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दूनियाँ वाले

हम इतने भी बुरे ना थे 
जितना लोगो ने हमे बना दिया 
हम तो चाहते थे दूनियाँ को प्यार से जीतना ,
नहीं मालूम था कि .
खुद को ही हार जायेगे !
आये थे हम तो प्यार बाँटने 
लेकिन खुद ही बँट कर रह गए 
सोचा था  बुराई को  अच्छाई बना देगे 
नहीं मालूम था कि ;
खुद ही बुरे बन जायेगे !
चाहते थे लोगो के दिलों को रोशन करना 
लेकिन खुद ही अंधेरो में खोकर रह गए 
तकलीफ में हर किसी को दिया सहारा 
लेकिन अपने ग़मों में ,
सर टिकाने  हमे किसी का कंधा ना मिला 
दूसरो के पोंछते थे आंसू हम
लेकिन हमारे ही समंदर को कोई किनारा ना मिला !
लोगो को दिया करते थे दिलासे हम 
लेकिन ;
हमारे ही सब्र का बाँध हमी से टूट गया 
सबकी खुशियाँ बांटी , दुखो: में शरीक हुए 
लेकिन हमारी खुशियाँ किसी से देखी ना गई 
और ;
हमारे दर्द-ए-दुःख में लोगो ने हम से किनारा कर लिया !
सबकी महफ़िलों की शमां बने हम 
लेकिन;
हमारी ही महफ़िल किसी को रास ना आई 

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उम्मीद

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मन का पौधा

मन एक छोटे से पौधें की तरह होता है वो उंमुक्तता से झुमता है बशर्ते कि उसे संयमित अनुपात में वो सब मिले जो जरुरी है  उसके विकास के लिये जड़े फैलाने से कही ज्यादा जरुरी है उसका हर पल खिलना, मुस्कुराना मेरे घर में ऐसा ही एक पौधा है जो बिल्कुल मन जैसा है मुट्ठी भर मिट्टी में भी खुद को सशक्त रखता है उसकी जड़े फैली नहीं है नाजुक होते हुए भी मजबूत है उसके आस पास खुशियों के दो चार अंकुरण और भी है ये मन का पौधा है इसके फैलाव  इसकी जड़ों से इसे मत आंको क्योकि मैंने देखा है बरगदों को धराशायी होते हुए  जड़ों से उखड़ते हुए 

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