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जिंदगी विथ ऋचा

दो एक दिन पहले "ऋचा विथ जिंदगी" का एक ऐपिसोड देखा , जिसमे वो पंकज त्रिपाठी से मुख़ातिब है । मुझे ऋचा अपनी सौम्यता के लिये हमेशा से पसंद रही है , इसी वजह से उनका ये कार्यक्रम देखती हूँ और हर बार पहले से अधिक उनकी प्रशंसक हो जाती हूँ। इसके अलावा सोने पर सुहागा ये होता है कि जिस किसी भी व्यक्तित्व को वे इस कार्यक्रम में लेकर आती है , वो इतने बेहतरीन होते है कि मैं अवाक् रह जाती हूँ।      ऋचा, आपके हर ऐपिसोड से मैं कुछ न कुछ जरुर सिखती हूँ।      अब आते है अभिनेता पंकज त्रिपाठी पर, जिनके बारे में मैं बस इतना ही जानती थी कि वो एक मंजे हुए कलाकार है और गाँव की पृष्ठभूमि से है। ऋचा की ही तरह मैंने भी उनकी अधिक फिल्मे नहीं देखी। लेकिन इस ऐपिसोड के संवाद को जब सुना तो मजा आ गया। जीवन को सरलतम रुप में देखने और जीने वाले पंकज त्रिपाठी इतनी सहजता से कह देते है कि जीवन में इंस्टेंट कुछ नहीं मिलता , धैर्य रखे और चलते रहे ...इस बात को खत्म करते है वो इन दो लाइनों के साथ, जो मुझे लाजवाब कर गयी..... कम आँच पर पकाईये, लंबे समय तक, जीवन हो या भोजन ❤️ इसी एपिसोड में वो आगे कहते है कि मेरा अपमान कर

माँ

माँ शब्द आते ही जेहन में सबसे पहला इमोशन आता है सिर्फ प्यार ही प्यार, दुनिया जहान का प्यार   1.एक ऐसी अदालत जहां आपकी हर बात की, हर गलती की माफी होती है।  2.एक ऐसा स्कुल जहां जीवन भर आपको सीख मिलती है और सबसे अच्छे प्यारे विद्यार्थी का मेडल भी। 3. एक ऐसा मंदिर जहां आपको इष्ट के समकक्ष बैठा दिया जाता है। 4. एक ऐसी आरामगाह जहां खुली बाहों से आपका स्वागत होता है।  5.एक ऐसी छत जिसकी छावं तले आप महफ़ूज रहते है। 6.एक ऐसा अधिकार जो कभी मांगना नहीं पड़ता। 7. एक ऐसा कल्पवृक्ष जिससे कभी कुछ कहना नहीं होता , बिन बोले आपकी मुरादें पूरी होती है। 8.एक ऐसा इंश्योरेंस जो आपकी लंबी आयू के लिये अनवरत प्रार्थनाएं दर्ज करता रहता है। 9.एक नजरबट्टू जो आपको हर बुरी नजर से दूर रखता है। 10.एक ऐसी गीता जो हर पथ पर आपका मार्गदर्शन करती है । 11.एक कूंजी, जिसके पास आपकी हर समस्या का समाधान होता है। 12.एक भरोसा जो आपके सिर पर हाथ फिराता है कि चिंता मत कर , मैं हूँ तुम्हारे लिये , तो यकिन मानिये कि ईश्वर स्वयं आपके समक्ष खड़ा होता है । 13.एक आशीर्वाद जो मृत्यु के उपरांत भी सदैव आपके साथ रहता है। 14. माँ, जो साथ थी, तब

