सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

एक चिठ्ठी

कैसी हो जाने जानां,?
अच्छी ही होगी
मैं भी यहाँ ठीक हूँ ।।आजकल तो आप तरस गयी होंगी,नयी नयी साड़ी पहनने को। सही है यार मुझे जलना नहीं पड़ेगा। मुझे बड़ा मजा आ रहा है ये सोचकर कि मैं फोन करूँगी तो यह नहीं सुनना पड़ेगा" चल तेरको आके फोन लगाती मूवी देखनै जा रही ठीक है 'चल बाय"
 कितना बंद बंद है ना सबकुछ।
 पर यहाँ ऐसा कुछ नहीं है। तुम्हारे वहाँ मुम्बई में तो कोरोना के बहुत केस मिल रहे हैं। अपना ध्यान रखना ।

अपने यहाँ तो लोग बाग खूब घूम रहे हैं। ये मुम्बई थोड़े ना है, छोटा सा शहर है , और फिर गेहूँ बाड़ी के दिन हैं उन्हीं का काम चल रहा है तो लोगों को कोरोना डे मनाने का वक्त ही नहीं मिल रहा। माँ के पास गई थी। तुम भी होती तो दोनूं जन लिफाफा ले के खेत में चलते। अरे बहुत शहतूत लगे थे, तुम्हारी तो हाइट की दिक्कत बी नहीं। तुम डाल पकड़ नीचे खींचती, मैं तोड़ लेती। फिर वहीं पेड़ के नीचे बैठकर खाते। इन दिन बाग भी उजड़ गए। तुम क्या जानो बाग उजड़ना बागों को खुला छोड़ देते हैं आखिरी फलों के वक्त , कोई आओ कोई खाओ। हम दोनों साथ होती तो खूब सूखी दाख इकट्ठा कहती।।
 नाली पर पुदीना हरा हो चुका 
।  तुम्हारी पेंट की जेब में हम नमक की डीबिया भी ले चलते, अरे बरगद पर लाल पत्ती उग आयी हैं।  
खेत की याद इसलिए दिला रही हूँ बंद घर में बेचैन हो रही होगी ना। दलिया बनाने के दिन आ गए हैं। लॉकडाउन खुलते ही दलिया भिजवा दूँगी।
 सुन कम लिखा ज्यादा समझना
। बच्चों वगैरा का जिक्र नहीं कर रही अभी हम ही बच्ची हैं। बाल कलर करती रहना और हाँ दो चुटिया बना मुझे फोटो भेजना। काम करते हुए जो थक कर लेटती हो, मुझे बहुत अच्छी लगती हो
। बहुत दिन से तुम्हें थका हुआ नहीं देखा और माथे पे पुच्ची भी नहीं ली। 

और हाँ तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो, कभी रातभर के लिए आओ ना, साथ में छत्त पर बैठकर बहुत सारी बात करेंगे
। तुम्हारे बाल मालिश भी कर दूँगी सच्ची में।
 हम दोनों ऐसे बैठेंगे जैसे कंधे पर सिर रखकर फिल्मों में बैठते हैं और चाँद देखेंगे 

तुम्हारी पिरेमिका  🙈🙈

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उम्मीद

लाख उजड़ा हो चमन एक कली को तुम्हारा इंतजार होगा खो जायेगी जब सब राहे उम्मीद की किरण से सजा एक रास्ता तुम्हे तकेगा तुम्हे पता भी न होगा  अंधेरों के बीच  कब कैसे  एक नया चिराग रोशन होगा सूख जाये चाहे कितना मन का उपवन एक कोना हमेशा बसंत होगा 

मन का पौधा

मन एक छोटे से पौधें की तरह होता है वो उंमुक्तता से झुमता है बशर्ते कि उसे संयमित अनुपात में वो सब मिले जो जरुरी है  उसके विकास के लिये जड़े फैलाने से कही ज्यादा जरुरी है उसका हर पल खिलना, मुस्कुराना मेरे घर में ऐसा ही एक पौधा है जो बिल्कुल मन जैसा है मुट्ठी भर मिट्टी में भी खुद को सशक्त रखता है उसकी जड़े फैली नहीं है नाजुक होते हुए भी मजबूत है उसके आस पास खुशियों के दो चार अंकुरण और भी है ये मन का पौधा है इसके फैलाव  इसकी जड़ों से इसे मत आंको क्योकि मैंने देखा है बरगदों को धराशायी होते हुए  जड़ों से उखड़ते हुए 

सीख जीवन की

ये एक बड़ा सा पौधा था जो Airbnb के हमारे घर के कई और पौधों में से एक था। हालांकि हमे इन पौधों की देखभाल के लिये कोई हिदायत नहीं दी गयी थी लेकिन हम सबको पता था कि उन्हे देखभाल की जरुरत है । इसी के चलते मैंने सभी पौधों में थोड़ा थोड़ा पानी डाला क्योकि इनडोर प्लांटस् को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती और एक बार डाला पानी पंद्रह दिन तक चल जाता है। मैं पौधों को पानी देकर बेफिक्र हो गयी। दूसरी तरफ यही बात घर के अन्य दो सदस्यों ने भी सोची और देखभाल के चलते सभी पौधों में अलग अलग समय पर पानी दे दिया। इनडोर प्लांटस् को तीन बार पानी मिल गया जो उनकी जरुरत से कही अधिक था लेकिन यह बात हमे तुरंत पता न लगी, हम तीन लोग तो खुश थे पौधों को पानी देकर।      दो तीन दिन बाद हमने नोटिस किया कि बड़े वाले पौधे के सभी पत्ते नीचे की ओर लटक गये, हम सभी उदास हो गये और तब पता लगा कि हम तीन लोगों ने बिना एक दूसरे को बताये पौधों में पानी दे दिया।       हमे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे, बस सख्त हिदायत दी कि अब पानी बिल्कुल नहीं देना है।      खिलखिलाते...