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अक्तूबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अनकंडीशनल लव

अक्सर होता है कि हम लोगो को मतलब अपने प्रिय लोगो को बांधकर रखना चाहते है .....हर वक्त उनका सामिप्य चाहते है क्योकि हम उनसे प्यार करते है। क्या यह सच में प्यार है ?          हम उनकी हर बात मानते है। उनको खुश रखने की कोशिश करते है। उनकी गलत बातों को नजरअंदाज कर जाते है बिल्कुल उसी तरह जैसे एक माँ को अपने बच्चें की गलतियां कभी दिखती ही नहीं है । क्या यह है अनकंडीशनल लव ?         आप किसी के आँसू नहीं देख सकते क्योकि आप उनसे प्यार करते है । आप उनके लिये हर वो काम करते है जो उनकी आँखों को नम होने से बचाये रखे । आप दुनियां के हर बदरंग से उन्हे बचाकर रखते है। उनकी हर तमन्ना आपकी अपनी इच्छा बन जाती है।  प्रेम की क्या यही परिभाषा है ?        अब एक बार खूद को विराम देकर ऊपर की बातें फिर से पढ़े....और स्वयं से सवाल करे.....यह प्यार है या मोह ? बंधन है या स्वतंत्रता ? निर्भरता है या उंमुक्तता ?          हालांकि मुझे इतना ज्ञान नहीं है कि मैं इतने प्योर इमोशन या भाव की व्याख्या कर पाऊँ ।  बस...अपने अनुभवों से जाना है , सीखा है, समझा है। ऊपर लिखी सब चीजे मैंने अपनों के लिये की....उनकी आँखों की चमक, मु

ख़्वाहिश

अगर कभी भी आपके मन में एक ख्वाहिश उठती है एक जगह टिक बैठने की तो समझ लीजिये  आप सुकून में है किसी काम में आपका मन इतना रम जाता है कि आप ध्यानमग्न हो जाते है किसी एक इंसान का सामिप्य  अगर आपको  हर बार कम पड़ जाता है तो समझ लीजिये आप प्रेम में है किसी एक व्यक्ति के अहसास में आप जीवन गुजार सकने की ख्वाहिश में है तो यकीकन यह प्रेम है लेकिन अगर आपका मन रमता नहीं है टिकता नहीं है दस दिशाओं में भागता है एक हाथ से होकर दूसरे साथ से गुजरता है एक अधुरे काम से दूसरी पूर्णता को छूता है और बहुत जल्दी गर उकता जाते है आप किसी भी काम से किसी भी इंसान से तो यकिन मानिये आप अधर में है  तनिक ठहर कर खंगालिये खुद को पहले खुद को स्थिर कीजिए फिर स्थिरता तलाशिये काम मे  इंसान में

मनुहार

लंच बहुत बढ़िया रहा....... मेरे बड़े से परिवार के लगभग सभी सदस्य हमारे साथ थे....लगभग 60 लोग। शाम चार बजे तक धीरे धीरे सब लोग चले गये। पीछे का बिखरा सब बाइंड अप करने हम दोनो वही रुक गये।  हम दो दिन रुकने वाले थे इसलिए पता था कि मैं आराम से साफ सफाई कर सकती हूँ । मैंने आराम से सामने वाले खड़े विशालकाय पहाड़ को भरपूर निहारा और तब तक देखती रही जब तक कि अंधेरा नहीं घिर आया। नयी जगह थी इसलिए नींद बहुत अच्छी नहीं आयी। अलसुबह ही मैं उठकर बाहर आ गयी और चहचहाने की आवाज मुझे स्फूर्ति दे गयी। मैंने चाय बनायी और स्विमिंग पूल के पास आकर बैठ गयी और सुर्योदय तक बैठी रही।       नाश्ते के लिये हम लोग मेथी के पराठें लाये थे और ब्रेड भी थी । एक और चाय के साथ उन्हे पेट में जगह दी। अभी कुछ छोटे मोटे काम बाकी थे घर के ....तो उन्हे पूरा करने कुछ लोग आ गये। पास ही पाँच सौ की आबादी वाला गाँव है वहां से मजदूर आये थे घास काटने जिनमे से तीन महिलाएं थी। एक महिला से मैंने घर में झाड़ू पौछा लगवाया और उसके परिवार के बारे में बात की। हालांकि मुझे मराठी बोलना नहीं आता और उसे हिंदी बोलना नहीं आता लेकिन हमारा वार्तालाप बहुत आ

विदा

जब कोई आपके जीवन में बहुत सारे प्यार के साथ दस्तक देता है तो आप खिल जाते है बसंत सा महकने लगता है जीवन लेकिन जब विदा का वक्त आता है तो क्यो विदा नहीं दे पाते ? जब आगमन का स्वागत था  तो विदा का क्यो नहीं ? याद रखिये  बसंत अपने पीछे हमेशा  पतझड़ लेकर आता है आप स्वागत करे या न करे उनका आना तय है तो सीखिये प्रकृति से विदा बोझिल नहीं होनी चाहिये विदा भारी मन से नहीं होनी चाहिये विदा ऐसी हो जैसे बसंत खूद को झर देता है  पतझर के लिये बिना शोक बिना गिला बिना शिकायत