माँ कामाख्या के दर्शन और कुछ साईट सीन करने के बाद दूसरे पूरे दिन चिल्ल करने का प्लान था हमारा। दोपहर पहले हम हमारे होटल में पहूँच गये। शिलोंग की तरह यह होटल भी मार्केट में था और बहुत ही खूबसूरत सज्जा के साथ था। रिशेप्शन पर औपचारिकता पूरी करने के बाद वेटर हमे हमारे कमरे तक लेकर आया जो कि दूसरी मंजिल पर बांयी और था । उसने कमरा खोला, हमारा लगेज रखा और अभिवादन कर चला गया। मैं पीछे पीछे थी, जैसे ही मैंने कमरे में पावं रखा...मुझे लगा एक हवा का झौका सा मुझसे होकर गुजर गया। खैर....मैंने ध्यान नहीं दिया और कमरे को देखा। कमरा बहुत बड़ा था....लगभग दो औसत कमरों से भी बड़ा। बाथरुम से लगकर थोड़ा ड्रैसिंग ऐरिया भी था और उसके पास एक और दरवाजा था जिसे मैंने खोलकर देखा। वो एक छोटी सी बालकनी जैसा था, जिसे बालकनी न कहकर पिछवाड़ा कहे तो ज्यादा उचित ह
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है