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उत्थान

जब हम किसी भी तरह की परेशानी में होते है तो उस वक्त हमे और अधिक कलात्मक या रचनात्मक हो जाना चाहिये। रचनात्मकता से मेरा तात्पर्य किसी विशेष उपलब्धि से नही है । कोई भी साधारण सा काम, जिसे आपने मन से किया , बस,वो रचनात्मक है और कलात्मक भी।  ये सभी साधारण काम आपको असाधारण रुप से मजबूत करेंगे ।कभी कभी  जब इन साधारण से कामों पर आपकी पीठ थपथपाई जायेगी तो वो अपने आप में अद्भुत होगा , आपका मनोबल इतना अधिक बढ़ जायेगा कि तकलीफे हाथ छुड़ाकर भाग जायेगी। 
            हर तरह का वो काम करे जो आपको तृप्ति दे और उससे मिलने वाली प्रशंसाओं को सहेजे । वे कतई आपके घमंड की विषयवस्तु नहीं है , बल्कि ये प्रशंसापत्र तो दस्तावेज़ है आपके अपने उत्थान के। आपके हर आगे बढ़ते कदम का मार्ग प्रशस्त करते है ये शब्द। बस, शब्दों के मर्म को पहचानने की समझ रखे । औपचारिकता और आत्मिकता के भेद को खंगालते हुए बना डालिये पुलिंदा इन भावों का, शब्दों का। 
               आंनद महसूस करते हुए जीते रहे जिंदगी। कोई न भी बने तो खुद अपना मनोबल बने और टूटने न दे खुद को। भले ही समय विकट है पर यह आपको एक दिशा दे रहा है ....आयाम दे रहा है । इस जगत में व्यर्थ कुछ भी नहीं है । ये साल शताब्दियों की सीख समाहित करके लाया है । हम क्या खोयेंगे , क्या पायेंगे....इसका लेखा जोखा मत कीजिये। बस...रंगमंच पर चल रहे इस नाटक को मूक बनकर देखिये। मंच के कलाकार भी आप है और दर्शक दीर्घा में बैठे दर्शक भी आप ही है।  

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उम्मीद

लाख उजड़ा हो चमन एक कली को तुम्हारा इंतजार होगा खो जायेगी जब सब राहे उम्मीद की किरण से सजा एक रास्ता तुम्हे तकेगा तुम्हे पता भी न होगा  अंधेरों के बीच  कब कैसे  एक नया चिराग रोशन होगा सूख जाये चाहे कितना मन का उपवन एक कोना हमेशा बसंत होगा 

पलाश

एक पेड़  जब रुबरू होता है पतझड़ से  तो झर देता है अपनी सारी पत्तियों को अपने यौवन को अपनी ऊर्जा को  लेकिन उम्मीद की एक किरण भीतर रखता है  और इसी उम्मीद पर एक नया यौवन नये श्रृंगार.... बल्कि अद्भुत श्रृंगार के साथ पदार्पण करता है ऊर्जा की एक धधकती लौ फूटती है  और तब आगमन होता है शोख चटख रंग के फूल पलाश का  पेड़ अब भी पत्तियों को झर रहा है जितनी पत्तीयां झरती जाती है उतने ही फूल खिलते जाते है  एक दिन ये पेड़  लाल फूलों से लदाफदा होता है  तब हम सब जानते है कि  ये फाग के दिन है बसंत के दिन है  ये फूल उत्सव के प्रतीक है ये सिखाता है उदासी के दिन सदा न रहेंगे  एक धधकती ज्वाला ऊर्जा की आयेगी  उदासी को उत्सव में बदल देखी बस....उम्मीद की लौ कायम रखना 

जिंदगी विथ ऋचा

दो एक दिन पहले "ऋचा विथ जिंदगी" का एक ऐपिसोड देखा , जिसमे वो पंकज त्रिपाठी से मुख़ातिब है । मुझे ऋचा अपनी सौम्यता के लिये हमेशा से पसंद रही है , इसी वजह से उनका ये कार्यक्रम देखती हूँ और हर बार पहले से अधिक उनकी प्रशंसक हो जाती हूँ। इसके अलावा सोने पर सुहागा ये होता है कि जिस किसी भी व्यक्तित्व को वे इस कार्यक्रम में लेकर आती है , वो इतने बेहतरीन होते है कि मैं अवाक् रह जाती हूँ।      ऋचा, आपके हर ऐपिसोड से मैं कुछ न कुछ जरुर सिखती हूँ।      अब आते है अभिनेता पंकज त्रिपाठी पर, जिनके बारे में मैं बस इतना ही जानती थी कि वो एक मंजे हुए कलाकार है और गाँव की पृष्ठभूमि से है। ऋचा की ही तरह मैंने भी उनकी अधिक फिल्मे नहीं देखी। लेकिन इस ऐपिसोड के संवाद को जब सुना तो मजा आ गया। जीवन को सरलतम रुप में देखने और जीने वाले पंकज त्रिपाठी इतनी सहजता से कह देते है कि जीवन में इंस्टेंट कुछ नहीं मिलता , धैर्य रखे और चलते रहे ...इस बात को खत्म करते है वो इन दो लाइनों के साथ, जो मुझे लाजवाब कर गयी..... कम आँच पर पकाईये, लंबे समय तक, जीवन हो या भोजन ❤️ इसी एपिसोड में वो आगे कहते है कि मेरा अपमान कर