इन दिनों मन विचलीत सा है चंचल सा रहने वाला ये मन ना जाने क्युँ बेचैन सा है एक तस्वीर सी उभरती है दिलो दिमाग़ में जो कई सवाल खड़े करती है कुछ गफ़लत सी छाई रहती है कुछ समझ सकूँ उससे पहले धुँधला जाती है वो तस्वीर असमंजस में हूँ कि परिस्थितियों का एक सिलसिलेवार क्रम है या फिर सिर्फ मेरे मन का भ्रम है मानती हूँ कि मेरी छठी इन्द्रिय हैं कुछ ज्यादा ही सक्रिय इसीलिये भ्रम मात्र तो मान नहीं सकती सच हो नहीं सकता कश्मकश में है मन सोच रही हूँ वक़्त पर सब छोड़ दूँ समय की आँधी धुँधलका हटा देगी और तस्वीर खुद-ब-खुद साफ़ दिख जायेगी तब तक ऐ जिन्दगी ! तु और मैं गफ़लत में ही सही थोड़ा जी लेते है।
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है