भारत सदैव ही दुनियां का आध्यात्मिक गुरु रहा है , यहाँ के वेद-पुराण,पवित्र ग्रन्थ ,योग और देवी-देवता पुरातन काल से विश्व में चर्चा और शोध के विषय रहे है.वैसे तो सभी ग्रन्थ अपने-आप में पूर्ण है , लेकिन उन सबमे गीता का ज्ञान एक अलग ही दर्शन भारतीय संस्कृति को देता है.गीता धर्म का वो सरल स्वरुप है जो जीवन के वास्तविक दर्शन को सहज ही सिखा देता है ......ऐसे पवित्र ग्रन्थ पर प्रतिबन्ध लगाना वाकई चिंता का विषय है और इसे 'उग्रवादी ग्रन्थ ' करार देना तो तमाचा है हम भारतियों पर .
भगवत गीता हमारी अमूल्य धरोहर है ,सांस्कृतिक विरासत है ,अमर वाणी है सच्चाई की और सही मायनों में भारतियों की परिभाषा है .सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण का ग्रन्थ है गीता .गीता का ज्ञान उस वक़्त की कसौटी पर भी खरा था और आज के युग में भी उसके ज्ञान की सार्थकता पर कोई अंगुली नहीं उठा सकता ........ऐसे में उस पर प्रतिबन्ध लगाना और वो भी ऐसे देश और ऐसी संस्था द्वारा जो सदा से अपनी धार्मिक सहिष्णुता के लिए जाना जाता रहा है ,वाकई चिंता का विषय है .
गीता के अनुसार अन्याय करने वाला ही नहीं बल्कि अन्याय सहने वाला भी पाप का भागी होता है ,गीता जीवन के गूढ़ दर्शन को निहायत ही सरल शब्दों में प्रगट करती है ,तभी तो हम भारतीय गीता के इस मूल-मंत्र को गर्भ में पल रहे अंश-मात्र के कानो में भी डालते है ..........मुझे याद है अपनी गर्भावस्था में मैंने पुरे नौ महीने भगवत गीता का अध्ययन किया था ताकि गर्भ में पल रहे बच्चे पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ सके.इसी बात से प्रमाणित हो जाता है कि हम भारतीय गीता का कितना सम्मान करते है .....इसके अलावा न्याय के लिए भी इसी पवित्र ग्रन्थ पर हाथ रखकर साक्ष्य लिया जाता है और सच बोलने को प्रेरित किया जाता है
माना कि इसका जन्मस्थान रणभूमि है ,हाथी की गर्जनाओं ,शंखनाद और ढाल-तलवारों की झंकारों के बीच जब यह गीता-ज्ञान अस्तित्व में आया तब युद्ध-भूमि के दोनों ओर लाखो की संख्या में सैनिक युद्ध को तैयार थे ........लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यह 'उग्रवादी ग्रन्थ 'है बल्कि इसका उद्देश्य तो उग्रवाद का सही और निर्णायक अंत मात्र था ,भ्रमित बुद्धि को न्याय और सत्य का मार्ग दिखाना ही इस पवित्र ग्रन्थ का सार है .
गीता-सार का अध्ययन या स्मरण मात्र मुझमे एक नई शक्ति का संचार कर देता है अब आप ही सोचिये जिसके सार तत्व में अथाह ज्ञान भण्डार है .....तो पूर्ण स्वरुप में तो विश्व का दर्शन और रहस्य समाया है .
भगवत गीता हमारी अमूल्य धरोहर है ,सांस्कृतिक विरासत है ,अमर वाणी है सच्चाई की और सही मायनों में भारतियों की परिभाषा है .सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण का ग्रन्थ है गीता .गीता का ज्ञान उस वक़्त की कसौटी पर भी खरा था और आज के युग में भी उसके ज्ञान की सार्थकता पर कोई अंगुली नहीं उठा सकता ........ऐसे में उस पर प्रतिबन्ध लगाना और वो भी ऐसे देश और ऐसी संस्था द्वारा जो सदा से अपनी धार्मिक सहिष्णुता के लिए जाना जाता रहा है ,वाकई चिंता का विषय है .
गीता के अनुसार अन्याय करने वाला ही नहीं बल्कि अन्याय सहने वाला भी पाप का भागी होता है ,गीता जीवन के गूढ़ दर्शन को निहायत ही सरल शब्दों में प्रगट करती है ,तभी तो हम भारतीय गीता के इस मूल-मंत्र को गर्भ में पल रहे अंश-मात्र के कानो में भी डालते है ..........मुझे याद है अपनी गर्भावस्था में मैंने पुरे नौ महीने भगवत गीता का अध्ययन किया था ताकि गर्भ में पल रहे बच्चे पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ सके.इसी बात से प्रमाणित हो जाता है कि हम भारतीय गीता का कितना सम्मान करते है .....इसके अलावा न्याय के लिए भी इसी पवित्र ग्रन्थ पर हाथ रखकर साक्ष्य लिया जाता है और सच बोलने को प्रेरित किया जाता है
माना कि इसका जन्मस्थान रणभूमि है ,हाथी की गर्जनाओं ,शंखनाद और ढाल-तलवारों की झंकारों के बीच जब यह गीता-ज्ञान अस्तित्व में आया तब युद्ध-भूमि के दोनों ओर लाखो की संख्या में सैनिक युद्ध को तैयार थे ........लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यह 'उग्रवादी ग्रन्थ 'है बल्कि इसका उद्देश्य तो उग्रवाद का सही और निर्णायक अंत मात्र था ,भ्रमित बुद्धि को न्याय और सत्य का मार्ग दिखाना ही इस पवित्र ग्रन्थ का सार है .
गीता-सार का अध्ययन या स्मरण मात्र मुझमे एक नई शक्ति का संचार कर देता है अब आप ही सोचिये जिसके सार तत्व में अथाह ज्ञान भण्डार है .....तो पूर्ण स्वरुप में तो विश्व का दर्शन और रहस्य समाया है .
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