कला और कलाकार

आज एक बेहतरीन कलाकार व्यक्तित्व से मुलाकात हुई। एक निहायत सरल व्यक्तित्व,जो न सिर्फ चित्रकला पेंटिंग में माहिर है बल्कि उनकी लेखनी भी अनवरत चलती रहती है,गाँधीवादी विचारधारा से सरोकार रखने वाली ये शख्सियत पुरातत्व विद्वान है,दुनिया की बहुत सी गुफाओं के भीतर बने भित्तिचित्रों का न सिर्फ अध्ययन किया है बल्कि इस पाषाण कला को बचाने के लिये जी जान से प्रयासरत है।        आज मैं मिली पदमश्री डॉ. यशोधर मठपाल से , उनके लोक संस्कृति संग्रहालय में । मठपालजी की उम्र  85 वर्ष  है, लेकिन एनर्जी इतनी कि वो संग्रहालय दिखाने हमारे साथ चल लिये अपनी छड़ी लेकर । हर चीज के बारे में वो बड़े उत्साह से बता रहे थे और बहुत ही अपनेपन से अपनी सहेजी हुई धरोहर दिखा रहे थे। फाइन आर्ट गैलेरी में मैं उनकी बनायी बड़ी बड़ी पेंटिंग देखकर अचंभित हो गयी तो उन्होने हँसते हुए कहा कि "मैं लगभग 40000 पेंटिंगस् बना चुका हूँ....अभी कल ही एक वॉटर कलर पेंटिंग बनाया हूँ , पेंटिंग मेरे लिये अल्कोहल का काम करती है, एक तरह का नशा है " ।  मैं उनकी इस बात से पूरी तरह सहमत थी क्योकि यह नशा मुझे भी है ।         गैलेरी के अगले हिस्से

उम्मीद

लाख उजड़ा हो चमन एक कली को तुम्हारा इंतजार होगा खो जायेगी जब सब राहे उम्मीद की किरण से सजा एक रास्ता तुम्हे तकेगा तुम्हे पता भी न होगा  अंधेरों के बीच  कब कैसे  एक नया चिराग रोशन होगा सूख जाये चाहे कितना मन का उपवन एक कोना हमेशा बसंत होगा 

पलाश

एक पेड़  जब रुबरू होता है पतझड़ से  तो झर देता है अपनी सारी पत्तियों को अपने यौवन को अपनी ऊर्जा को  लेकिन उम्मीद की एक किरण भीतर रखता है  और इसी उम्मीद पर एक नया यौवन नये श्रृंगार.... बल्कि अद्भुत श्रृंगार के साथ पदार्पण करता है ऊर्जा की एक धधकती लौ फूटती है  और तब आगमन होता है शोख चटख रंग के फूल पलाश का  पेड़ अब भी पत्तियों को झर रहा है जितनी पत्तीयां झरती जाती है उतने ही फूल खिलते जाते है  एक दिन ये पेड़  लाल फूलों से लदाफदा होता है  तब हम सब जानते है कि  ये फाग के दिन है बसंत के दिन है  ये फूल उत्सव के प्रतीक है ये सिखाता है उदासी के दिन सदा न रहेंगे  एक धधकती ज्वाला ऊर्जा की आयेगी  उदासी को उत्सव में बदल देखी बस....उम्मीद की लौ कायम रखना 

पलाश

इस बार जब अपने खेत वाले घर में जाना हुआ तो दूर से ही घर के पिछवाड़े एक लाल पेड़ मुझे दिखा और बरबस ही मुझे चिनार याद आ गये ।          मैं नजदीक गयी तो पता लगा कि बसंत आने वाला है....ये पलाश के फूल थे जो पेड़ की शाखाओं पर झूंड में थे । जब मैंने छत पर जाकर देखा तो कई जगह ये पलाश के पेड़ दिखे । पहाड़ों में,जंगलों के बीच ये पेड़ इतने खूबसूरत लग रहे थे कि कल्पना भी नहीं की जा सकती ।        मैंने पलाश के पेड़ों को नजदीक से जाकर देखा, बड़े बड़े तीन पत्तों की जोड़ी वाला ये पेड़ अपनी पत्तियों को गिरा रहा था और जो पत्तियाँ पेड़ों पर थी वो भी सूखी सी, धूल मिट्टी से सनी । यहाँ पर सभी पेड़ ऐसे ही थे ....सब पर धूल जमी हुई थी । मेरे मन ने कहा कि एक बारीश होगी और ये सब नहाये धोये हो जायेंगे। प्रकृति सबका ख्याल रखती है अपने तरीके से ।        हाँ , तो हम वापस आते है पलाश पर.....इन धूल जमी आधी बची सी पत्तियों के बीच ये अलौकिक पुष्प इस तरह खिल रहे दे जैसे कोई दैवीय वृक्ष हो । पत्तों पर जितनी धूल थी वही इसकी मखमली पत्तियों पर कही कोई धूल नहीं बल्कि एकदम ताजगी भरा अहसास । एक ही वृक्ष पर दो विरोधाभास । मेरी उत्सुकता बढ़ गय