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इतवार

साल काअंतिम महीना, अंतिम इतवार सोमवार, फिर नयी शुरूआत मेरे इन इतवारों पर बोझ बड़ा है मैं हर काम इतवार पर जो डाल देती हूँ कोई भी काम आज न हुआ चलो, इतवार को करेंगे और मेरा इतवार सारी जिम्मेदारी अपने सिर लेता है आखिर हर आठवें दिन फिर आ जाता है पेंडिग कामों की लिस्ट साथ लिये चलता है शायद साल के पहले इतवार चर्चा की थी मैंने एक साड़ी पेंट करनी थी एक बड़ा सा कैनवास भी इंतजार में था डिक्लटरिंग का वादा भी खुद से था खुद का ख्याल मेरी लिस्ट में सबसे पहले था रेगुलर चेकअपस् की जिम्मेदारी थी परिवार की भागादौड़ी भी साथ थी खाने से जंक हटाना था सुबह सुबह समय से आगे दौड़ना था कुछ रिश्तों की बिगड़ती लय को भी साधना था अब यही लिस्ट लिये खड़ा है इतवार मेरे आगे मैंने भी नजरे मिलाकर कहा गये सारे इतवार मेरे अपने रहे भले कुछ काम पेंडिंग रहे लेकिन जो काम पूरे हुए उन पर गुरूर हुआ छूटे पर भला कैसा मलाल हुआ जंक हटा नहीं पर कम हुआ खाने की प्लेट में सलाद बढ़ा साड़ी न सही पर ब्लाऊज जरूर पेंट हुआ कैनवास बड़ा हो या छोटा चित्र जरूर उभरा यात्राएं बेहद हुई , छूटते रहे नियमित काम फिर भी सु

पहाड़

स्पीति यात्रा के दौरान वहाँ के पहाड़ों ने मुझे अपने मोहपाश में बांधे रखा । उनकी बनावट, टैक्चर बहुत अद्भूत था। वे बहुत लंबे, विशालकाय, अडिग थे। मनाली से काजा का दुर्गम रास्ता पार करते हुए इनसे मौन संवाद होता रहा। मैं इनकी ऊँचाई और आस पास की नीरवता से लगभग स्तब्ध थी। ये एकदम सीधे खड़े से पहाड़ थे जैसे कोई खड़ा रहता है सीना ताने। कालक्रम की श्लांघाओं से दूर ये साक्षी रहे साल दर साल होने वाले परिवर्तनों के।             उन दुर्गम रास्तों से गुजरते हुए, ग्लेशियरों को पार करते हुए बहुत बार मन ने सोचा कि क्या ये हमेशा से ऐसे ही खड़े है। क्या इनका स्वरूप यही था ? इन पहाड़ो में इतना आकर्षण क्यो है हालांकि ये अलग बात है कि इस नीरव पथ पर दिल की धड़कने तीव्र गति से चलती रही, सड़क की स्थिती ने चेहरे पर बारह बजा रखे थे , इस रास्ते पर यात्रा करना एक साहसिक काम है और इस साहस में ये पहाड़ हर मोड़ पर साथ निभाते रहे और यह यात्रा मेरे जीवन की अविस्मरणीय यात्रा बन गयी।      मैंने इन पहाड़ो के अलग अलग विडियों बनाये, इनकी ऊँचाई,इनकी बनावट मुझमे जैसे रचबस गयी। आज जब अटलजी की ये कविता सुनी तो लगा जैसे ये पहाड़

