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जुलाई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वो कमरा

दिसम्बर 2019 की एक सुबह.....उस सुबह किसने सोचा था कि आज से पूरे तीन महीने बाद एक कहर बरपने वाला है, सब तो बिंदास बेपरवाह घूम रहे थे । मैं भी घुमक्कड़ी पर ही थी।      सुबह सुबह शिलोंग से निकले और गुवाहाटी पहूँचे। दो दिन का स्टे था वहां पर । पहले दिन माँ कामाख्या के दर्शन और कुछ साईट सीन करने के बाद दूसरे पूरे दिन चिल्ल करने का प्लान था हमारा।        दोपहर पहले हम हमारे होटल में पहूँच गये। शिलोंग की तरह यह होटल भी मार्केट में था और बहुत ही खूबसूरत सज्जा के साथ था। रिशेप्शन पर औपचारिकता पूरी करने के बाद वेटर हमे हमारे कमरे तक लेकर आया जो कि दूसरी मंजिल पर  बांयी और था । उसने कमरा खोला, हमारा लगेज रखा और अभिवादन कर चला गया। मैं पीछे पीछे थी, जैसे ही मैंने कमरे में पावं रखा...मुझे लगा एक हवा का झौका सा मुझसे होकर गुजर गया। खैर....मैंने ध्यान नहीं दिया और कमरे को देखा।          कमरा बहुत बड़ा था....लगभग दो औसत कमरों से भी बड़ा। बाथरुम से लगकर थोड़ा ड्रैसिंग ऐरिया भी था और उसके पास एक और दरवाजा था जिसे मैंने खोलकर देखा। वो एक छोटी सी...

खरे लोग

लगभग साल डेढ़ साल पहले की बात है, मैंने इंस्टा पर एक नया अकाउंट बनाया था । आत्मविश्वासी महिलाओं , क्रियेटिव ज्वैलरी और हैंडलूम साड़ीयों को यहाँ मैं फॉलो किया करती थी। रोज कुछ नया तलाशती रहती थी। ऐसे में एक दिन स्क्रॉल करते हुए नजरे ठहर गयी.....चाँदी की ज्वैलरी का एक बड़ा पेज । खुबसूरत शब्दों में ढ़ली ज्वैलरी और ज्वैलरी भी ऐसी कि हर पीस मन को भा जाये। मैंने तीन पीस सलेक्ट कर मंगाये।  उनके आने पर मैंने पिक क्लिक कर पोस्ट डाली....पिक में मेरे हाथ का टेटू था। ज्वैलरी के साथ टेटू की भी तारीफ हुई । फिर बात आयी गयी हुई ।              एक दो बार पेज की ऑनर दिव्या से थोड़ी बहुत बात हुई । एक उच्च स्तरीय व्यक्तित्व और एक माँ के रुप में वो मुझे बहुत पसंद आयी। पता नहीं क्यो, बच्चों की परवरिश के तौर तरीकों को देखते हुए मैं अक्सर उन माँओं से प्रभावित होती हूँ तो मदरहुड एंजोय करती है ....दिव्या उन्ही चुनिंदा लोगो में से एक है । खैर....हमारी बात थोड़ी और हुई, मेरी कला और शब्दों ने कही न कही दिव्या को छूआ। दिव्या को मेरा पेननेम "आत्ममुग्धा" बहुत पसंद आया और उसने कहा कि मै...

पेंटिंग के पीछे की कहानी - 2

अब शुरु हुआ एक सपने पर काम....एक ऐसा सपना जो शायद गैरजरुरी सा था । जिसके पूरे होने न होने से कोई बड़ा फर्क न पड़ने वाला था,लेकिन मन बड़ा उत्साहित था भीतर से । ऐसा भी नहीं था कि ये बनाना आसान था लेकिन हाँ इतना मुश्किल भी न था। मुझे खुद पर यकीन था कि भले अच्छा न बने पर बिगड़ेगा नहीं।        बस...शुरुआत हो गयी , रंगों का समायोजन पहले से ही दिमाग में था। बुद्ध को उकेरने किसी रिफ्रैंस इमेज की भी जरुरत नहीं थी, उनकी छवि भी दिमाग में थी।          जब पहली बार पेंसिल से बनाया, तब समझ में ही नहीं आया कि आँखे छोटी बड़ी है ....नाक की लंबाई कम है , होठ बीचोबीच नहीं है। सबसे बेकार बात यह थी कि मैं पोट्रेट को दूर से नहीं देख सकती थी क्योकि यह सीढियों की दीवार थी। नजदीक से कुछ भी पता नहीं लग रहा था और थोड़ा साइड से देखने पर ऐंगल ही अलग हो जाता था। अजीब कश्मकश थी....इसे सही तरीके से पूरा कैसे करूँ, लेकिन इसके पहले मैंने एक बात सीखी कि ज्यादा नजदीक से आप किसी को भी परख नहीं सकते, थोड़ा दूर जायेंगे तो हर चीज साफ नजर आने लगती है, वो कहते है न कि अपने घर की ...

पेंटिंग के पीछे की कहानी - 1

ग्यारहवीं या बारहवीं कक्षा में रही होऊँगी मैं, जब मैंने पहली बार ऑयल पेंटिंग बनायी थी .....कैनवास मिलता नहीं था आस पास जल्दी से, तो हार्डबोर्ड पर ही बनाया था। मुझे अच्छे से याद है वो मैडोना का चेहरा था, बड़ा सा चेहरा। लगभग दो ढ़ाई फुट जितना। उसके बाद मैंने कई और भी पेंटिंग्स बनायी, खास बात यह थी कि सब दो फुट से बड़ी ही बनायी । मुझे बड़ा मजा आता था बड़ी बड़ी पेंटिंग्स बनाने में। कोई क्लासेज हमारे शहर में उस वक्त थी नहीं तो हर दूसरी पेंटिंग से खुद ही सीखती गयी।             कुछ समय बाद शादी हो गयी । रंगों से साथ छूट गया, ऐसा नहीं कहूँगी क्योकि रंग तो जिंदगी का हिस्सा होते है। समझ लीजिये कि जिंदगी की पिच बदल गयी थी, खिलाड़ी वही था। एक लंबा वक्त निकल गया। बच्चें हो गये और मैं गृहस्थी में रम गयी ।               बच्चे बड़े हो गये और मुझमे कही एक उत्सुकता जगने लगी बच्चों सी। ऑयल की जगह एक्रिलिक रंगों को देखा,तेल की जगह पानी के साथ मिक्सिंग को देखा। एक नयी तरह की चित्रकारी को देखा। रौनक धैर्य के साथ सब करता और मैं बच्चों सी अधीरता से ...