सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

फ़रवरी, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आज का दिन

आज मन बड़ा खुश है....इतना खुश कि शब्दों से बयां ही नहीं कर सकती । रगों में जैसे भारतीयता दौड़ रही है। आँखों में एक गुरूर सा छाया है। चेहरे पर जैसे  एक ओज है । आज की तो जैसे हवा भी गुनगुना रही है । आज की सुबह का सूरज भी कुछ ज्यादा सुनहरा था । आज का चाँद भी कुछ अधिक शीतल है । जाती हुई ठंड भी थोड़ी ज्यादा गुलाबी हुई जा रही है। फरवरी इस बार कुछ ज्यादा इतरा रही है । मेरे किचन में चुल्हे पर चढ़ी कड़ाही में पकौड़े भी खुशी से तैर रहे है । बाहर सड़क से दूर कही भारत माँ की जय मेरे कानों में मिठास घोल रही है। टीवी चैनल्स पर न्यूज का सुनना पिछले पाँच सालों में पहली बार मेरे मन को सुखद लग रहा है । आज की शाम बिल्कुल भी उदास नहीं थी। व्हाट्सएप के मैसेज आज पकाऊ नहीं लग रहे है । फोन पर भी यही गर्वित क्षण बाँटे जा रहे है। न जाने कैसा जादू है आज की हवा में। आज कोई किसी से नाराज नहीं । आज सबका सुख साझा है । आज सबकी आवाज में खनक थोड़ी अधिक है । सबकी हँसी में खिलखिलाहट थोड़ी ज्यादा है । आज सबके कदमों में एक तालमेल सा है, कोई किसी दौड़ में शामिल नहीं, आज सब साथ साथ है । हाथों में सबका हाथ भले ही  न हो पर आज पूरब से पश

अध्यात्म

तुम देह को भोग कर आना अपना सारा इश्क़ करके आना जब बातों से जी भर जाये तब आना तुम तब आना जब सूरज अस्त होते होते थोड़ा सा बचा हो सिंदूरी आसमाँ रात की अगवाई में सजा हो पंछी अपने घरों को लौट रहे हो तुम भी लौटना वैसे ही लेकिन पूरी तरह रिक्त होकर आना तभी तो भर पाओगे मुझको खुद में मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा अंतिम सूरज के अंतिम टुकड़े तक तुम अपनी धूरी पर घुमना मैं घुमता रहूँगा अपनी पर और एक वक्त आयेगा तब कंपन होगा, स्पंदन होगा छू जायेंगे एक दूजे को फिर से हम लेकिन बस.... कोई इच्छा शेष मत लाना तुम जी भर के जीकर आना सिर्फ मुझसे एकाकार होने आना 

कशमकश

न जाने क्यो आज रह रहकर मुझे याद आ रहा है कठुआ कांड, जिसमे एक मुस्लिम बच्ची आसिफा के साथ बलात्कार का मामला दर्ज हुआ था । मैंने भी बच्ची का स्कैच बनाकर अपना रोष जाहिर किया था।        इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि सवाल उठने लगे थे । यह पहली बार था कि जब विक्टिम का असली नाम और उसकी तस्वीर सोशियल मीडिया पर आसानी से उपलब्ध थी। हमे भुलना नहीं चाहिये कि निर्भया केस की हवा देश के कोने कोने में फैली थी , लेकिन फिर भी विक्टिम का असली नाम और तस्वीर आसानी से उपलब्ध न थी और न है ।         इस घटना के थोड़े दिन बाद ही एक और बच्ची के साथ रेप हुआ लेकिन किसी को भनक भी न लगी । लोग कहते रहे कि बच्ची हिंदू थी, इसलिए मामला दबा दिया गया । हालांकि हम अब भी कहते है कि जातिगत भेदभाव से देश को दूर रखना चाहिये ,लेकिन आसिफा का मामला ....ऐसा लगा था कि पुरा खिंचा गया खाका था...हिंदू मुस्लिम भावनाओं को भड़काने का। इसे इतनी बखूबी डिजाइन किया गया था कि नामी गिरामी लोग इसमे कूद पड़े। पुरा बॉलीवुड बिना मेकअप के एक तख्ती लेकर फोटो शूट करा रहा था । अचानक सब लोग आसिफा को न्याय दिलाने पर आमादा हो गये ।  इसमे कुछ गलत भी नहीं....

