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माँ

मैंने तुम्हारा दाह संस्कार नहीं देखा
अंतिम यात्रा भी नहीं देखी
लेकिन मैंने देखा था तुम्हे
अंतिम बार
चिर निद्रा में लीन थी तुम
शांत थी, निश्छल थी
नये कपड़ों से तुम्हारा मोह कभी नहीं रहा
पर उस दिन तुम्हे
नयी चटख लाल चुनरी में सहेजा गया 
सिंदूर ,बिंदी भी कहाँ भाते थे तुम्हे
पर उस दिन 
सिंदूर दमक रहा था मांग में
एक सुरज सुशोभित था तुम्हारे ललाट पर
और तुम मुस्कुरा भी तो रही थी
न जाने क्यो ?
माँ कभी हँसती है ....
अपने बच्चों को रोता देखकर ?
पर तुम तटस्थ बनी रही
एक चुड़ी पहनने वाली तुम
उस दिन कलाई भरकर चुड़िया
तुम्हे पहनायी गयी
जीवन भर तुम्हे जिन सब का मोह नहीं था
तुम्हे विदा किया गया 
उन्ही सब के साथ
सब घटित हो रहा था 
शायद तिथि पुण्यतिथि में तब्दील हो रही थी 
तुम चली गयी
मेरा एक हिस्सा साथ ले गयी
अपने मन के भिक्षु का
एक हिस्सा मुझे दे गयी
बस.....पिछले छ: सालों से
हम यूँ ही साथ है 


टिप्पणियाँ

Rohitas Ghorela ने कहा…
मार्मिक।
माँ की कमी तब महसूस होती है जब वो ना हो। क्योंकि जब वो होती है तो वो ये कमी महसूस होने नहीं देती।
नई रचना - एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए 

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उम्मीद

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आज इंटरनेशनल साड़ी डे है । एक वक्त था जब मैं हर रोज साड़ी पहनती थी, साड़ी पहनना आदतन था। अब भले ये आदत थोड़ी पीछे छूट गयी है पर साड़ी से मोह हर रोज बढ़ता जा रहा। साड़ी की मेरी समझ अब पहले से कही अधिक है।             जैसा कि सब कहते है कि साड़ी महज एक कपड़ा नहीं है वो इमोशन है , मैं इस बात से पूरा सरोकार रखती हूँ । साड़ी सच में आपके भाव है, आपकी अभिव्यक्ति है , आपके व्यक्तित्व का आइना है।    हम सबकी अपनी अपनी पसंद होती है और कुछ चुनिंदा रंगों की साड़िया स्वत: ही हमारी आलमारी में जगह बना लेती है।कुछ साड़ियों दिल के बेहद करीब होती है , कुछ में कहानियां बुनी होती है, कुछ के किस्से गहरे होते है, कुछ हथियायी हुई रहती है, कुछ उपहारों की पन्नी में लिपटी होती है, कुछ कई महीनों की प्लानिंग के बाद आलमारी में उपस्थित होती है तो कुछ दो मिनिट में दिल जीत लेती है ....मेरी हर साड़ी कुछ इन्ही बातों को बयां करती है लेकिन एक काॅमन बात है हर साड़ी में, कोई भी साड़ी कटू याद नहीं देती और यही बात साड़ी को खास बनाती है। आप अपनी आलमारी खोलकर देखिये , साड़ियां मीठी बातों से ही बुनी होती है।     साड़ियां माँ