न जाने क्यो आज रह रहकर मुझे याद आ रहा है कठुआ कांड, जिसमे एक मुस्लिम बच्ची आसिफा के साथ बलात्कार का मामला दर्ज हुआ था । मैंने भी बच्ची का स्कैच बनाकर अपना रोष जाहिर किया था।
इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि सवाल उठने लगे थे । यह पहली बार था कि जब विक्टिम का असली नाम और उसकी तस्वीर सोशियल मीडिया पर आसानी से उपलब्ध थी। हमे भुलना नहीं चाहिये कि निर्भया केस की हवा देश के कोने कोने में फैली थी , लेकिन फिर भी विक्टिम का असली नाम और तस्वीर आसानी से उपलब्ध न थी और न है ।
इस घटना के थोड़े दिन बाद ही एक और बच्ची के साथ रेप हुआ लेकिन किसी को भनक भी न लगी । लोग कहते रहे कि बच्ची हिंदू थी, इसलिए मामला दबा दिया गया । हालांकि हम अब भी कहते है कि जातिगत भेदभाव से देश को दूर रखना चाहिये ,लेकिन आसिफा का मामला ....ऐसा लगा था कि पुरा खिंचा गया खाका था...हिंदू मुस्लिम भावनाओं को भड़काने का। इसे इतनी बखूबी डिजाइन किया गया था कि नामी गिरामी लोग इसमे कूद पड़े। पुरा बॉलीवुड बिना मेकअप के एक तख्ती लेकर फोटो शूट करा रहा था । अचानक सब लोग आसिफा को न्याय दिलाने पर आमादा हो गये । इसमे कुछ गलत भी नहीं.... इन लोगो की पहल को दुनिया देखती है....लेकिन घोर आश्चर्य ये कि अब ये लोग कहाँ है ?
क्या हमारे शहीदों के लिये इनकी भावनाएँ मर गयी है ?
कहाँ गई अब तख्तियां ?
क्यो नहीं करा रहे फोटो शूट ?
क्यो नहीं तथाकथित बोल्ड अभिनेत्रियां बिना मेकअप शहीदों की याद में अब एक तख्ती गले में लटका पा रही है ?
साफ दिख रहा है कि यहाँ डिजाइनर कैम्पैनिंग चलाई जाती है । लोगो की भावनाओं के यहां कोई मायने नहीं है । भावों का खेल खेला जाता है, कभी मोमबत्ती जलाकर, कभी बड़े स्तर पर फोटो शूट कराकर, कभी तख्तियां गले में लटकाकर । इन सबके बीच बेवकूफ बनती है आम जनता....जो बेपैंदे लोटे की तरह कभी इधर तो कभी उधर घुमती रहती है ।
ना सही का पता न गलत का ।
हर रोज सुबह की सैर मुझे पूरे दिन के लिये शारीरिक मानसिक रूप से तरोताजा करती है। सैर के बाद हम एक भैयाजी के पास गाजर, बीट, हल्दी, आंवला ,अदरक और पोदीने का जूस पीते है, जिसकी मिक्सिंग हमारे अनुसार होती है। हम उनके सबसे पहले वाले ग्राहक होते है , कभी कभी हम इतना जल्दी पहूंच जाते है कि उन्होने सिर्फ अपना सब सामान सैट किया होता है लेकिन जूस तैयार करने में उन्हे पंद्रह मिनिट लग जाते है, जल्दबाजी में नही होती हूँ तो मैं जूस पीकर ही आती हूँ, वैसे आना भी चाहू तो वो आने नहीं देते , दो मिनिट में हो जायेगा कहकर, बहला फुसला कर पिलाकर ही भेजते है। उनकी अफरा तफरी और खुशी दोनो देखने लायक होती है। आज सुबह भी कुछ ऐसा ही था, हम जल्दी पहूंच गये और उन्होने जस्ट सब सैट ही किया था , मैं भी जल्दबाजी में थी क्योकि घर आकर शगुन का नाश्ता टीफिन दोनों बनाना था। हमने कहां कि आज तो लेट हो जायेगा आपको, हम कल आते है लेकिन भैयाजी कहाँ मानने वाले थे । उन्होने कहा कि नयी मशीन लाये है , आपको आज तो पीकर ही जाना होगा, अभी बनाकर देते है। मुझे सच में देर हो रही थी लेकिन फिर भी उनके आग्रह को मना न कर स...
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