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साँसें

ध्यान से सुनो
एकदम ध्यान से
चित्त स्थिर करके सुनो
कुछ साँसों की आवाजें है
भीतर जाती हुई
बाहर आती हुई
पिछले कई दिनों से 
मेरे साथ है ये आवाज
लेकिन ये मेरी साँसें तो नहीं है
ये तो लम्बी सी
जीवन भरती साँसें है
ये सुकून वाली साँसें है
ये खुशी वाली साँसें है
जब कही किसी पेड़ पर
कोई पत्ता हिलता है तो
ये साँस अंदर जाती है
जब कही कोई चिड़िया 
चहचहाती है तो
ये साँस बाहर आती है
इस साँस की आवाजाही से
आसमान नीला हो जाता है
पेड़ और लंबे हो जाते है
पत्ता पत्ता सुर्ख हो जाता है
मोर खुश होकर नाचने लगता है
मछलियां उचक कर 
पानी से बाहर झांक जाती है
ये कमाल है इन साँसों का
सुनो तुम.....
हमारी पृथ्वी साँस ले रही है 

टिप्पणियाँ

Digvijay Agrawal ने कहा…
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 09 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
Rekha suthar ने कहा…
वाह कमाल लिखती हो दोस्त ❣️

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