इमरोज

अमृता की कहानी का मुख्य अध्याय , मुख्य पात्र इमरोज, जिसने आज इस दुनिया को अलविदा कह दिया। प्रेम, इश्क, मोहब्बत इन दिनों बहुत सामान्य सी बात है और बहुत आसानी से उपलब्ध भी है। इसके बड़े बड़े किस्से हमे अक्सर देखने सुनने मिल जाते है, नहीं मिलता तो सिर्फ "इमरोज" क्योकि इमरोज होना आसान नहीं है।        एक बहुत लंबा जीवन जीने वाले इमरोज ने अपना पूरा जीवन अमृता को समर्पित कर दिया और समर्पण भी ऐसा कि कोई मिसाल नहीं सिवाय स्वय इमरोज के। अमृता को जानने वाले जानते है कि इमरोज क्या थे । अमृता से परे  हटकर देखते है तो इमरोज एक कवि और चित्रकार थे लेकिन अमृता से मिलने के बाद उनके चित्र , उनकी कविताएं सिर्फ अमृता के ही इर्द गिर्द रही । उनका कतरा कतरा अमृता के लिये प्यार से लबरेज़ रहा।            अक्सर सोचती हूँ कि पीठ पर साहिर नाम उकेरती अमृता की अंगुलियां इमरोज को कैसी लगी होंगी ? इससे उन्हें पता चला कि वो साहिर को कितना चाहती थीं। लेकिन इमरोज के अनुसार इससे फ़र्क क्या पड़ता है। वो उन्हें चाहती हैं तो चाहती हैं। मैं भी उन्हें चाहता हूँ। समर्पित प्रेमी के लिये शायद इन बातों के कोई मायने नह

साड़ी

आज इंटरनेशनल साड़ी डे है । एक वक्त था जब मैं हर रोज साड़ी पहनती थी, साड़ी पहनना आदतन था। अब भले ये आदत थोड़ी पीछे छूट गयी है पर साड़ी से मोह हर रोज बढ़ता जा रहा। साड़ी की मेरी समझ अब पहले से कही अधिक है।             जैसा कि सब कहते है कि साड़ी महज एक कपड़ा नहीं है वो इमोशन है , मैं इस बात से पूरा सरोकार रखती हूँ । साड़ी सच में आपके भाव है, आपकी अभिव्यक्ति है , आपके व्यक्तित्व का आइना है।    हम सबकी अपनी अपनी पसंद होती है और कुछ चुनिंदा रंगों की साड़िया स्वत: ही हमारी आलमारी में जगह बना लेती है।कुछ साड़ियों दिल के बेहद करीब होती है , कुछ में कहानियां बुनी होती है, कुछ के किस्से गहरे होते है, कुछ हथियायी हुई रहती है, कुछ उपहारों की पन्नी में लिपटी होती है, कुछ कई महीनों की प्लानिंग के बाद आलमारी में उपस्थित होती है तो कुछ दो मिनिट में दिल जीत लेती है ....मेरी हर साड़ी कुछ इन्ही बातों को बयां करती है लेकिन एक काॅमन बात है हर साड़ी में, कोई भी साड़ी कटू याद नहीं देती और यही बात साड़ी को खास बनाती है। आप अपनी आलमारी खोलकर देखिये , साड़ियां मीठी बातों से ही बुनी होती है।     साड़ियां माँ

धागों की गुड़िया

एक दिन एक आर्ट पेज मेरे आगे आया और मुझे बहुत पसंद आया । मैंने डीएम में शुभकामनाएं प्रेषित की और उसके बाद थोड़ा बहुत कला का आदान प्रदान होता रहा। वो मुझसे कुछ सजेशन लेती रही और जितना मुझे आता था, मैं बताती रही। यूँ ही एक दिन बातों बातों में उसने पूछा कि आपके बच्चे कितने बड़े है और जब मैंने उसे बच्चों की उम्र बतायी तो वो बोली....अरे, दोनों ही मुझसे बड़े है । तब मैंने हँसते हुए कहा कि तब तो तुम मुझे आंटी बोल सकती हो और उसने कहा कि नहीं दीदी बुलाना ज्यादा अच्छा है और तब से वो प्यारी सी बच्ची मुझे दीदी बुलाने लगी। अब आती है बात दो महीने पहले की....जब मैंने क्रोशिए की डॉल में शगुन का मिनिएचर बनाने की कोशिश की थी और काफी हद तक सफल भी हुई थी। उस डॉल के बाद मेरे पास ढेरों क्वेरीज् आयी। उन सब क्वेरीज् में से एक क्वेरी ऐसी थी कि मैं उसका ऑर्डर लेने से मना नहीं कर सकी । यह निशिका की क्वेरी थी, उसने कहा कि मुझे आप ऐसी डॉल बनाकर दीजिए । मैंने उससे कहा कि ये मैंने पहली बार बनाया है और पता नहीं कि मैं तुम्हारा बना भी पाऊँगी कि नहीं लेकिन निशिका पूरे कॉंफिडेंस से बोली कि नहीं,

