आज विश्व कविता दिवस है। मुझे याद है मैंने अपनी पहली कविता कक्षा दसवीं में लिखी थी ....सिर्फ लिखने के लिये लिखी थी मतलब मुझे कविता लिखनी है, बस, यही भाव था। वो दिल के जज्बातों से नहीं निकली थी। वो निकली थी कुछ कठिन और क्लिष्ट हिंदी के शब्दों के जमावड़े से । भाषा का सौंदर्य और शुद्धता पर पूरा ध्यान दिया लेकिन मुझे कहने में संकोच नहीं कि मेरी पहली कविता भावहीन कविता थी। कुछ दिनों बाद मैंने दूसरी कविता लिखी जो एक लोकल न्यूज पेपर में छपने के लालच में लिखी और वो छपी भी। उस कविता में थोड़े उर्दू के शब्द थे। फिर मैं लागातार लिखने लगी, आसपास की समस्याओं पर लिखने लगी । शादी के बाद लिखना बहुत कम या ना के बराबर हो गया । जज्बात उठते थे पर कलम चलती नहीं थी ....अंतर्मुखी कलम थी मेरी 😜। 2011 में ब्लॉग बनाया और अनियमित रुप से लिखने लगी। कभी भाषाई सौंदर्य होता था तो कभी भाव पर। कुछ सालों पहले अकस्मात रुप से मम्मी को खो दिया....ब्रेन ट्यूमर ....बहुत रेयर वाला। यह खोना बहुत आघात दे गया। तब से मैं जो भी लिखती हूँ, सिर्फ और सिर्फ भाव होते है शब्दों का जामा पहने। कभी मेरे अपने अंद
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है