सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

काबिले तारीफ- ओडिशा

किचन में काम करते हुए हमेशा बुद्धूबक्से की आवाजे मेरे कान में जाती रहती है। इन दिनों हालांकि मैं ज्यादा ध्यान देती नहीं क्योकि खबरों को अक्सर बढ़ा चढ़ा कर बताया जाता है और विकृत राजनीति परोसी जाती है,लेकिन कल एक छोटी सी डॉक्यूमेंट्री मुझे सुखद कर गयी।
       सच्चाई जानने के लिये मैंने गुगल भी किया और पाया कि बात में दम था। खैर .....खबर थी सुदूर प्रांत ओडिशा की । ओडिशा में कोरोना को लेकर जो कदम उठाये गये या उठाये जा रहे है , वो वाकई काबिलेतारीफ है। 
1. ओडिशा पहला ऐसा राज्य है देश का जिसने देशव्यापी लॉकडाउन के दो दिन पहले से लॉकडाउन लगा दिया ।
2. ओडिशा पहला ऐसा राज्य है जहाँ दो सप्ताह में 500 बैड के दो अस्पतालों का निर्माण कोविड 19 वायरस के इफेक्टेड लोगों के लिये बनाया गया जबकि वहाँ उस वक्त इस वायरस ने पाँव भी न पसारे थे। एक महीने के कम अंतराल में ओडिशा सरकार ने अलग अलग जिलों में 29 कोविड अस्पताल बना लिये है और निश्चित ही यह एक बड़ी कामयाबी है उनकी।

3. ओडिशा पहला ऐसा राज्य है जिसने लॉकडाउन 2 की घोषणा के पहले ही अपना लॉकडाउन पूरे अप्रेल माह तक बढ़ा दिया था ।
4. ओडिशा सरकार ने डॉक्टर्स् और इस महामारी के खिलाफ समर्पित सेवाकर्मियों की 50 लाख तक की इंश्योरेंस करवायी और अगर कोविड के खिलाफ लड़ते वक्त उनकी मृत्यु हो जाती है तो उन्हे शहीद का सम्मान दिया जायेगा,उनके परिवार की आर्थिक सहायता के लिये 50 लाख रुपये भी दिये जायेंगे, हालांकि इस सम्मान को पाने के लिये कोई अपनी जान की बाजी नहीं लगायेगा लेकिन इन सेवाकर्मियों के मनोबल को बढ़ाने के लिये ये कदम वाकई सराहनीय है
5. हालांकि ओडिशा में पहला केस 15 मार्च को आया था पर उसके पहले ही उन्होने काफी सतर्क प्रयास शुरू कर दिये थे।
6. एक और काम जो यहाँ की सरकार कर रही है वो यह कि नीचले से नीचले तबके तक हर माध्यम से सही जानकारी पहूँचायी जा रही है ताकि लोग अफवाहों से डरने की बजाय जागरूक और सतर्क रहे। टीवी मीडिया ना देखने की सलाह भी एक संदेश है उनका।
7. एक सुखद बात भी....बच्चों का ध्यान रखा गया है। उनके लिये एक ऑनलाइन प्रतियोगिता 'मेरी प्रतिभा' के नाम से चलायी गयी है ताकि बच्चे बोरियत से बचे और रचनात्मक रहे।  इस प्रतियोगिता में आयी ऐंट्रीज् को वे कोविड अवेयरनैस के प्रचार में काम में ले रहे है। 
8. बाहर से आये लोगो को कोरेंटाईन में रहने के बाद 15000 रुपये दिये जा रहे है ताकि वो सहयोग करे सरकार को ।
     
      अब ये सब देखकर सोचने वाली बात है कि हम दक्षिण कोरिया के प्रबंधों की तारीफ कर देते है लेकिन ओडिशा को क्यो नहीं याद कर पाते ?
        सोचने वाली बात है कि क्यो मीडिया पर सिर्फ दो चार राज्यों की खबरें और उनके मुख्यमंत्री ही छाये रहते है ? क्यो ओडिशा जैसे कुछ राज्य हमेशा हाशिये पर रहते है ?