नन्हे जूते

ये नन्हे से जूते मैंने बनाये है , एक बहुत प्यारी क्रोशिए की डॉल के लिये । डॉल का फोटो भी जल्दी ही शेयर करूँगी, बस उसे अपनी मंजिल तक पहूँच जाने दीजिए । अब आते है मुद्दे की बात पर....जब मैं यह नन्हे सैंडल बना रही थी तो जूतों से जुड़ी कितनी ही कहावते मेरे दिमाग में आ रही थी जिनमे से एक यह थी कि कभी फलां के जूतें में पावं रखकर देखना तब तुम्हे उन जूतों की राह पता चलेगी।      मैं इस बात से एकदम सरोकार रखती हूँ कि किसी भी सफल/असफल इंसान की डगर उसके अपने संघर्षों से बनी होती है। किसी के जूते आवाज करते है तो कोई चुपचाप राह माप जाते है।       लेकिन यहां बात है नन्हें कदमों की , जो लड़खड़ाते हुए अभी चलना ही सीख रहे है। खासतौर से अभिभावकों के लिये मेरा ये मैसेज है कि ये नन्हे पावं एक दिन आपके जूतों में फिट होंगे, इनकी भी अपनी डगर होगी, इनके भी अपने संघर्ष होगे । इन्हे आप कोई बनीबनायी राह मत दिखाईये बल्कि जिस राह ये चलना चाहे आप उस राह को उन्हे बनाना सिखाईये। आप अभिभावक है , अपने अनुभवों से उन्हे सिखाईये कि पहले अपने जूतों के कंकर निकाले ,फिर मजबूती से पावं जमाते हुए रास्ते पर बढ़े ।           नि

ज़िंदगी विथ ऋचा

क्या मिला....ये छोड़िये खुद क्या किया...ये सोचीये आज दुपहरी क्रोशिया चलाते हुए एक पोडकास्ट सुना। इतना सकारात्मक कि मेरे पास शब्द नहीं है।      पोडकास्ट में एक व्यक्ति अपने साथ हुए एक दुखद हादसे को यह कहकर परिभाषित कर रहा है कि जो भी होता है अच्छे के लिये होता है ।          इंटरव्यू लेने वाली महिला अभिभूत है और प्रश्न पुछती है कि आप इतने पॉजिटिव कैसे है ? सामने वाला व्यक्ति बोलता है कि अपनी माँ की वजह से ❣️     वो कहते है कि मेरी माँ ने मुझे आत्मनिर्भर बनना सिखाया और वो भी डिग्निटी के साथ। माँ ने हमेशा कहा और विश्वास दिखाया कि तुम सब कुछ कर सकते हो ।माँ बाप का सोचना था कि हमारा बच्चा हमारे बिना अच्छे से जीना सीखे और जिये ।         इंटरव्यू में जो व्यक्ति है , उनका नाम है विक्रम अग्निहोत्री जो कि भारत के पहले बिना बाहों वाले  ड्राइविंग लाइसेंसधारी है। उनका मानना है कि बचपन में हुऐ इस  एक्सिडेंट को मैं ब्लेसिंग मानता हूँ अगर मेरे भी हाथ होते तो आज मैं भी साधारण जिंदगी जी रहा होता । मैंने अपने आपमे जो क्षमताएं पायी है वो इसी हादसे के बाद पायी है।      इंटरव्यू में वे हर दूसरी बात में