माँ बहन

पुलवामा अटैक को लेकर लोगो का रोष अपने चरम पर है। लोग भड़के हुए है और यह गुस्सा,यह विद्रोह जायज भी है । मैं खुद भी जैसे बदले की आग में झुलस रही हूँ । हमारे जवानों की मौत का बदला लेना बहुत जरूरी है । लोग कैम्पैन चला रहे है , कैंडल मार्च कर रहे है,नारे लगा रहे है और यह सब बिल्कुल सही भी है और जरुरी भी है । जब तक कार्यवाही नहीं हो हमे इस कुर्बानी को भुलना नहीं है और न ही सरकार को भूलने देना है ।    इस दुख में पुरा देश एक साथ है और अपने अपने तरीकों से हम सब विरोध प्रदर्शन कर भी रहे है । लेकिन इन सब के बीच विरोध करते हुए कही न कही हम संयम ही नहीं अपनी संस्कृति भी खो रहे है ।     क्या माँ बहन की गालियों से ही पाकिस्तान का बहिष्कार किया जा सकता है ? माँ की गालियों से सजे पोस्टर हमे न्याय दिलवायेंगे ? पाकिस्तान की माँ बहन एक करते वक्त हम किस संस्कृति का प्रचार करते है ? क्या हमारे देश में 'माँ ' महज एक शब्द है ? किसने अधिकार दिया उसे गाली में स्थापित करने का ?     माना कि हमारा गुस्सा जायज है लेकिन माँ बहन की गालियों के बिना भी हम कही अधिक उग्रता से अपना विरोध दिखा सकते है । ये गा

वर्जिनिटी

देह के समीकरण से परे देखना कभी उसे समूचा ब्रह्मांड समेट के रखती  है खिलखिलाते लबों के पीछे मुस्कुराती सी जिंद़गानी सहेजे रखती है देखना कभी नजरे मिलाकर, न जाने कितने सैलाब समेटकर रखती है ब्याह की चुनरी की नीचली सतह में, अपना कुवांरापन छुपाकर रखती है छूई हुई देह में, संभालकर आज भी अनछूआ एक मन रखती है नही बाँटती वो किसी के भी साथ ये मन और वो अल्हड़ कुवांरापन सच है कि वर्जिन नहीं होती है, पर एक वर्जिन आत्मा रखती है और उस वर्जिनिटी को भंग करने की इजाजत वो किसी को नहीं देती है समझना कभी उसके इस भुगोल को भी

सुकून की तलाश

पुलवामा अटैक से हम सब आहत है। पुरा देश सदमे में है ,एक क्रोध की लहर हर रग में है । क्रोध से कभी किसी का भला नहीं होता लेकिन इस बार ये क्रोध हम सब को भारतीयता की डोर में बाँध रहा है,तमाम जातिगत मतभेदों के बावजूद ।                 देश शहीदों के लिये दुआएं कर रहा है। मदद के हाथ आगे आ रहे है । मुझे मेरे देश पर गर्व हो रहा है ,लेकिन दुसरी तरफ अपनी बेबसी पर गुस्सा भी आ रहा है ।              पहला गुस्सा तो इस बात पर कि क्यो हमारे जवानों को मारा गया हालांकि इस बात पर कई सवाल जवाब सोशियल मीडिया पर हो चुके है और क्या सही है क्या गलत है ,कुछ समझ नहीं आ रहा । बदला लेने की भावना व्यक्त करो तो हिसंक बता दिये जाते हो और शांति की बात फिलहाल अन्तर्मन स्वीकार नहीं कर पा रहा।            दुसरा गुस्सा या फिर ग्लानि कहे तो ज्यादा सही होगा,वो इस बात पर कि शहीदों के परिवारों के लिये कुछ कर नहीं पा रही। बात महज डोनेशन की नहीं हैं.... उन तक पैसा पहूँचाने के बहुत सहज सुलभ उपाय मुहैया है और पुरा देश खुले हाथों से मदद पहूँचा भी रहा है ,लेकिन मेरा मन कुछ और चाह रहा । मैं उन परिवारों तक कम से कम एक परिवार से तो म

