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माँ - एक संक्षिप्त जीवन परिचय

"ऐ अँधेरे देख ले मुँह तेरा काला हो गया ,माँ ने आँखे खोल दी घर में उजाला हो गया " मुनव्वर राणा की ये पंक्तियाँ कितनी सच है । लेकिन जिस घर में माँ की मौजूदगी नहीं हो वहाँ तो अंधेरा ही अंधेरा है,इस अंधेरे में माँ की यादें ही एक टिमटिमाती सी लौ है,जिसके सहारे जिन्दगी को जिया जा सकता है। मेरी माँ की याद में........एक संक्षिप्त जीवन परिचय मेरी माँ......एक धार्मिक,कर्मठ,निडर,आत्मविश्वासी और सच्चा सादा व्यक्तित्व ! छः भाई बहनों में मम्मी चौथे नम्बर पर थी। मेरा ननिहाल सदैव से ही एक सुखी सम्पन्न परिवार रहा है।मेरी नानी बेहद धार्मिक और अनुशासनप्रिय महिला थी।नानाजी मेहनती और ईमानदार तो थे ही ,अपने अच्छे कर्मों की वजह से बहुत मान और लोकप्रियता भी पाते थे। आज भी उनकी लोकप्रियता बरक़रार है। मम्मी ने शायद नानी और नानाजी दोनो के गुणों को ही अपने अंदर समाहित किया था......िबल्कुल उनके जैसे....बेहद धार्मिक,अनुशासनप्रिय,ईमानदार,स्वाभिमानी,मितव्ययी,पढ़ने की शौक़ीन,नयी चीज़ें जानने को उत्सुक,सदैव सत्यवादी और बिल्कुल नानाजी की ही तरह साधारण पहनावा। भाई बहनों में मम्मी सबसे लम्बी थी,जबकि मम्मी की

माँ तू याद बहुत आती है

माँ,तू याद बहुत आती है सब कहते है कि भुल जाऊँ तुझे और बढ़ूँ आगे लेकिन तू ही बता,कैसे भुलू ? दिन रात तेरी ही याद सताती है माँ,तू याद बहुत आती है। सब कहते है,बीति ताहि बिसार दे लेकिन कैसे बिसार दूँ उन पलों को जिनमें तू समायी है हर बात तेरी ही बात बताती है माँ,तू याद बहुत आती है। मेरी आँखों से तरल बहता है होंठों से सिसकियाँ छूटती है हर ओर तेरी सूरत नजर आती है माँ,तू याद बहुत आती है। मैं ब्याह के आयी, तुझे छोड़ के आयी तेरे बिन जीना भी सीखा क्योंकि,तेरी बातें,तेरी नसीहतें सीखा रही थी मुझे जीवन की हक़ीक़तें तेरी नज़रें मेरी हर चुक को सुधारती थी लेकिन अब ना तू है ना तेरी नज़रें तेरा युँ मुझे छोड़ के जाना ख़ुदा की बात ये बेमानी है माँ,तू याद बहुत आती है। जब तू थी दुनियाँ बड़ी हसीं थी और मैं उसमें मगन थी अब तू नहीं फिर भी हर तरफ तू ही तू है तेरे बिन ये दुनियाँ भी बेगानी है माँ,तू याद बहुत आती है।

माँ

संदेह के बादलों से भय की हो रही है बारिश चू रही है छत सील रहा है सब कुछ बन रही है चिन्ता की रेखायें मेरे ललाट के आस पास लेकिन मन के एक कोने में दूर कही सुनहरी धूप खिलने को है जो हटा देगी घने बादलों को रोक देगी बरसते पानी को क्योकि एक नया इंद्रधनुष बनने को है फिर भी ना जाने क्यो अनजाना सा लग रहा है क़यास कभी बिखर तो कभी बंध रही है मेरी आस मन ही नहीं अब तो मेरी चौखट भी रहने लगी है उदास क्योकि पल पल कर रहा है छलनी मुझे मेरी माँ को खोने का अहसास