नयी किताब

आज एक चिर प्रतिक्षित किताब पढ़नी शुरू की है । सिर्फ तीस पन्ने पढ़े है और एक बहुत सुंदर प्रसंग आया और स्वयं को बताने से रोक नहीं सकी ।      मैं स्वामी रामकृष्ण परमहंस की प्रशंसक हूँ और उन्हे एक निश्छल अबोध सरल से सरलतम सन्यासी के रूप में देखती हूँ ....उनकी इसी निश्छलता सरलता का प्रसंग पढ़ा और मन पुलकित हो गया ।     इस प्रसंग में नरेंद्र, ठाकुर (रामकृष्ण परमहंस) की बातों से उनको थोड़ा पगलाया हुआ सा समझते है और अपने तर्क वितर्क से, अपनी हाई स्कुल के ज्ञान से, देश विदेशों के पढ़े दर्शन से वे ठाकुर को समझाने की चेष्टा करते है कि जिस माँ के दर्शन की वे बात करते है वो वास्तव में "हैल्यूसिनेशंस" है ।     ऐसे में सबको ऐसा सब दिखता है जिसकी वे कल्पना करते है और आपकी 'माँ' भी आपको ऐसे ही दिखती है।      ठाकुर का मुहँ उतर जाता है और वे बोलते है लेकिन माँ मुझसे बाते करती है।    नरेंद्र कहते है कि आप सिर्फ बातें करते है, लोगो के साथ तो देवी देवता नृत्य भी करते है....यह एक रोग है , कही बढ़ न जाये, संभालिये अपने आप को।      ठाकुर के चेहरे पर संशय के भाव आ गये लेकिन तत्क्षण उन्होने कहा

घुमक्कड़ी

कहते है ना कि 'उसकी' मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। इस बात से मैं पुरा सरोकार रखती हूँ ।        इस बार हमने स्पिति वैली की ट्रिप प्लान की थी, सब बहुत अच्छे से प्रीप्लान्ड था। जैसा कि हम अक्सर सोचते है कि सब कुछ हमारी प्लानिंग से होगा और प्लानिंग थोड़ा भी बिगड़ती है तो हम इरीटेट हो जाते है ।  भुल जाते है कि.....        होइहि सोइ जो राम रचि राखा।       को करि तर्क बढ़ावै साखा॥ जिस दिन अलसुबह हम निकलने वाले थे, प्लान तभी से प्रभावित होने लगा। पहले दिन ही हमारे घर की बिजली गुल हो गयी । दिन में हमने पैकिंग कर ली थी लेकिन कुछ इस भरोसे रह गयी कि लास्ट टाइम तक चलती रहेगी । मुम्बई इन दिनों प्रीमानसून के दौरान बहुत ह्युमिड रहती है, गरमी चिपचिपाहट अपने चरम पर होती है....उस दिन बिल्कुल ऐसा ही था और लाइट भी शाम तक न आयी। कम्पलेन के बाद बिजली विभाग के कर्मचारियों ने हमारे घर के पास वाले बड़े मीटर बॉक्स को चैक किया, सब ठीक किया। अब आस पास की दो बिल्डिंगों की लाइट आ गयी लेकिन हमारे घर की बत्ती अब भी गुल थी। काफी मशक्कत के बात पता लगा कि हमारे घर तक पहूंचने वाला केबल ही जल गया तो अब बिजल