आईना

जीवन की राह में चलते हुए अचानक दिख जाता है एक आईना एक वजूद के रुप में असमंजस होता है हुबहू कोई हम जैसा भी होता है अजनबी होता है,लेकिन दिल की गहराइयों में स्थापित हो जाता है अनायास ही जूड़ जाता है एक ऐसा रिश्ता जिसका कोई नाम नहीं बेनाम सा ये रिश्ता आत्मा को एक छोर से बाँध देता है लेकिन फिर भी छूट जाता है एक दिन वो वजूद और , उस दिन से हम भूल जाते है आईना देखना....बस, ताउम्र उस छोर की गिरफ्त में खूद को निहारते रहते है ।

सही गलत

कोई कह रहा युद्ध ही विकल्प तो कोई शांति अख्तियार करने बोल रहा कोई 370 की बात कर रहा तो कोई सियासी रोटी सेंक रहा न जाने क्यो भाव भी उठ रहे हवा देखकर ?? नहीं पता..क्या सही,क्या गलत लेकिन एक माँ की आँखों में आक्रोश क्या गलत है ? सही है रंग बिरंगी चूड़ियों का टूटना ? सही है बच्चों का बिलखना ? सही है किसी का जीवन भर इंतजार? सही है जवानों का बेमौत मारा जाना ? पता नहीं..... बद से बदतर है हम एक दुसरे के भावों को ही गलत ठहरा रहे दुखी सब है.....पर उसमे भी गहराई तलाश रहे मैं बस इतना जानती सबसे गहरा दुख उसका जिसने खोया अपना...... उसमे विकल्प मत तलाशो उसके लिये तो सब गलत ही गलत है

पुलवाना अटैक

वो बचपन से ही सेना में जाना चाहता था । 26 जनवरी की परेड देखते वक्त उसकी आँखे चमक उठती थी । जवानों के सधे कदमों के साथ वो भी टीवी स्क्रीन के सामने बैठकर अपने कदमों को उनके साथ मिलाया करता था ।      उसने सेना में भर्ती का फॉर्म भर दिया था और लिखित परीक्षा में पास भी हो गया । वो बहुत खुश था क्योकि उसका सपना सच होने जा रहा था । कुछ फिजिकल टेस्ट अभी बाकी थे लेकिन वो निश्चिंत था क्योकि पिछले तीन सालों से वो व्यायाम करके अपने आपको फिट रखता आ रहा था । सब अच्छे से हो गया , वो अप टू डेट था ......लेकिन एक टेस्ट वो पास नहीं कर सका। उसकी आँखों की रोशनी 6/6 नहीं थी । उसे रिजेक्ट कर दिया गया लेकिन वो टूटा नही । सेना में भर्ती उसका जुनून था और जुनून को छोड़ भटकता फिरे, ऐसा वो जवान नहीं था । हालांकि वो बहुत अमीर नहीं था फिर भी पापा ने बेटे की इच्छा को देखते हुए अपनी सेविंग का एक हिस्सा उसके ऑपरेशन पर खर्च किया । उसने अपनी आँखों का ऑपरेशन करवाया । सफलतापूर्वक ऑपरेशन से आँखे 6/6 हो गई ।    उसने फिर से आवेदन भरा....इस बार लिखित ही नहीं सारे टेस्ट भी पास किये। उसका सीना तय मापदंडो से दो इंच ज्यादा फूला ।