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आज का दिन

आज मन बड़ा खुश है....इतना खुश कि शब्दों से बयां ही नहीं कर सकती । रगों में जैसे भारतीयता दौड़ रही है। आँखों में एक गुरूर सा छाया है। चेहरे पर जैसे  एक ओज है । आज की तो जैसे हवा भी गुनगुना रही है । आज की सुबह का सूरज भी कुछ ज्यादा सुनहरा था । आज का चाँद भी कुछ अधिक शीतल है । जाती हुई ठंड भी थोड़ी ज्यादा गुलाबी हुई जा रही है। फरवरी इस बार कुछ ज्यादा इतरा रही है । मेरे किचन में चुल्हे पर चढ़ी कड़ाही में पकौड़े भी खुशी से तैर रहे है । बाहर सड़क से दूर कही भारत माँ की जय मेरे कानों में मिठास घोल रही है। टीवी चैनल्स पर न्यूज का सुनना पिछले पाँच सालों में पहली बार मेरे मन को सुखद लग रहा है । आज की शाम बिल्कुल भी उदास नहीं थी। व्हाट्सएप के मैसेज आज पकाऊ नहीं लग रहे है । फोन पर भी यही गर्वित क्षण बाँटे जा रहे है। न जाने कैसा जादू है आज की हवा में। आज कोई किसी से नाराज नहीं । आज सबका सुख साझा है । आज सबकी आवाज में खनक थोड़ी अधिक है । सबकी हँसी में खिलखिलाहट थोड़ी ज्यादा है । आज सबके कदमों में एक तालमेल सा है, कोई किसी दौड़ में शामिल नहीं, आज सब साथ साथ है । हाथों में सबका हाथ भले ही  न हो पर आज पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण सब जूड़े है । आज कोई महिला नहीं कोई पुरूष नहीं, आज सब भारतीय है । आज भारत के नक्शे की शान कुछ ज्यादा है । हमारे तिरंगें के तीनों रंग सूर्ख़ कुछ ज्यादा है । जो तिरंगा लिपट कर सिसका था 12 दिन पहले शहीदों के शरीर पर वो आज फख्र में कुछ अधिक है । आज की रात अनमनी सी नहीं होगी बल्कि एक चैन की नींद लेकर आयेगी। आज हम सबके मन में बसंत छाया है ।
       पुलवामा अटैक में शहीद हुए हमारे जवानों की आत्मा  और उनके परिवार भी शायद आज सुकून में होंगे । आज गर्दन ऊँची थोड़ी ज्यादा है । हर मुसकान आज गर्वित है और हर बोल ये कह रहे.....जय हिंद और जय हिंद की सेना ।

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सीधे दिल से की गयी भावुक मन की अभिव्यक्ति!

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उम्मीद

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मन का पौधा

मन एक छोटे से पौधें की तरह होता है वो उंमुक्तता से झुमता है बशर्ते कि उसे संयमित अनुपात में वो सब मिले जो जरुरी है  उसके विकास के लिये जड़े फैलाने से कही ज्यादा जरुरी है उसका हर पल खिलना, मुस्कुराना मेरे घर में ऐसा ही एक पौधा है जो बिल्कुल मन जैसा है मुट्ठी भर मिट्टी में भी खुद को सशक्त रखता है उसकी जड़े फैली नहीं है नाजुक होते हुए भी मजबूत है उसके आस पास खुशियों के दो चार अंकुरण और भी है ये मन का पौधा है इसके फैलाव  इसकी जड़ों से इसे मत आंको क्योकि मैंने देखा है बरगदों को धराशायी होते हुए  जड़ों से उखड़ते हुए 

कुछ दुख बेहद निजी होते है

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