जिंदगी विथ ऋचा

दो एक दिन पहले "ऋचा विथ जिंदगी" का एक ऐपिसोड देखा , जिसमे वो पंकज त्रिपाठी से मुख़ातिब है । मुझे ऋचा अपनी सौम्यता के लिये हमेशा से पसंद रही है , इसी वजह से उनका ये कार्यक्रम देखती हूँ और हर बार पहले से अधिक उनकी प्रशंसक हो जाती हूँ। इसके अलावा सोने पर सुहागा ये होता है कि जिस किसी भी व्यक्तित्व को वे इस कार्यक्रम में लेकर आती है , वो इतने बेहतरीन होते है कि मैं अवाक् रह जाती हूँ।      ऋचा, आपके हर ऐपिसोड से मैं कुछ न कुछ जरुर सिखती हूँ।      अब आते है अभिनेता पंकज त्रिपाठी पर, जिनके बारे में मैं बस इतना ही जानती थी कि वो एक मंजे हुए कलाकार है और गाँव की पृष्ठभूमि से है। ऋचा की ही तरह मैंने भी उनकी अधिक फिल्मे नहीं देखी। लेकिन इस ऐपिसोड के संवाद को जब सुना तो मजा आ गया। जीवन को सरलतम रुप में देखने और जीने वाले पंकज त्रिपाठी इतनी सहजता से कह देते है कि जीवन में इंस्टेंट कुछ नहीं मिलता , धैर्य रखे और चलते रहे ...इस बात को खत्म करते है वो इन दो लाइनों के साथ, जो मुझे लाजवाब कर गयी..... कम आँच पर पकाईये, लंबे समय तक, जीवन हो या भोजन ❤️ इसी एपिसोड में वो आगे कहते है कि मेरा अपमान कर

माँ

माँ शब्द आते ही जेहन में सबसे पहला इमोशन आता है सिर्फ प्यार ही प्यार, दुनिया जहान का प्यार   1.एक ऐसी अदालत जहां आपकी हर बात की, हर गलती की माफी होती है।  2.एक ऐसा स्कुल जहां जीवन भर आपको सीख मिलती है और सबसे अच्छे प्यारे विद्यार्थी का मेडल भी। 3. एक ऐसा मंदिर जहां आपको इष्ट के समकक्ष बैठा दिया जाता है। 4. एक ऐसी आरामगाह जहां खुली बाहों से आपका स्वागत होता है।  5.एक ऐसी छत जिसकी छावं तले आप महफ़ूज रहते है। 6.एक ऐसा अधिकार जो कभी मांगना नहीं पड़ता। 7. एक ऐसा कल्पवृक्ष जिससे कभी कुछ कहना नहीं होता , बिन बोले आपकी मुरादें पूरी होती है। 8.एक ऐसा इंश्योरेंस जो आपकी लंबी आयू के लिये अनवरत प्रार्थनाएं दर्ज करता रहता है। 9.एक नजरबट्टू जो आपको हर बुरी नजर से दूर रखता है। 10.एक ऐसी गीता जो हर पथ पर आपका मार्गदर्शन करती है । 11.एक कूंजी, जिसके पास आपकी हर समस्या का समाधान होता है। 12.एक भरोसा जो आपके सिर पर हाथ फिराता है कि चिंता मत कर , मैं हूँ तुम्हारे लिये , तो यकिन मानिये कि ईश्वर स्वयं आपके समक्ष खड़ा होता है । 13.एक आशीर्वाद जो मृत्यु के उपरांत भी सदैव आपके साथ रहता है। 14. माँ, जो साथ थी, तब

कला और कलाकार

आज एक बेहतरीन कलाकार व्यक्तित्व से मुलाकात हुई। एक निहायत सरल व्यक्तित्व,जो न सिर्फ चित्रकला पेंटिंग में माहिर है बल्कि उनकी लेखनी भी अनवरत चलती रहती है,गाँधीवादी विचारधारा से सरोकार रखने वाली ये शख्सियत पुरातत्व विद्वान है,दुनिया की बहुत सी गुफाओं के भीतर बने भित्तिचित्रों का न सिर्फ अध्ययन किया है बल्कि इस पाषाण कला को बचाने के लिये जी जान से प्रयासरत है।        आज मैं मिली पदमश्री डॉ. यशोधर मठपाल से , उनके लोक संस्कृति संग्रहालय में । मठपालजी की उम्र  85 वर्ष  है, लेकिन एनर्जी इतनी कि वो संग्रहालय दिखाने हमारे साथ चल लिये अपनी छड़ी लेकर । हर चीज के बारे में वो बड़े उत्साह से बता रहे थे और बहुत ही अपनेपन से अपनी सहेजी हुई धरोहर दिखा रहे थे। फाइन आर्ट गैलेरी में मैं उनकी बनायी बड़ी बड़ी पेंटिंग देखकर अचंभित हो गयी तो उन्होने हँसते हुए कहा कि "मैं लगभग 40000 पेंटिंगस् बना चुका हूँ....अभी कल ही एक वॉटर कलर पेंटिंग बनाया हूँ , पेंटिंग मेरे लिये अल्कोहल का काम करती है, एक तरह का नशा है " ।  मैं उनकी इस बात से पूरी तरह सहमत थी क्योकि यह नशा मुझे भी है ।         गैलेरी के अगले हिस्से

