तुम्हारे ह्रदय में
स्थित है एक लौ
जो अदृश्य है
क्योकि
तुम महसूस नहीं कर पाते उसे
तुम्हारे संवेगो के चलते
भय की गुंजन से
बस वो एक अनवरत स्पंदन में है
अनियंत्रित रुप से धड़कती
तुम्हारी धड़कने तुम्हे डरा देती है
उस लौ को बुझा देती है
छलनी है तुम्हारा ह्रदय
क्योकि ये आहत होता रहता है
कभी सोचा है
सीने के इस मध्य भाग को
अनाहत चक्र कहते है
तो बस....
अब से मान जाओ कि
अनाहत को कोई आहत नहीं कर सकता
व्यर्थ है तुम्हारा भय
Very nice 👍
जवाब देंहटाएंबेहतरीन।
जवाब देंहटाएंअब से मान जाओ कि
जवाब देंहटाएंअनाहत को कोई आहत नहीं कर सकता
व्यर्थ है तुम्हारा भय ---बहुत खूब रचना है, शानदार लेखन है।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ जून २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंअब से मान जाओ कि
जवाब देंहटाएंअनाहत को कोई आहत नहीं कर सकता
व्यर्थ है तुम्हारा भय !
पल पल आहत होते हृदय के लिए संजीवन हैं ये पंक्तियाँ ! सोच रही हूँ, जो अनाहत को आहत करने का प्रयत्न करते हैं उनको ईश्वर कैसे क्षमा कर देते हैं ?
तुम्हारे संवेगो के चलते
जवाब देंहटाएंभय की गुंजन से
बस वो एक अनवरत स्पंदन में है
अनियंत्रित रुप से धड़कती
तुम्हारी धड़कने तुम्हे डरा देती है ।
सच ही होता है ऐसा । बहुत गहन अभिव्यक्ति ।।
इस ब्लॉग को कैसे फॉलो करें ? कुछ नज़र नहीं आ रहा ।
अनाहत को कोई आहत नहीं कर सकता...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
अति सुंदर ।
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