सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

रिश्तों का गणित





जीवन की अनमोल निधि है रिश्तें .कुछ बनाये जाते है तो कुछ अपने आप बन जाते है .कुछ जन्म से हमारे साथ जुड़े होते है तो कुछ रिश्तों का दामन हम विवाहोपरांत थामते है .कुछ रिश्ते दिलों में बसे होते है तो कुछ दिमाक पर हावी होते है .कुछ होते है ऐसे भी रिश्ते जो वक़्त के साथ धुंधले हो जाते है, जबकि कुछेक वक़्त के साथ पनपते है .कुछ रिश्तों को फलने-फूलने के लिए स्नेह की खाद और आशीर्वाद की छाँव की जरुरत होती है ,जबकि कुछ रिश्ते संघर्षों और जज्बातों की कड़ी धुप में भी मुस्कुराते है .कुछ होते है ऐसे दृढ रिश्ते, जिनका कोई नाम नहीं होता, कोई परिभाषा नहीं होती,जबकि कुछ रिश्ते होते है सिर्फ नाम के ,संबोधन के ,जिनमे कोई अहसास नहीं होता .कुछ रिश्ते होते रक्त के तो कुछ होते अहसासों के जज्बातों के .कुछ रिश्तों के साथ जिंदगी का सफ़र होता सुहाना ,तो कुछ रिश्ते बोझ ढोते जिंदगी का .कोई रिश्ता हर पल तिल-तिल मरता तो कोई रिश्ता मर कर भी अमर हो उठता .किसी ने सच कहा है .."अगर देखना हो कि आप कितने अमीर हो तो अपनी दौलत को मत गिनना , अपनी आँख से आंसू गिरना ,और देखना कि कितने हाथ इसे समेटने के लिए आगे बढ़ते है ".
जितना बड़ा सामाजिक दायरा उतने ही ज्यादा हमारे रिश्ते ,जिसने रिश्तों का गणित समझ लिया उसे जिंदगी जीना आ गया .कुछ रिश्तों के साथ हमेशा कटु यादें जुडी होती है जबकि कुछेक के साथ अमृत के घूंट ........अब तक की अपनी जिंदगी में मैंने तक़रीबन हरेक प्रकार के रिश्ते का स्वाद चखा है और उसी आधार पर मेरा मानना है कि इंसान की जिंदगी में हर एक रिश्ता जरुरी होता है .....................क्योकि उसके आस-पास के रिश्तों से ही उसकी सोच निर्धारित होती है .सयुंक्त परिवार में तो ना जाने कितने संबोधनों वाले रिश्ते होते है अगर हर रिश्ते का बखान करने बैठ जाए तो पृष्ठ ही सिमट जायेंगे.
बस ,ऐसे ही खट्टे-मीठे रिश्तों का पिटारा है जिंदगी .आइये इस नए साल में हम प्रण ले कि अपने से जुड़े हर रिश्ते को हम मान देंगे और भूले-बिसूरे रिश्तों को फिर से स्नेह की गरमी देगे .तो जाइये फ़ोन लगाइए अपने बचपन के उस दोस्त को जिससे आपने पिछले १० वर्षो से बात नहीं की है,मनाइए किसी रूठे रिश्ते को या फिर आशीर्वाद लीजिये अपने गाँव के उस बुजुर्ग का ,जिसे आपने शहर में आकर कभी याद ही नहीं किया ..........नववर्ष की बधाईयाँ दीजिये अपने चचेरे,ममेरे ,फुफेरे भाई-बहनों को ................बुआ,दादी,ताई,चाची,नानी,मौसी और चाचा सभी को नया साल मुबारक कहे ...........क्योकि आज भी हमारे परिवार इतने एकल नहीं हुए है कि हम इन रिश्तों और इतने मीठे संबोधनों को ना पहचान सके और यकीं मानिये आपका मन एकदम हल्का हो जायेगा अपनों से अपनी बात करके और आपकी कुंजी भर जाएगी रिश्तो की अमूल्य निधि से ....................क्योकि जीवन की अनमोल निधि है रिश्ते .अंत में यही कहुगी
"रिश्ते पंछियों के सामान होते है
जोर से पकड़ो तो मर सकते है
धीरे से पकड़ो तो उड़ सकते है
लेकिन प्यार से पकड़ के रखो तो
जिंदगी भर साथ रहते है "