उम्मीद

लाख उजड़ा हो चमन एक कली को तुम्हारा इंतजार होगा खो जायेगी जब सब राहे उम्मीद की किरण से सजा एक रास्ता तुम्हे तकेगा तुम्हे पता भी न होगा  अंधेरों के बीच  कब कैसे  एक नया चिराग रोशन होगा सूख जाये चाहे कितना मन का उपवन एक कोना हमेशा बसंत होगा 

पलाश

एक पेड़  जब रुबरू होता है पतझड़ से  तो झर देता है अपनी सारी पत्तियों को अपने यौवन को अपनी ऊर्जा को  लेकिन उम्मीद की एक किरण भीतर रखता है  और इसी उम्मीद पर एक नया यौवन नये श्रृंगार.... बल्कि अद्भुत श्रृंगार के साथ पदार्पण करता है ऊर्जा की एक धधकती लौ फूटती है  और तब आगमन होता है शोख चटख रंग के फूल पलाश का  पेड़ अब भी पत्तियों को झर रहा है जितनी पत्तीयां झरती जाती है उतने ही फूल खिलते जाते है  एक दिन ये पेड़  लाल फूलों से लदाफदा होता है  तब हम सब जानते है कि  ये फाग के दिन है बसंत के दिन है  ये फूल उत्सव के प्रतीक है ये सिखाता है उदासी के दिन सदा न रहेंगे  एक धधकती ज्वाला ऊर्जा की आयेगी  उदासी को उत्सव में बदल देखी बस....उम्मीद की लौ कायम रखना 

पलाश

इस बार जब अपने खेत वाले घर में जाना हुआ तो दूर से ही घर के पिछवाड़े एक लाल पेड़ मुझे दिखा और बरबस ही मुझे चिनार याद आ गये ।          मैं नजदीक गयी तो पता लगा कि बसंत आने वाला है....ये पलाश के फूल थे जो पेड़ की शाखाओं पर झूंड में थे । जब मैंने छत पर जाकर देखा तो कई जगह ये पलाश के पेड़ दिखे । पहाड़ों में,जंगलों के बीच ये पेड़ इतने खूबसूरत लग रहे थे कि कल्पना भी नहीं की जा सकती ।        मैंने पलाश के पेड़ों को नजदीक से जाकर देखा, बड़े बड़े तीन पत्तों की जोड़ी वाला ये पेड़ अपनी पत्तियों को गिरा रहा था और जो पत्तियाँ पेड़ों पर थी वो भी सूखी सी, धूल मिट्टी से सनी । यहाँ पर सभी पेड़ ऐसे ही थे ....सब पर धूल जमी हुई थी । मेरे मन ने कहा कि एक बारीश होगी और ये सब नहाये धोये हो जायेंगे। प्रकृति सबका ख्याल रखती है अपने तरीके से ।        हाँ , तो हम वापस आते है पलाश पर.....इन धूल जमी आधी बची सी पत्तियों के बीच ये अलौकिक पुष्प इस तरह खिल रहे दे जैसे कोई दैवीय वृक्ष हो । पत्तों पर जितनी धूल थी वही इसकी मखमली पत्तियों पर कही कोई धूल नहीं बल्कि एकदम ताजगी भरा अहसास । एक ही वृक्ष पर दो विरोधाभास । मेरी उत्सुकता बढ़ गय