आज साल का आखिरी दिन है गये दिसम्बर की तरह बीत रहा ये साल भी कुछ मलाल थे जो अब इन पलों में रहे नहीं कुछ बाते अनकही सी समेट रही है खुद को यही कही देखो.....सुनो हंसी है एक खनकती हुई दूर तक सुनायी देती हुई खुली सी बांहें है सफर करती हुई कोई आवाज नहीं है पीछे से पुकारती हुई बस,कुछ खुशियां है ओस की बूंदों सी ठहरी हुई आओ सहेज ले इन्हे शिकायतों की अब जगह नहीं उदासियों की कोई वजह नहीं रोशन हो आँखें सितारों सी चमके चेहरा चाँद सा होठों पर तराने आये अपनी अपनी धून गाये आओ, कुछ जुगनुओं को दोस्त बनाये नये साल को गले लगाये
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है