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कोरा कागज

कुछ खास नहीं आज लिखने को  तो सोचा  चलो समय के कागज पर  कलम को अपनेआप ही चलने दूं  अपनी ही लेखनी को एक नया आयाम दूँ  दिल और दिमाग  पर छाये शब्दों को  अस्त-व्यस्त ही सही  लेकिन बहने दूं  शायद कविता ना बन पाए  शायद अक्षर मोती से ना  सज पाए  लेकिन  चलने दूं  लेखनी को  अपनी ही रफ़्तार में  लिखने दूं  कुछ शब्द अपनी ही जिंदगी की किताब के  लेकिन ये क्या ? कुछ कडवे पर सच्चे शब्द  उड़ गए वक़्त की आंधी में , किसी पाबंदी में  निकले थे जो दिमाग  के रस्ते से  और कुछ भावुक शब्द  पिघल गए अपनी ही गरमी से  धुल गए आंसुओं से  जो निकले थे सीधे दिल से  और................................ मेरी लेखनी को आयाम नहीं  सिर्फ विराम मिला  और मेरा कागज जो कोरा था  कोरा ही रह गया