कैंसर

यह तो जानती थी मैं कि जिन्दगी एक उलझी हुयी पहेली है अक्सर,अपने ख़ाली वक़्त में मैं इसे सुलझाया करती थी लेकिन यह क्रूर और निष्ठुर भी है नहीं था मुझे ये अनुमान हर बार यह एक नया रूप लेकर आती है कभी हँसाती है तो कभी रूलाती है लेकिन बहुत फ़र्क़ है महसुस करने में और इसकी कड़वी सच्चाई को स्वीकार करने में सच कह गये कबीरदास जाके पैर फटी ना बिवाई वो क्या जाने पीर पराई अपनी ही बिवाई से आज आँख मेरी भर आयी जिसने जीवन दिया उसी के जीवन पे आँच है आयी मिठास के ताने बाने से बुनी थी मेरी जिन्दगी कि एक भयावह शब्द का फन्दा एेसा उलझा उधड़ गया मेरा ताना बाना दे गया एक ऐसा दर्द जो अब तक था मुझसे अनजाना हौसलों की धूप में उम्मीदों की छाँव लिये चलती जा रही हुँ मैं कभी देवालयों में तो कभी गूगल की गलियों में तलाश रही हुँ अमृत पान ढ़ुंढ़ रही हुँ तुझे ऐ जिन्दगी कभी मन्नत के धागों में कभी माँ अँजनी के लाल में कभी कृष्ण की मुरली में तो कभी अपने ही दृढ़ विश्वास में क्योकि जिस किसी ने भी हिम्मत हारी तु है उन सब पे भारी अपने इरादों पे मुझे संशय नहीं तेरी परीक्षाओं से भी मुझे भय नहीं जिन
हर रोज की तरह,आज भी माॅरनिंग वाॅक के बाद ,डेली न्यूज़ सुनते हुए अपने काम निपटा रही थी।यह मेरा रोज का नियम है,न्यूज़ बिना मेरी इजाज़त के मेरे कानों में जाती रहती है क्योंकि ड्राॅईंगरूम में टीवी पर सिर्फ न्यूज़ ही चलती है। मैं बिना डिस्टर्ब हुए अपने कामों में व्यस्त रहती हुँ। हाँ,कुछ ताज़ातरीन ख़बरें ज़रूर मेरी जानकारी में इज़ाफ़ा कर देती है। लेकिन...............आज की ख़बर ने मेरा दिल दहला दिया। मैं पूरी तरह से भावशुन्य हो गयी और अभी तक हुँ। एक पाकिस्तानी नागरिक हाथ में एक कटा हुआ िसर लेकर घुम रहा था,न्यूज़ के मुताबिक़ वे जश्न मना रहे थे। संदेह है कि िसर हमारे वीर जवान हेमराज सिंह का हो सकता है,पिछले वर्ष बिना िसर के जिनका अंतिम संस्कार किया गया था। इस ख़ौफ़नाक और निर्मम करतुत को देखकर ना चुप रहते बन पा रहा है और ना ही बोलते। मैं स्तब्ध हुँ और व्यथित भी कि परिवार वालों पर क्या बीत रही होगी........? क्या हैवानियत से उपर का कोई शब्द है इस करतुत को परिभाषित करने के लिये.............?

बेल

क़रीबन हफ़्ताभर पहले रसोईघर की खिड़की में रखे अपने पौधों को पानी देते समय मैंने देखा कि एक नन्हा सा अनजाना बीज गमले के एक कोने से अंकुरित हो रहा है।दुसरे दिन मैंने देखा कि वह बड़ी तेज़ी से बढ़ रहा है,कौतूहलवश मैं रोज पानी देती रही और हफ़्ते भर में एक बल खाती इठलाती बेल मेरी नजरों के सामने थी,जो मेरी रसोईघर की खिड़की से लगकर ऊपर की ओर बढ़े जा रही थी। हांलाकि अभी तक मुझे यह समझ नहीं आया कि यह बेल है किस चीज़ की,फिर भी इसकी बल खाती अदाओं ने मुझे अपनी ओर खींच रखा है। हफ़्ताभर से ना जाने कितने सबक़ यह मुझे सिखा रही है,बस उन्हीं बातों को यहाँ बाँटना चाहती हुँ। सबसे पहले जब यह अंकुरित हुआ था तो मुझे आश्चर्य हुआ कि बिना कोई बीज डाले यह कैसे फुटा,शायद पहले का कोई बीज था जो मिट्टी में गहरा दबा था,लेकिन जैसे ही उसे मिट्टी पानी की नमी मिली वो लहरा उठा।बिल्कुल इसी तरह हम सब के अंदर भी ना जाने कितनी अच्छाइयाँ दबी पड़ी है जो अनुकूल वातावरण मिलते ही निकल आती है।अपने बच्चों के व्यक्तित्व को निखारने के लिये हमे उन्हें उचित खाद पानी देना चाहिये ताकि उनकी प्रतिभा निखर सके। जिस तेज़ी से यह बेल बढ़ रही थ

नया साल

जीवन का एक और वर्ष ले रहा है विदा अब कहना है निराशा को अलविदा कुछ यादें छलकी सी कुछ यादें धुमिल सी कुछ खुशियों भरी ओस की बुंदों सी कल से बन जायेगी धरोहर बीते हुए साल की नये सपनों के संग शुरुआत होगी नये साल की कल का सुरज मिटा देगा कोहरा आसां हो जायेगी मुश्किल राह की रात गयी सो बात गयी जगी है ललक अब कुछ पाने की हम बढ़े,सब बढ़े और बड़ी हो सोच सबकी ना कुछ तेरा ना मेरा ये जीवन तो है नियामत ख़ुदा की बस.... खुश रहे सब चाह बढ़ जाये जीने की