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सितंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भाषा इशारों की

बात लॉकडाउन से पहले की है....मैं कुछ जरुरी शॉपिंग करने बेटी के साथ मॉल गयी थी। बेटी को कॉलेज जाना था इसलिये हमने तुरतफूरत सब लिया और बिलिंग काउंटर पर आ खड़े हुए । हमारे काउंटर पर एक दिव्यांग लड़की थी जिसने सामान का बिल बनाया और साइन लैंग्वेज में पेमेंट मोड पूछा। मैंने कार्ड दिखा दिया, उसने कार्ड लेकर स्वाईप किया और मुझे एक ऑफर के बारे में बताया या बताने की कोशिश की। मुझे कुछ समझ नहीं आया, बस, इतना समझा कि वो किसी ऑफर के बारे में बता रही है और उसे मेम्बरशिप नम्बर देना है । मैंने रजिस्टर्ड फोन नम्बर दिया जो मेरे हसबैंड का था। अब उसने मुझसे ओटीपी मांगा जो रजिस्टर्ड नम्बर पर आया । मैंने माफी मांगते हुए कहा कि मैं ये ऑफर बाद में देख लूंगी क्योकि बेटी को कॉलेज जाना था। इतना सुनकर वो मुझे और अधिक तरीके से समझाने लगी । मुझे अहसास हुआ कि शायद मैं सही तरीके से समझ नहीं पा रही हूँ। मुझे ग्लानि भी हुई पर समय की कमी की वजह से मै 'फिर कभी' कहकर निकल आयी। निकलते वक्त मैंने उसके उदास चेहरे को देखा। निसंदेह उसकी समझाईश में कमी नहीं थी, कमी मुझमे थी जो मैं उसकी भाषा समझ नहीं पा रही थी।       घर आक

पचास में पाँच कम

कल मैं पूरे 45 साल की हो गयी....पचास में बस पाँच कम। खुब चहक चहक कर अपना जन्मदिन मनाया। पता नहीं ये कैसा उत्साह होता है जो इस दिन मुझे चढ़ा रहता है और आज जैसे हैंगओवर बर्थडे का।            कल से शिद्दत से महसूस कर रही कि ये तन है जो उम्र की गिनती जोड़ रहा बाकी मन तो आज भी अठखेलियां ही कर रहा। मेरा मन कभी मानता ही नहीं इन बंधनों को। अक्सर हम लोग मन को मारकर उम्र के नम्बरों के हिसाब से व्यवहार करने लगते है जो कतई व्यवहारिक नहीं है। मैं ऐसा भी नहीं कहती कि हमे बचकानी हरकतों को बढ़ावा देना चाहिए। वक्त के साथ हमारी सोच विकसित होती है वो स्वाभाविक है लेकिन उम्र के लबादे को ओढ़कर सोचना तर्कसंगत नहीं।        आप की उम्र चाहे जो हो, उसे स्वीकार करे , झूर्रिया दिखती है तो दिखने दे, छुपाये नहीं ...ये तो श्रृंगार है प्रकृति का, सहज ही सजने दे। घुटने का दर्द भी उम्र का अहसास करायेगा....इट्स ओके....हड्डियां चटखेगी...चटखने दे, संगीत है कमजोर होते शरीर का, लेकिन मन ....वो तो निर्बाध है, उन्मुक्त है ....वहाँ न सिलवटे है, न झूर्रियां,न दर्द...वो सिर्फ उड़ना जानता है , वहाँ सिर्फ जीवन संगीत है । ये जो मन होता