पता है
छूटे लोग
छूटा वक्त
छूटी चीजें
कभी छूटती ही नहीं है
हम बस भ्रम में रहते है
हर छूटाव पोषित होता रहता है
कभी दिल के किसी कोने में
तो कभी
दिमाग की किसी नस में
और वो सहेजे रहते है
आखरी साँस तक
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है
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