सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

मार्च, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्रार्थनाएं

इन दिनों टीवी पर दिखाये जा रहे और व्हाट्सएप पर वायरल हो रहे विडियों को देख रही हूँ, जिनमें एक जन सैलाब उमड़ता दिखाया जा रहा है। इस जन सैलाब में कुछ छोटे बच्चें है जो खेलते कुदते चले जा रहे है , कुछ इतने छोटे है जो किलक रहे है अपनी माँओं की गोद में, कुछ नवविवाहित से पति पत्नी है जो नयी दुनिया बसाने शायद शहर आये थे,अब सब समेट फिर से गाँव जा रहे है, कुछ अधेड़ से है जो बूरी तरह से ध्वंस दिख रहे है और भागे जा रहे है भरे पूरे परिवार को लेकर, कुछ नौजवान से है जिनके सिर पर बोझे है, कंधों पर भी सामान है, निराश से है। ये सारा जन सैलाब आज उसी पगडण्डी की ओर जा रहा है जिस पगडण्डी से होते हुए ये इस शहर वाली सड़क पर आ गये थे। एक विडियों में इन लोगों से पुछा गया कि पैदल कब तक चलोगे तो वे कहते है कि गूगल मैप बता रहा है कि छ: दिन में अपने गाँव पहूँच जायेंगे । मुझे उसका जवाब निशब्द कर गया...न जाने इन्हे कितने कितने किलोमीटर तक जाना है, साथ में बुजुर्ग है, महिलाएं है, बच्चें है ।       लॉकडाउन के इस वक्त में इतनी भीड़ देखकर हम सभी अपने घरों में बैठे लोग चिंतित है कि ऐसे हम कैसे कोरोना को भगा पायेंगे , लॉकडाउन

अमृता और इमरोज़

ऐसा नहीं है कि वो कही गयी बातों को सच मान बैठती है, खासतौर पर प्रशंसा में कही गयी बातें। वो जमीनी हकिकत को जानती है लेकिन उसकी कल्पनाओं का संसार इतना बड़ा है कि वो एक बात कि उंगली थाम न जाने कहाँ कहाँ विचरण कर आती है। वो सच झूठ की कसौटी में नहीं उलझती, कहे गये शब्दों में भी नहीं उलझती और ना ही किसी शब्द पर आँख मूंदकर विश्वास करती है। उसकी अपनी कसौटियां है, इसीलिये वो आत्ममुग्धा है । वो नहीं जानती कि ये घमंड है या ऐसा कुछ जो किसी का नूर बन जाता है लेकिन कोई है जो इसे घमंड बताता है। वो हर शब्द से अर्थ निकालती है....गहन विश्लेषण करती है। उसकी कल्पनाओं का यह संसार कलात्मकता का एक मेला है जिसे रचती है वो अपने ही रंगों, अर्थों और बातों से। अपनी ही बातें उसे कभी कभी आत्मज्ञान की तरह लगती है। उसकी अपनी अनुभूतियाँ उसे विभोर करती है। वो हर बात में अनुभूति को जीती है।        आज जब किसी ने कहा कि "तुम अमृता भी हो और इमरोज भी" तो वो मुस्कुरा उठी, क्योकि वो कभी कभी खूद को ही कहती रही है कि "मैं इमरोज़ बनना पसंद करूँगी"। उसे इमरोज़ बहुत पसंद है। हजारों कारण है उसके पास उसको पसंद करने