       ओडिशा के इन प्रयासो से हम बहुत कुछ सीख सकते है। थोड़ा विचार करके देखिये कि क्यो ओडिशा इतना सतर्क रहा शूरु से ? इसके पीछे उनकी सामान्य जिंदगी की कहानी है। जैसा कि हम सब जानते है ओडिशा में हर साल चक्रवाती तुफानों वाली प्राकृतिक आपदाएं आती रहती है....वो टूटते है, जूझते है और उठ खड़े होते है। उनके आपदा प्रबंधन इसीलिए बढ़िया है क्योकि आदतन वो इससे जुझते रहते है ।
         प्राकृतिक आपदा का एक बढ़िया उदाहरण जापान है । जापान के अति तीव्र भुकम्प इस देश में बहुत नुकसान करते है, लेकिन वे टूटते नहीं है, जूझते है , बचाव सीखते है और उठ खड़े होते है। जापान में एक एक बच्चे को स्वरक्षा के निर्देश पता होते है। उन्हे सक्षम बनाया जाता है इन आपदाओं से निपटने के लिये।
       बस, यही अब हमे करना है। किसी वर्ग विशेष पर दोषारोपण करना छोड़िये और बचाव कार्यों पर ध्यान केंद्रित करे। किस देश ने गलती की, किस वर्ग विशेष ने गलती की....अब ये न गिने....अब देखे कि हम अपनी तरफ से बेहतर क्या कर सकते है। फिलहाल तो हमे घरों में रहना है, हमारी जिंदगियों का पैटर्न बदल रहा है । लॉकडाउन के बाद हम कैसे रहेंगे ये बात अभी विचाराधीन है । कमिया मत निकालिये....एक ईकाई के स्तर पर रहकर सोचे। आत्मनिर्भरता बढ़ाये। ये जिंदगी की जंग है....कंम्फर्ट जोन में रहकर तो कभी न जीत पायेंगे। पूरी लाइफ स्टाईल बदलने वाली है आपकी, इस बदलाव को सहजता से लेकर आगे बढ़े....मन के साथ की अपेक्षा भले ही रखे पर बढ़े हाथ की नहीं । अपने कार्यों और क्रियाओं की जवाबदारी लेना सीखे। 
कोरोना एक प्राकृतिक आपदा की तरह है। हम इस वायरस की जिंदगी का पैटर्न नहीं जानते, पर हम हमारा पैटर्न जानते है। हम उस वायरस को नहीं बदल सकते पर हम खूद को बदल सकते है । ये बदलाव अब जरुरी है । 

टिप्पणियाँ

अपने सजग प्रयासों के कारण उडीसा न सिर्फ बचा हुआ है बल्कि एक उधाहरण भी पेश कर रहा है ...
आत्ममुग्धा ने कहा…
जी, आपदाएं हमे सीखाने ही आती है

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उम्मीद

लाख उजड़ा हो चमन एक कली को तुम्हारा इंतजार होगा खो जायेगी जब सब राहे उम्मीद की किरण से सजा एक रास्ता तुम्हे तकेगा तुम्हे पता भी न होगा  अंधेरों के बीच  कब कैसे  एक नया चिराग रोशन होगा सूख जाये चाहे कितना मन का उपवन एक कोना हमेशा बसंत होगा 

मन का पौधा

मन एक छोटे से पौधें की तरह होता है वो उंमुक्तता से झुमता है बशर्ते कि उसे संयमित अनुपात में वो सब मिले जो जरुरी है  उसके विकास के लिये जड़े फैलाने से कही ज्यादा जरुरी है उसका हर पल खिलना, मुस्कुराना मेरे घर में ऐसा ही एक पौधा है जो बिल्कुल मन जैसा है मुट्ठी भर मिट्टी में भी खुद को सशक्त रखता है उसकी जड़े फैली नहीं है नाजुक होते हुए भी मजबूत है उसके आस पास खुशियों के दो चार अंकुरण और भी है ये मन का पौधा है इसके फैलाव  इसकी जड़ों से इसे मत आंको क्योकि मैंने देखा है बरगदों को धराशायी होते हुए  जड़ों से उखड़ते हुए 

साड़ी

आज इंटरनेशनल साड़ी डे है । एक वक्त था जब मैं हर रोज साड़ी पहनती थी, साड़ी पहनना आदतन था। अब भले ये आदत थोड़ी पीछे छूट गयी है पर साड़ी से मोह हर रोज बढ़ता जा रहा। साड़ी की मेरी समझ अब पहले से कही अधिक है।             जैसा कि सब कहते है कि साड़ी महज एक कपड़ा नहीं है वो इमोशन है , मैं इस बात से पूरा सरोकार रखती हूँ । साड़ी सच में आपके भाव है, आपकी अभिव्यक्ति है , आपके व्यक्तित्व का आइना है।    हम सबकी अपनी अपनी पसंद होती है और कुछ चुनिंदा रंगों की साड़िया स्वत: ही हमारी आलमारी में जगह बना लेती है।कुछ साड़ियों दिल के बेहद करीब होती है , कुछ में कहानियां बुनी होती है, कुछ के किस्से गहरे होते है, कुछ हथियायी हुई रहती है, कुछ उपहारों की पन्नी में लिपटी होती है, कुछ कई महीनों की प्लानिंग के बाद आलमारी में उपस्थित होती है तो कुछ दो मिनिट में दिल जीत लेती है ....मेरी हर साड़ी कुछ इन्ही बातों को बयां करती है लेकिन एक काॅमन बात है हर साड़ी में, कोई भी साड़ी कटू याद नहीं देती और यही बात साड़ी को खास बनाती है। आप अपनी आलमारी खोलकर देखिये , साड़ियां मीठी बातों से ही बुनी होती है।     साड़ियां माँ