इरफान.....
न जाने क्यो , तुम्हारा चेहरा हटाये हट नहीं रहा। ऐसा भी नहीं है कि मैंने तुम्हारी हर एक फिल्म देखी हो या देखने की तमन्ना रही हो लेकिन हाँ जो भी देखी .....देखने के बाद दो दिन तक तुम मेरे जेहन में हमेशा रहा ।
आज जब तुम्हारे जाने का पता लगा तो एक बारगी दिल धक्क से रह गया और लगा जैसे कोई करीबी हाथ छोड़कर चला गया। तुम्हारे यूँ जाने और इतने शिद्दत से रह जाने से इतना तो यकीन हुआ कि दिलों में जगह तुम जैसे लोग बना सकते है। आज मेरे कॉंटेक्ट के लगभग सभी लोगो के स्टेटस में तुम हो। देखो, कितने करीब थे तुम सभी के।
मन रोने जैसा है लेकिन सामान्यतया मैं रो नहीं पाती इसलिये मैंने दर्द निकाला तुम्हारा स्कैच बनाकर। जब मैं तुम्हारी आँखें बना रही थी तो जैसे मेरे हाथ काँप गये। उन उभरी हुई आँखों में न जाने कितने मौन संवाद तैर रहे थे। तुम्हारी आँखे न जाने किस नशे में रहती थी ....हर बार...हर फिल्म, जो मैंने देखी....हर संवाद...और संवाद क्यो, तुम्हारी आँखों को तो कभी संवाद की जरुरत ही न पड़ी। आज तुम्हे उकेरते हुए मैंने तुम्हारी आँखों के दर्द, बेबसी, क्रोध की अदायगी को एक साथ देखा। ये उभरी आँखे बिना शब्दों के हमेशा बोलती रही। आज इन आँखों का यूँ बंद हो जाना बहुत तकलीफ दे रहा है। फर्क पड़ता है यार तुम्हारे ऐसे जाने से।
आज फिर से मैंने तुम्हारा पत्र पढ़ा जो तुमने हॉस्पिटल से किसी पत्रकार को लिखा था। तुम अपनी बीमारी अपने दर्द की बात कर रहे थे। दर्द असहनीय था । दो साल पहले जब मुझे तुम्हारी इस बीमारी का पता लगा तब भी मैंने गूगल किया था और पाया कि यह एक बहुत रेयर बीमारी है इसी के करीब की बीमारी मेरी माँ को थी शायद इसीलिए तुम मेरी प्रार्थनाओं में शामिल हो गये। मैंने बहुत प्रार्थनाएं की थी तुम्हारे लिये। फिर तुम ठीक हो गये, मेरी प्रार्थनाओं से बाहर हो गये । बात आयी गयी हो गयी लेकिन आज यूँ तुम्हारा जाना जैसे एक आघात है । तुमने अपने उस पत्र में एक लाइन लिखी थी कि अनिश्चितता निश्चित है .....कितना सच है यह आज के वक्त में। कल यही बात मैंने अपने बेटे को कही कि हम अभी अनिश्चित काल में है।
इरफान....हम तुम्हे विदा नहीं देना चाहते थे। बहुत समय तक देखना था तुम्हे .....तुम्हारी वो लाल गुलाबी मैटमेले से धागों से उलझी उभरी आँखें, न जाने कितने सपनों के जाल में बुनी थी।
इरफान....तुम्हारा जीवन छोटा रहा पर पता है तुम अमर हो गये....हम सबके मनों में । भले ही तुम्हारे जनाजे में भीड़ नहीं उमड़ी पर न जाने कितनी ही आँखों में तुम्हारे लिये आँसू उमड़े। तुम अलहदा थे, प्योर थे,ऑरिजनल थे।
पर तुम्हे यूँ न जाना था.....तुम फिर आना , हम फिर मिलेंगे तब तक मैं तुम्हारी सारी फिल्मे देख लूंगी ।
पूछते जो हमसे तुम
जाने क्या-क्या हम कहते
मगर जाने दे 😥
टिप्पणियाँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (01-05-2020) को "तरस रहा है मन फूलों की नई गंध पाने को " (चर्चा अंक-3688) पर भी होगी। आप भी
सादर आमंत्रित है ।
"मीना भारद्वाज"