इक्कीस दिन

मैं आभारी हूँ आपकी आभारी हूँ आपके लिये निर्णयों की आप पर विश्वास हमेशा से रहा है अब ये अधिक सुदृढ़ हुआ है असंभव सा जो दिखता था आपने उसे संभव कर दिखाया दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र इतना बड़ा जन सैलाब उसे थामना उसे समेटना कतई आसान न था बल्कि सोचना भी मुश्किल था आपने बड़ी सूझबूझ से  इक्कीस दिनों का चैलेंज सामने रखा न जाने ये 21 दिन  कितने भारतीयों की आदत बदल देगा कहते है ना कि एक नयी आदत परिपक्व होने में 21 दिन लेती है  तो आप लहर लाये है बदलाव की देश को बचाने के ये इक्कीस दिन वाकई इतिहास में लिखे जायेंगे  आपके इस फैसले से आपके व्यक्तित्व की दृढ़ता परिलक्षित होती है नमन है, नतमस्तक है पूरा देश आपके आगे इस वैश्विक महामारी के संकटकाल में आपका यूँ निर्णय लेना  एक बहुत बड़ी बात है पूरे  देश को लॉकडाउन करना ऐतिहासिक है सही वक्त पर सही निर्णय  मैं दिल से आभारी हूँ पुरा देश आभारी है  आपकी जनता आपके साथ है विकसीत देशों के पास  बेहतरीन चिकित्सीय टीम और संसाधन है लेकिन हमारे पास आप है  शुक्रिया आपका  आपके भाषण के बाद मैंने अपने बेटे को यूएस में फोन लगाया जहाँ उसने भी आपको लाईव देखा  मैंने गर्व से कहा....म

बस दो हफ्ते

महामारी के मायने हम सभी समझते है तथाकथित समझदार लोग जो है हम। पिछले कुछ दिनों से स्कुल ,कॉलेज, मॉल, थियेटर सब बंद है । इस बंद के क्या मायने है....यही कि हम लोग एक साथ एक जगह भीड़ के रुप में इकठ्ठा न हो, फिर भी हममे से ही कुछ लोग इकठ्ठे हो रहे है। कभी थोड़ी देर टहलने के बहाने, वर्कआउट के बहाने, राशन लाने के बहाने। बड़े बजूर्गों का घर में दम घूट रहा है । बाहर हैंगआउट कर चिल्ल करने वाली नयी पीढ़ी हाथ में सैनिटाईजर लगा कर इसे हल्के में ले रही है ।       हमारे प्रधानमंत्री मोदीजी ने जनता कर्फ्यू का आवहान किया जिसे शत प्रतिशत सफलता मिल रही है और लोग पूरे मनोयोग से साथ दे रहे है और इंतजार कर रहे है पाँच बजे का । निसंदेह मैं भी कर रही हूँ.....मैंने जब विडियों में इटलीवासीयों का यह जज्बा देखा तो उस वक्त भी विभोरता में मेरी आँखे नम पड़ गयी थी। आज शाम जब हम उन विभोर क्षणों को साथ मिलकर जीयेंगे तो वो अलग ही आनंददायक अनुभूति होगी। एक सकारात्मकता पूरे ब्रह्मांड में छा जायेगी । इस सकारात्मकता को हमे कम से कम दो हफ्तों तक बनाये रखना है । हमे उत्सव नहीं मनाना है....ना ही हमे जंग जीतने वाली फीलिंग की जरुरत ह

सुबह सुबह

बड़ी खूबसूरत सुबह !  सुबह के 8:50 हो चुके है, सुरज धीमे धीमे से चढ़ा जा रहा है। मेरे ड्रॉईंग रुम में शांति से धूप पसरी पड़ी है। खिड़कियां आज बेखौफ खुली है सभी कमरों की, क्योकि  होर्न और आवाजाही का शोरगुल नहीं है । हाँ....पक्षीयों का कलरव लागातार बना हुआ है । पंखें की आवाज भी साफ सुन रही हूँ। पड़ौस की बिल्डिंग में शायद कोई पूजा कर रहा है, उस पूजाघर से आती घंटी की आवाज सुन पा रही हूँ । कूकर की सीटी तो खैर रोज ही लगभग हर घर से सुनने मिलती है पर आज ये थोड़े विलम्ब से बज रही है। अब मैं कह दूँ कि दाल के तड़के की खुशबू मेरी खिड़की से आ रही है तो अतिश्योक्ति होगी, क्योकि ये मुम्बई है जनाब। ये अलसुबह अपने काम की ओर भागती है पर अब जबकि काम घर पर रहकर किये जा रहे है ,तो अब ये मुम्बई,कम से कस आधी मुम्बई नींद में है। ये दिन रात भागता शहर है...इसका थमना , ठिठकना बहुत बड़ी बात है । शहर के व्यस्ततम इलाके में रहने की वजह से ये शांति कुछ अनोखा सा महसूस करा रही है । न जाने कितनी ही आवाजें रोज के शोरगुल में दब जाती थी, आज साफ सुनायी दे रही है । सड़क पर सन्नाटा है। सड़के भी आज सुकून से सोयी है , उन पर कोई पदचाप भी नह