टिप्पणियाँ

  1. रिश्ते पंछियों के सामान होते है
    जोर से पकड़ो तो मर सकते है
    धीरे से पकड़ो तो उड़ सकते है
    लेकिन प्यार से पकड़ के रखो तो
    जिंदगी भर साथ रहते है "
    sunder bhav sunder lekh
    rachana

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पिता और चिनार

पिता चिनार के पेड़ की तरह होते है, विशाल....निर्भीक....अडिग समय के साथ ढलते हैं , बदलते हैं , गिरते हैं  पुनः उठ उठकर जीना सिखाते हैं , न जाने, ख़ुद कितने पतझड़ देखते हैं फिर भी बसंत गोद में गिरा जाते हैं, बताते हैं ,कि पतझड़ को आना होता है सब पत्तों को गिर जाना होता है, सूखा पत्ता गिरेगा ,तभी तो नया पत्ता खिलेगा, समय की गति को तुम मान देना, लेकिन जब बसंत आये  तो उसमे भी मत रम जाना क्योकि बसंत भी हमेशा न रहेगा बस यूँ ही  पतझड़ और बसंत को जीते हुए, हम सब को सीख देते हुए अडिग रहते हैं हमेशा  चिनार और पिता

कुछ अनसुलझा सा

न जाने कितने रहस्य हैं ब्रह्मांड में? और और न जाने कितने रहस्य हैं मेरे भीतर?? क्या कोई जान पाया या  कोई जान पायेगा???? नहीं .....!! क्योंकि  कुछ पहेलियां अनसुलझी रहती हैं कुछ चौखटें कभी नहीं लांघी जाती कुछ दरवाजे कभी नहीं खुलते कुछ तो भीतर हमेशा दरका सा रहता है- जिसकी मरम्मत नहीं होती, कुछ खिड़कियों से कभी  कोई सूरज नहीं झांकता, कुछ सीलन हमेशा सूखने के इंतजार में रहती है, कुछ दर्द ताउम्र रिसते रहते हैं, कुछ भय हमेशा भयभीत किये रहते हैं, कुछ घाव नासूर बनने को आतुर रहते हैं,  एक ब्लैकहोल, सबको धीरे धीरे निगलता रहता है शायद हम सबके भीतर एक ब्रह्मांड है जिसे कभी  कोई नहीं जान पायेगा लेकिन सुनो, इसी ब्रह्मांड में एक दूधिया आकाशगंगा सैर करती है जो शायद तुम्हारे मन के ब्रह्मांड में भी है #आत्ममुग्धा

किताब

इन दिनों एक किताब पढ़ रही हूँ 'मृत्युंजय' । यह किताब मराठी साहित्य का एक नगीना है....वो भी बेहतरीन। इसका हिंदी अनुवाद मेरे हाथों में है। किताब कर्ण का जीवन दर्शन है ...उसके जीवन की यात्रा है।      मैंने जब रश्मिरथी पढ़ी थी तो मुझे महाभारत के इस पात्र के साथ एक आत्मीयता महसूस हुई और हमेशा उनको और अधिक जानने की इच्छा हुई । ओम शिवराज जी को कोटिशः धन्यवाद ....जिनकी वजह से मैं इस किताब का हिंदी अनुवाद पढ़ पा रही हूँ और वो भी बेहतरीन अनुवाद।      किताब के शुरुआत में इसकी पृष्ठभूमि है कि किस तरह से इसकी रुपरेखा अस्तित्व में आयी। मैं सहज सरल भाषाई सौंदर्य से विभोर थी और नहीं जानती कि आगे के पृष्ठ मुझे अभिभूत कर देंगे। ऐसा लगता है सभी सुंदर शब्दों का जमावड़ा इसी किताब में है।        हर परिस्थिति का वर्णन इतने अनुठे तरीके से किया है कि आप जैसे उस युग में पहूंच जाते है। मैं पढ़ती हूँ, थोड़ा रुकती हूँ ....पुनः पुनः पढ़ती हूँ और मंत्रमुग्ध होती हूँ।        धीरे पढ़ती हूँ इसलिये शुरु के सौ पृष्ठ भी नहीं पढ़ पायी हूँ लेकिन आज इस किताब को पढ़ते वक्त एक प्रसंग ऐसा आया कि उसे लिखे या कहे बिना मन रह नहीं प