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अव्यवस्था

इस लॉकडाउन में कोविड के अलावा जो विषय सबसे गरम रहा वो है मजदूरों का पलायन। मीडिया ने जमकर भुनाया इसे । पक्ष विपक्ष दोनों ने खूब सियासत की। अपने अपने राजसमर्थन के हिसाब से प्रजा ने भी कही मदद की, कही सहानुभूति दिखायी तो कही अव्यवस्था का जिम्मेदार बताया। 
          खूब चर्चाएं हुई, पावं की दरारों से होकर घर के रास्ते दिखाये गये, भुख दिखायी गयी , विलाप दिखाया, रुदन दिखाया, सूखे होठ दिखाये तो गीली आँखे भी दिखायी । ऐसी खबरे न्यूज का हिस्सा बन चुकी है , हालांकि अब तक एक बड़ा तबका अपने अपने क्षेत्र में पहूँच चुका है ।
               जब ये लोग पलायन कर रहे थे तो खूब अव्यवस्था हुई... लेकिन इस अव्यवस्था के लिये, सिर्फ इन्हे जिम्मेदार ठहराना कतई उचित नहीं। हालांकि समझदार तबका घर में बैठकर इनसे व्यवस्था बनाये रखने की गुहार लगा रहा था । सभ्य भाषा में इनसे संयमित रहने को कहा जा रहा था । लेकिन ये मजदूर वर्ग है जनाब, ये समझता कहा है? इन्होने कभी अपनी समझ की थाह ही नहीं ली और लेते भी कब ? हमेशा तो रोटी की जुगाड़ में रहे। 
      संयम और व्यवस्था तभी कायम रहती है जब तन मन दोनो संतुलित हो । एक भुखा इंसान संयम नहीं दिखा सकता ...एक टूटा मन हमेशा अव्यवस्था फैलाता दिखेगा । जरा याद कीजिए, कितनी ही बार अपनी रेल और हवाई यात्राओं के दौरान हम थोड़ी भी आवभगत की कमी होने पर आसमान सर पर उठा लेते थे या फिर अटेंडर को बुला खरी खोटी सुनाते थे, रेलमंत्री को टैग कर ट्वीट किया करते थे और मन ही मन खुश होते थे कि हम जागरूक नागरिक है, अपने अधिकारों का हमे पता है । सोचिये....उस वक्त अगर कोई आपको उपदेश पेले कि संयम रखे और गंतव्य तक पहूँचे । उस वक्त अगर आपका खून गर्म है तो आप अव्यवस्था अराजकता फैलायेंगे, आप आवेश में आ जायेंगे। अगर आप शांतचित्त है तो भी अपने मन को तो अव्यवस्थित कर ही लेंगे।

        कृपया इस तबके को राजनीतिक परिभाषाओं से दूर रखे, न सियासत करे और न ही करने दे, इनका पलायन खतरनाक है, हम सब जानते है पर आरोप न लगाये। इन विषयों पर लड़ने का काम हमारी राज्य सरकारों और केंद सरकार को करने दे।
         महामारी के प्रकोप का काल है, इससे निपटना अलग विषय रह गया है अब । बिगड़ती अर्थव्यवस्था से भी निपट लेंगे हम, अगर मिलकर चले तो । बस...मजदूरों पर दोषारोपण करने से पहले भले ही खुद में न झांके, अगल बगल देख ले। 
      अव्यवस्था को व्यवस्थित किया जा सकता है और सोनू सुद जैसे लोग कर भी रहे है। कम से कम इन्हे सराहे और मजदूरों को कोसने की बजाय मदद के लिये बढ़ रहे हाथों से हाथ मिलाये । उपदेश पेलने के अलावा कुछ तो करे इस महामारी के काल में....कुछ गिलहरी योगदान ही सही । 
    और हाँ....अगली बार जब भी यात्रा करे तो हर असुविधा को दरकिनार करियेगा । 

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