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जनवरी, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
                   शुभ प्रभात  बिटिया की जिद के चलते घर में फिर से एक नन्हे से जीव का प्रवेश हुआ है और पिछले दो दिनों से घर की धुरी मैं नहीं बल्कि कछुआ प्रजाति का यह नन्हा सा जीव बना हुआ है .इसे देखते ही सबसे पहले बचपन की वो कहानी याद आती है जिसे हमने ना जाने कितनी बार वार्षिक परीक्षा की उत्तर-पुस्तिका में लिखा था .......बचपन की वो बार-बार दोहराई हुई कहानी आज भी शायद हम सबके स्मृति-पटल पर अक्षरश: अंकित है. लेकिन आज भी इस कछुए को देखकर यही लगता है कि क्या वाकई इस धीमी चाल के कछुए ने फुर्तीले खरगोश को हरा दिया था या फिर ये हमारे पूर्वजो द्वारा गढ़ी गई एक कहानी मात्र है, बालमन को प्रेरित करने की.......हम तो इस कहानी से प्रेरणा ले लिया करते थे ,लेकिन आज मन में एक सवाल उठता है ,क्या आज की पीढ़ी के बच्चे ऐसी कहानियों से प्रेरित होते है ?                       खैर.........................बेटी (शगुन) बहुत खुश है ,कभी उसे खाना देती है, कभी नहलाती है,दिन में दो बार उसका पानी बदलती है, कभी हथेली पर लेकर उसे सहलाती है और जब वो उसे फर्श पर छोड़ती है तो ये नन्हा जीव घबरा कर अपने-आप को खोल मे

मन की थाह

मन की थाह  मन करता है कि आसमां को माप लु  समुंद्र की गहराइयों को छू लु  चाँद की चांदनी को समेट लु  सितारों को अपनी चुनरी में सजा लु  छू लु किसी के अंतर्मन को  और वेदना को कम कर जाऊ  किसी के मन की तपिश को  मेरे मन की शीतलता सुकून दे जाए  और भी ना जाने  क्या-क्या चाहता है मन मेरा  बस कोई तो एक हो  जो मेरे भी मन की थाह ले सके 
पिछला पखवाडा बहुत व्यस्तता वाला रहा .....सूर्य देव के मकर राशी में प्रवेश के साथ ही मल-मास समाप्त हो गया और शुभ कार्यों का शुभारम्भ हो गया ........मकर सक्रांति का त्यौहार , माहि चौथ का व्रत , घर के प्रांगण में माता की चौकी और दैनिक जीवन में घटने वाली छोटी-छोटी घटनाएँ जो मन-मस्तिष्क पर अमिट प्रभाव छोड़ देती है ........इन्ही सब के बीच नए साल का पहला महिना विदा लेने को है और विदाई के साथ मेरी झोली में डाल जायेगा खट्टी-मीठी यादों की सौगात ......और हर बार की तरह मैं मीठी यादों को सहेज लूँगी अपनी ही यादों के बगीचे में और खट्टी यादों की पोटली बना फ़ेंक दूंगी पास के तालाब में ...........                             यादों के गलियारों से निलकते हुए           अतीत के झरोखों से झाकते हुए           कभी-कभी जी लेती हु मैं भी          वो पल ,          जिन्हें सहेजा है मैंने अपनी ही यादों के पिछवाड़े में          जहा आज भी सांसे भरती है खुशियाँ          महसूस करती हु उन सांसों की गर्माहट          आज भी         एक ही क्षण में ,अपनी पूरी आत्मीयता से         जी लेती हु वो पल          और जी क