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जून, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तृप्त धरा

कभी देखा है ध्यान से इन रिमझिम बरसती बुंदों को कभी महसूस किया है धरा के तृप्त मन को यूँ तो आसमाँ धरती से मिल नहीं सकता बस, एक भ्रम होता है उनके मिलन का दूर कही क्षितिज में लेकिन.... जब, यह वियोग चरम पर होता है धरा तप्त होती है आकाश भी तप कर तड़पता है तब कही पसीजता है एक कोना और..... बरखा की बुंदें लाती है प्रेम संदेशा बादलों का...तब धरा नाचती है बिल्कुल यूँ जैसे गरम तवे पर थिरकती है पानी की एक बुंद एक लय के साथ..... उसी लय और ताल के साथ करोड़ों बुंदें , जब मिलने आती है जमीं की ओर तो प्रकृति उत्सव मनाती है मिलन का....और तप्त धरा तृप्त होती है

दरख़्त

मेरे घर के सामने एक दरख्त है सालों से देख रही हूँ एक मौसम आता है जब उसके सारे पत्ते उसका साथ छोड़ जाते है श्रृंगारविहिन सा वो पेड़ फिर भी खड़ा रहता है बदलते मौसमों के सफर में भी नहीं क्षीण करता वो खुद की शक्ति को अब मैं देख रही हूँ... मौसम फिर बदला है वो पेड़...... फिर से पुरे यौवन में है अपने पुरे श्रृंगार के साथ उसकी नयी कोंपले लजा रही है दुल्हन की तरह उसकी टहनियाँ खासी मजबूत है फिर से वो इंतजार में है सावन के झूलों के और झूले भी तो साल भर तकते है सिर्फ उसे ही ये उन झूलों की इच्छाशक्ति है .....कि वो टहनी कमजोर नहीं हो पाती हाँ....वो एक बार फिर अपने यौवन में है

कोमलांगिनी

कहने को तो वह कोमलांगिनी है नाजुक सी देह की स्वामिनी है भावों की अश्रु धार है क्षतविक्षत ह्रदय की रफु की हुई कामायिनी है लेकिन सोचा है कभी कैसे कर जाती है वो प्यार, स्नेह, दुलार, कर्तव्यनिष्ठा मान सम्मान, प्रतिष्ठा, संघर्ष, जुझारूता, आत्मनिष्ठा दुख, दर्द की पराकाष्ठा कैसे सह जाती है वो हर वो बात जो पुरुषों तुम्हारे बस की नहीं ।

नहीं आसान होता किसी को भुल जाना

नहीं आसान होता किसी को भुल जाना रोजमर्रा में सुरज के साथ जलते हुए पृथ्वी के साथ परिक्रमा करते हुए चाँद को सिरहाने रखते हुए रातों को टुटते तारों को देख उदास होते हुए नहीं आसान होता किसी को भुल जाना सबके बीच अकेलेपन से जूझते हुए कुछ धूँधली सी यादों को जीते हुए नफरत के कंकर को बीनते हुए विष में से दो बूंद अमृत की सहेजते हुए कटु शब्दों को स्मृतियों से हटाते हुए नहीं आसान होता किसी को भुल जाना असंभव को संभव से गुजरकर फिर असंभव पर आकर देखते हुए हवा के बिना साँस लेते हुए आधार बिना चलते हुए बिना आसमाँ उड़ान का सपना लिये हुए आँसू बिना बिलखकर रोते हुए उदास सी हँसी चेहरे पर सजाते हुए नही आसान होता किसी को भुल जाना चंद लम्हों के साथ जीते हुए जिंदगी से बिछड़ते हुए ऊल जुलूल सोचते हुए बेवजह तकरीर में उलझते हुए नियती को बदलते हूए मोह के धागों की उलझन को सुलझाते हुए कहाँ आसान होता है किसी को भुल जाना