जीवन की राह में चलते हुए
अचानक दिख जाता है एक आईना
एक वजूद के रुप में
असमंजस होता है
हुबहू कोई हम जैसा भी होता है
अजनबी होता है,लेकिन
दिल की गहराइयों में
स्थापित हो जाता है अनायास ही
जूड़ जाता है एक ऐसा रिश्ता
जिसका कोई नाम नहीं
बेनाम सा ये रिश्ता
आत्मा को एक छोर से बाँध देता है
लेकिन फिर भी
छूट जाता है एक दिन वो वजूद
और , उस दिन से हम भूल जाते है
आईना देखना....बस,
ताउम्र उस छोर की गिरफ्त में
खूद को निहारते रहते है ।
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है
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और , उस दिन से हम भूल जाते है
आईना देखना....बस,
ताउम्र उस छोर की गिरफ्त में
खूद को निहारते रहते है ।
आत्म मुग्ध करती काव्य धारा।