जनता कर्फ्यू

जनता कर्फ़्यू जनता का,जनता के लिये एक संकल्प संक्रमण के खिलाफ परीक्षा खूद के संयम की  सब साथ आये, सहयोग दे आभार की करतल ध्वनी से  गुंजायमान आकाश करे थाली बजाये शाम पाँच बजे पूरी सामुहिकता से सिर्फ एक दिन नहीं दो हफ्तों तक ध्यान रखे बेवजह बाहर न निकले अंदर रहकर खंगाले खूद को भीतर से 

न जाने क्या क्या देखा

फूल को खिलते देखा परिंदों को उड़ते देखा कुछ ख़्वाबों को मुस्कुराते देखा देखा जमीं को आसमां से मिलते हुए देखा कुछ बच्चों को खिलखिलाते हुए झूर्रियों से झांकते बचपन को देखा धीमे सधे कदमों को देखा दौड़ती भागती जिंदगी में....मैंने ठहरे से कुछ नौजवानों को देखा चाँद को चमकते देखा सूरज को जलते देखा आकाश को कभी नीला कभी लाल तो कभी काला होते देखा चिनार के पत्ते को लाल होते देखा देवदार की ऊँचाइयों को छूकर देखा विशाल पहाड़ों को मैंने बाहें फैलाये देखा पतझड़ को जाते देखा बसंत को आते देखा बूढ़े पेड़ों पर मैंने फिर से यौवन दमकते देखा मैंने देखा लम्हों को छूटते देखा समय को रेत की तरह फिसलते झरनों को गिरते देखा नदी को बहते देखा समंदर को मोंक की तरह देखा कभी उग्र तो कभी शांत देखा मैंने एक गरम फुलका देखा थाली में परोसी धनिये की चटनी को देखा अपने गिलास में मीठे पानी को देखा दाल के पास सजे आम के अचार को देखा महकती खुशबू के साथ भोजन को पकते देखा आँखों में शरबती मिठास को देखा देखा मैंने उन्ही आँखों में नमक को भी बहते हुए हँसने पर फूल कैसे झरते है,मैंने ये भी देखा शोक देखा, श्मशान देखा मृत्यु बाद का मंजर भी देखा अक

वो लड़की

एक चंचल सी लड़की जिसका सेंस ऑफ ह्यूमर गजब है जिसकी स्याही से निकले शब्द न जाने कितनों के आँसू है जो मिट्टी की महक अपनी कविताओं में भर देती है जो छूट गयी बातों के बीज सबके मनों में बो देती है एक लड़की जो सिर्फ लिखती नहीं है एक जीवन सामने रख देती है सरल सहज शब्दों में कठिनता को परोस देती है एक लड़की जो अनुभव गहन रखती है डिग्रियों से परे वो  खूद में एक महाविद्यालय रखती है वो लड़की मेरी दोस्त है वो मुझसे दुराव नहीं रखती वो अपने आप को झरती है मेरे आगे वो लड़की जो मुझसे छोटी है मुझसे कहती है  जब माँ याद आये मुझे माँ बुला लेना वो लड़की मुझे मैसेज करती है दो मिनिट बात करनी है और बिना मेरे जवाब का इंतजार किये फोन कर लेती है अगर मैं व्यस्त हूँ  तो वाकई दो मिनिट का तीसरा नहीं होता और जब वक्त हो तो  दो मिनिट कब साठ मिनिट हो गया पता भी न चलता वो लड़की  जो अधिकार देती है अधिकार लेती है रोज बात नहीं करती पर अपने दिल के एक कोने में मुझे बसा कर रखती है जन्मदिन मुबारक यारा

कोरोना वायरस

कोरोना..... एक सूक्ष्म वायरस इतना सूक्ष्म कि देखा भी न जा सके लेकिन इस सूक्ष्मता का खौफ बड़ा आज से पहले जिसे देखा नहीं, सुना नहीं, जाना नहीं उसका भय बड़ा भयभीत है पूरी दुनिया कोरोना से कांप रहा कोना कोना चुपके से आकर ये जीवन को आयाम दे रहा मन की चंचलता को  विराम दे रहा एकाकीपन को एकांत बना रहा आइसोलेशन के बहाने  ठहराव ला रहा खूद को खूद तक सीमित रखे कोरोना ये बता रहा हाथ जोड़ अभिवादन करे बेवजह क्यू किसी को स्पर्श करे सांसों पर ध्यान दे बाधित है कुछ सांसें  तो एकांत में बैठ कुछ मनन करे गहरे निश्वास के साथ हर व्याधि दूर करे अकेलापन आनंद है कोरोनो यही समझा रहा बस, इसे जीना सीखे कोरोना की माने तो मनोरंजन बहुत हुआ दौड़ती भागती इस दुनिया में... तेरा भागना बहुत हुआ तनिक विश्राम ले, ठहर रे बंदे स्थिर मन से, थोड़ा सुस्ता अपने ही घर में कभी ऑफिस, कभी होटल,  कभी पार्टी , कभी मीटिंग  इस कभी कभी में कभी मिला तू खूद से ?  कहता कोरोना....देख रे इंसान देख अपने ही घर की दीवारे बाहें फैलाये ये तुझे बुलाये याद रख एक ईकाई है तू एकाकी है तू अकेला है तू तू ही तेरा साथ निभाये बस ये मंत्र तू जान ले मैं चला जाऊँगा इ

अर्द्धशतक

50 पूरे हो गये तुम्हारे जीवन का एक सुनहरा हिस्सा अर्द्ध शतक के रुप में तुम्हारे साथ है तुम्हारे साथ है तुम्हारी कामयाबियां जो भले ही बहुत ऊँची न हो बेहद शानदार न हो लेकिन मुझे सातवें आसमां पर  बैठाने के लिये वो पर्याप्त है  वो पर्याप्त है  तुम्हारे आगे के जीवन के लिये ताकि जब भी पीछे मुड़कर देखो तो गर्व कर सको खुद पर तुम्हारे साथ के मेरे झगड़े तुम्हारा क्षणभंगुर गुस्सा  बहुत तुच्छ है.... उस अपार स्नेह और प्यार के आगे जो मैंने तुमसे पाया है तुम्हारे मन की सह्रदयता, सरलता मुझे हमेशा तुम पर गर्व महसूस कराती है बच्चों जैसी निश्छलता और तो और जन्मदिन मनाने का बच्चों सा उत्साह तुम्हारे बच्चों को भी तुम पर मोहित कर देता है हम सब चाहते है तुम हमेशा ऐसे ही रहना तुम मेरे कल्पवृक्ष हो जिसकी छाया में मैं पल्लवित होती हूँ तुम बरगद हो मेरे और मैं ..... उस बरगद की शाख से झूलती लता सी मेरे हिस्से तुम्हारे सारे किस्से अपनी रोशनी तुम मुझे देते हो दमकती मैं हूँ.... तालियां मुझे मिलती है  तुम दूर से मुस्कुराते हो चुपचाप मुझे निहारते हो मैं नहीं जानती सात जन्मों का बंधन क्या है लेकिन ये जन्म सार्थक है तुम्हार